हमारा जन्म और जीवन दो संस्कारों से बना है। एक जो हमने खुद बनाए हैं, दूसरा जो बने बनाए हैं। अर्थ ये हुआ कि जो संस्कार हमने खुद बनाए हैं और जो ओरिज़नल हैं, जो पहले से हमारे अन्दर हैं, दोनों के बीच के अन्तर और उसके समानान्तर चलने के भाव को समझना है।
कहा जाता है कि जो चीज़ इस दुनिया में बनाई जाती है वो बिगड़ जाती है। तो इसका मतलब क्या हुआ जो संस्कार हमने बनाए हैं या हम जितने भी मनुष्यात्मा हैं उन सबने वो संस्कार बनाए हैं। चाहे वातावरण से प्रभावित होकर बनाए, चाहे वो अपने पूर्व जन्मों से लेकर आए, या चाहे वो जबरदस्ती इच्छा शक्ति के आधार से बिगड़े हुए संस्कार को बनाया। तो ये सारे संस्कार जो हमने बनाए हैं वो संस्कार हमको ट्रबल करते हैं, परेशान करते हैं, तंग करते हैं। अब क्योंकि हमने वो बनाए हैं तो लोगों ने भी तो अपने-अपने बनाए हैं। तो जो लोगों ने संस्कार बनाए, और जो मैंने संस्कार बनाए दोनों एक-दूसरे के साथ जूझ रहे हैं, परेशान हैं, लड़ रहे हैं। इसको आप ऐसे समझो कि जो जैसा कहा जाता है, जो जैसा होता है उसी चीज़ की तलाश करता है।
अब जैसे आप देखो, दूसरे व्यक्ति के अन्दर क्या तलाश करते हैं? शांति, प्रेम, कि प्रेम से बात करे, शान्ति से बात करे। कभी आप ये तलाश करते हैं कि नफरत से बात करे, गुस्से से बात करे, डिस्टर्ब होकर बात करे? नहीं ना! तो जो मैं नहीं हूँ वो तलाश तो नहीं कर रहा हूँ, लेकिन मैं लड़ता किससे हूँ, सभी के जो संस्कार जो बनाए गए हैं उसके खुद के द्वारा उससे लड़ रहे हैं। अब बस यहीं पर हमारा नियंत्रण खो जाता है। हमको नियंत्रित करने के लिए, हमको परमात्मा ने इतना सुन्दर ज्ञान दिया, सुन्दर समझ दी, क्या समझ दी कि आप सभी के जो मूल संस्कार हैं, जो बने बनाए संस्कार हैं, वो सातों गुण हैं। और ये संस्कार सभी के अन्दर हैं। लेकिन उन संस्कारों का ध्यान न होने के कारण की वजह से मैं उन दूसरे संस्कारों पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा हूँ, जो लोग कर रहे हैं। तो छोडऩा मुश्किल-सा लग रहा है। अब छोडऩा आसान लगेगा, कैसे आसान लगेगा? आप इसेे इस तरह से समझ लें कि जब हम किसी से बात करते हैं तो बात करते हुए हमेशा ये ध्यान में रखना अति-अति-अति आवश्यक है कि हमको हमारा ओरिज़नल चीज़ याद रहे। है ना! ओरिज़नल चीज़ हमको याद रहता है तो कभी भी हमसे गलती नहीं होगी।
अब प्रॉब्लम ये है, समस्या ये है कि हमको अपनी ओरिज़नैलिटी याद नहीं है। तो हम जब उसके सामने जाते हैं तो अपने पुराने संस्कारों और अपने पुराने मान्यताओं के आधार से ही जाते हैं। जिससे उस व्यक्ति के अन्दर वही वाले भाव पनपते हैं, उमड़ते हैं। और हमें भी तंगी होती है, उधर से भी तंगी होती है। इसीलिए प्रकृति से लेकर पुरूष तक, भूत से लेकर भविष्य तक, सारी चीज़ें हमारे कंट्रोल में हैं, लेकिन एक हद तक। हद तक का मतलब कि जब हम अपने स्वरूप में हैं, जब हम अपने निज स्वरूप में हैं, जिसे हम कहते हैं- जो हमारे बने बनाए संस्कार हैं उसमें हैं, तो सबकुछ हमारे ऑर्डर में है। लेकिन जो कुछ भी हमारे ऑडर्र में नहीं है, जो हमारी बात नहीं मान रहा है, नहीं सुन रहा है, इसका मतलब हम अनरियल हैं। अनरियल का मतलब ये हुआ, इस दुनिया में कहा जाता है कि जिस चीज़ का हम विरोध करते हैं उसका हम एक्चुअली सुपोर्ट करते हैं। इसका मतलब हमारा सारा ध्यान विरोध पर है, विरोध का मतलब सारा फुल टाइम हम उन बातों को लेकर चल रहे हैं जो बातें हमको नहीं चाहिए। तो जो हमको चाहिए वो हमारी ओरिज़नैलिटी है। तो हम सब अपने मूल संस्कार को अगर पकडऩे की कोशिश करें तो वहीं से परिवर्तन का दौर शुरू हो जायेगा। और सारी चीज़ें हमारे नियंत्रण में आ जायेंगी। तो हमारा जो नियंत्रण है वो सिर्फ और सिर्फ हमारे ओरिज़नल संस्कार पर है। इसका मतलब कि नियंत्रण शब्द भी हटा दीजिए। आप बस ये मानकर चलिए कि जो हम हैं और वही अगर उसी स्वरूप में हैं तो सारी चीज़ें हमारे ऑर्डर को फॉलो करेंगी।
तो मसला ये है, या मुद्दा ये है कि जीवन में बहुत ऐसी घटनाएं घट रही हैं, सभी के जीवन में घट रही हैं। और हर कोई कह रहा है कि कोई नहीं सुन रहा है, कोई नहीं बदल रहा है। तो एक बात हम अन्डरलाइन कर लें, न कोई सुनेगा, न कोई बदलेगा। जब मैं कोई चीज़ सुना रहा हूँ या बदलने के लिए कह रहा हूँ, उस समय मेरे अन्दर का इन्टेंशन या भाव क्या है? कि जैसे वो सुनेगा और बदलेगा मैं सैटिसफाइड हो जाऊंगा, मैं खुश हो जाऊंगा और मैं सोचूंगा कि ये चीज़ तो मेरे नियंत्रण में है। लेकिन अन्दर एक डर भी है कि कब तक सुनेगा ये, कब तक मेरे कंट्रोल में रहेगा! तो इसका मतलब मैं तो कंट्रोल नहीं कर पाया ना पूरी तरह से, अनियंत्रित अन्दर से महसूस कर रहा हूँ। लेकिन जैसे ही मैंने उसको छोड़ा और अपने ओरिज़नैलिटी के साथ जीना शुरू किया तो वो अगर मेरी बात माना तो अच्छा, नहीं माना तो भी अच्छा। इसे जीवन कहते हैं। जिसमें न बन्धन है, न किसी तरह का ऐसा सम्बन्ध है जो हमको इस बात के लिए जबरदस्ती ज़ोर दे रहा है कि ये आपको करना ही है। नहीं, यही जीवन का सार है।
इसीलिए हम सभी अपने अहम को सन्तुष्ट करने के लिए गलती पर गलती करते जा रहे हैं और अंधकार में होते जा रहे हैं। तो अंधकार से अगर बाहर निकलना है, सच्चे रूप से जागना है तो हमको ये कार्य अति शीघ्र करना होगा। जो चीज़ें हमारी हैं और हमारे संस्कार सिर्फ हमारे हैं, ओरिज़नल, उनके आधार से चलने से सारी चीज़ें हमारे हाथ में चलेंगी। रहेंगी तो भी अच्छा और नहीं भी रहेंगी तो भी कोई मलाल नहीं होगा।