मन की बातें– राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

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प्रश्न : मेरा नाम चन्द्रमोहन है। मैं रायगढ़ से हूँ। मैं चालीस वर्ष का अधर कुमार हूँ। मुझे ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़े हुए पाँच वर्ष हो गए हैं। परंतु मुझे क्रोध बहुत आता है। मैं क्रोध को छोडऩा चाहता हूँ लेकिन छूटता नहीं। मैं अपनी इस कमज़ोरी से निराश होता जा रहा हूँ। कृपया कोई उपाय बतायें।
उत्तर : मुझे लगता है कि क्रोध ही आपको इधर लाया है। क्योंकि क्रोध मनुष्य को बहुत अशान्त करता है। और आपको ये आभास है कि क्रोध बहुत बुरा है और मुझे इसे छोडऩा चाहिए। ये आपकी अपने आप में एक बहुत बड़ी क्वालिटी है। आपको ये याद रखना होगा कि मेरे पास दूसरी क्वालिटी भी है बहुत बड़ी। और मैं बहुत अच्छी-अच्छी चीज़ों में विन कर सकता हूँ। और क्रोध में भी मैं विन करूंगा। इसको छोडऩे में मुझे विजय प्राप्त होगी। तो पहले तो अपने मन में एक संकल्प कर लें कि मुझे क्रोध को छोडऩे में विजय पानी है। ये मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। एक आत्म विश्वास।
पहले मैं थोड़ा-सा विस्तार से कहूंगा, पहले तो आप इगो पर ध्यान दें। इगो क्रोध का जन्म दाता है। कहाँ मेरे अन्दर अहम काम कर रहा है। स्वमान के अभ्यास से पहली पकड़ अहम पर करें। पहली विजय अहंकार पर करनी है। ये लक्ष्य रख लें। और सोचें कि मुझे बहुत नम्रचित्त होना है। सब मेरे अपने हैं। जिन पर मैं क्रोध करूंगा उनका भी अपना एक जीवन है। उनका भी परिवार है। उनके भी बच्चे हैं। तो एक प्रेम भाव को पैदा करें। नम्र भाव को पैदा करें। और स्वमान के अभ्यास के द्वारा रोज़ सवेरे अमृतवेले उठकर अच्छे-अच्छे योग के अनुभव करें। दूसरी बात आपको देखनी है कि मुझे क्रोध किन परिस्थितियों में आता है। मान लो, बच्चे होमवर्क नहीं कर रहे, पढ़ाई ठीक नहीं कर रहे उसपर क्रोध आता है या पत्नी ने आज भोजन अच्छा नहीं बनाया, थाली फेंक दी, उस पर क्रोध आता है। तो किस परिस्थिति में क्रोध आता है। अब इसमें आपको भिन्न-भिन्न रूप से अपने विचारों को चेंज करना है। कोई गलती करता है तो ये लक्ष्य बना लें कि मुझे इन्हें सिखाना है। दूसरी बात, गुस्सा इस बात भी आता है कि ये लोग मेरी बात क्यों नहीं सुनते? चाहे बच्चे हैं, पत्नी है, कई बार ऐसा होता है कि जो क्रोधी होता है ना लोग उसको इग्नोर करने लगते हैं। ये तो बोलता ही रहता है, बोलने दो। बड़बड़ा रहा है, बड़बड़ाने दो। मेरी बात ये क्यों नहीं सुनते इस संकल्प को हटाना पड़ेगा। आपने ज्ञान-योग सीखा है पाँच साल से, अब आपको इस तरह से सोचना है कि क्या मैं भगवान की सारी बात सुनता हूँ? अगर वो ऊपर बैठकर सोचता हो कि ये चालीस साल का इतना समझदार मेरी बात ही नहीं सुनता। तो वो भी गुस्सा करेगा। फिर आपका क्या हाल होगा! मेरी बात क्यों नहीं सुनते, मैं तो सीधा-सा सिद्धान्त बताया करता हूँ कि यदि तुम भगवान की बात सुनोगे तो लोग भी तुम्हारी बात सुनेंगे। तुम भी तो सुनो। तो इसके पीछे मनुष्य का एक अहम काम करता है। ये मेरे बच्चे हैं ना! ये मेरे नौकर हैं ना! ये मेरे लोग हैं ना! अब आप ये मेरेपन पर कटु नज़र रख दें। जितना क्रोध आप दूसरों पर करते हैं, उतना क्रोध आप मेरेपन पर करने लगें। मुझे इसे भगाना है। तो बुद्धि बहुत डिवाइन होगी। और तीसरी बात, मनुष्य को एक्सपेक्टेशन्स बहुत कम रखनी चाहिए। ठीक है हम अच्छी एक्सपेक्टेशन्स तो रखेंगे। एक व्यक्ति हमारे साथ काम कर रहा है वो अपना काम परफेक्टली करे। ऐसा काम करे जि़म्मेदारी से कि किसी को देखना भी न पड़े। लेकिन दूसरे व्यक्ति की कैपेबिलिटी कितनी है। फिर मैं वही बात कहूँगा कि योग्य बनाना दूसरों को, ये किसी मनुष्य की बहुत बड़ी क्वालिटी है। डांट-डपट तो कोई भी कर सकता है। दूसरों को योग्य बनाने वाले लोग इस संसार में बहुत कम हैं। अभी आपको ये फॉर्मूला तैयार कर लेना है। अधिकार की फीलिंग थोड़ी-सी हल्की कर दो। अपने अहम को स्वमान के द्वारा नष्ट करेंगे। तो जितनी अपने में नम्रता होगी उतनी विजय हो जायेगी। और एक सुन्दर अभ्यास भी मैं सिखाना चाहता हूँ, क्योंकि क्रोध एक ऐसा ज़हर है जो जीवन में ज़हर घोल देता है, परिवारों को ज़हरीला बना देता है। हेल्थ पर भी बहुत बुरा असर आता है।
सवेरे उठते ही आप पाँच-सात बारी अभ्यास करेंगे मैं क्रोध मुक्त हूँ, मैं शान्त स्वरूप आत्मा हूँ। और फील करेंगे मुझ आत्मा से शान्ति की किरणें चारों ओर फैल रही हैं, मेरे ब्रेन को जा रही हैं। पहले ऐसा विज़ुअलाइज़ करें। सात बार ये संकल्प कर लें मैं पीसफुल आत्मा हूँ। मैं पीसफुल हूँ। शान्ति की किरणें ब्रेन को जा रही हैं। फिर मैं क्रोध मुक्त हूँ, मैं पीसफुल हूँ, बस। इससे बहुत बड़ा फायदा होगा। इससे ब्रेन भी साइलेंट होगा, मन भी शान्त होगा। और निश्चित रूप से आप इसमें अवश्य सफल होंगे।

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