परमात्म ब्लेसिंग के लिए मन को साफ और बुद्धि को स्वच्छ बनायें…

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कोई भी जगह साफ-सुथरी और व्यवस्थित हो तो सबका मन भाता है। मकान चाहे कितना भी बाहर से अच्छे रंग में रंगा हो लेकिन अंदर सब फर्नीचर अस्त-व्यस्त हों, सफाई न हो और सही वेंटिलेशन न हो तो कैसा लगता है! घुटन जैसा लगेगा ना! इसी तरह मकान को रोज़ साफ और व्यवस्थित करना, ये जीवन का क्रम है। झाडू लगाना, स्वच्छ करना, ये मनुष्य के लिए रोजि़ंदा कर्म हैं। ये बाह्य स्वच्छता तो हम कर लेते हैं, करनी भी चाहिए, किन्तु अपने मन को भी साफ करना, पोषित करना और शक्तिशाली बनाना भी उतना ही ज़रूरी है। हम हर रोज़ शरीर को सशक्त बनाने के लिए पौष्टिक भोजन समय पर लेते हैं, तभी हमारा शरीर ऊर्जावान बनकर सारा दिन हमें चुस्त-फुर्त रखता है। इसी तरह मन को भी साफ करना, स्वच्छ करना और उसको अच्छे विचारों से, अच्छे संकल्पों से पोषित करना उतना ही ज़रूरी है। हम सुबह से शाम तक चाहे परिवार में, चाहे द$फ्तर में, चाहे कारोबार-व्यवसाय में, जहाँ भी जाते हैं, जिससे भी मिलते हैं, बातें करते हैं, देखते हैं, ये सब हमारे मन को प्रभावित अवश्य करता है। अगर हमने उन प्रभावों को शांति से बैठकर जो भी दिनभर में हुआ हो, उसे एनालाइज़ नहीं किया या उसको सही समझ से, बुद्धि से उसको दुरुस्त नहीं किया, साफ नहीं किया तो मन भारी होता जायेगा, मन का बोझ बढ़ता जायेगा। जैसे अभी-अभी दिवाली गई, हमने बहुत खुशियां मनाई। दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार है, क्योंकि बुराई पर अच्छाई की विजय का त्योहार है। इसलिए हम घर को साफ-सुथरा करते हैं तो हमारा मन प्रफुल्लित रहता है, खुश रहता है। दीपावली पर तो हम खुश रहते ही हैं, खुश रहना भी चाहिए। लेकिन हमारे मन में हर दिन दिवाली हो, ऐसा जीवन व्यतीत करने के लिए हमें रोज़ बाहर से आने वाले इफेक्ट को सही अर्थ में सोच और समझकर उसके इम्प्रेशन से मुक्त रहना चाहिए ताकि हम सदा प्रफुल्लित रह सकें। मन को साफ करने के लिए पवित्र संकल्प एवं श्रेष्ठ संकल्प का निर्माण कर उसे शक्तिशाली बनाना चाहिए। जैसे हम सुबह उठते हैं, नित्य कर्म करके हम अपने आपको कर्मक्षेत्र में जाने के योग्य बनाते हैं। उसी तरह मन को भी श्रेष्ठ संकल्पों से शक्तिशाली बनाकर कर्मक्षेत्र पर रोल अदा करने के लिए तैयार करना चाहिए।
हम सभी की आस्था होने के कारण हम कई मंदिरों में भी माथा टेकते हैं, इसके पीछे आशय ये है कि हमारा मन शांत रहे, मन में खुशी रहे, यही है ना! ये तो रही आस्था और भावना की बात लेकिन वर्तमान जीवन व्यवस्था में बहुत चुनौतियां आती हैं, हर पल चुनौतियों से भरा है। उसमें भी अपनी शांति को विचलित न होने देना और अपनी स्थिति को प्रफुल्लित रखना, उमंग उत्साह से भरा हुआ रखना बहुत महत्वपूर्ण है। उसके लिए हम देखते हैं कि वर्तमान दौर में कोई मेडिटेशन करता, कोई योगा करता, लेकिन जब मन में उमंग, पवित्र संकल्प और कल्याणकारी भावना हो तब ही हम परमपिता परमात्मा के साथ जुड़ सकते हैं और उससे शक्तियां प्राप्त कर सकते हैं जिसको हम चुनौतियों में प्रयोग और उपयोग कर उन परिस्थितियों से अपने को बचा सकते हैं। मेडिटेशन का अर्थ ही है अपने आपको हील करना अर्थात् मन को बलशाली बनाना, मज़बूत बनाना। मन मज़बूत है और श्रेष्ठ भाव से भरा हुआ है तो अवश्य ही बाहर से आने वाली चुनौतियों के इफेक्ट से हम बच सकते हैं। कहते हैं ना, मन चंगा तो कठौती में गंगा। लेकिन हम एक पक्ष को यानी हम स्थूल पक्ष को तो करते हैं लेकिन जो सूक्ष्म, जीवनोपयोगी आत्मा की प्रमुख शक्ति जो कि मन है उसपर हमारा ध्यान कम जाता है और इसके कारण चलते-चलते हम उदास, निराश, बेचैन और भारी हो जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं, सम्बंधों में कड़वाहट आ जाती है। तो कहने का भाव ये है कि स्थूल स्वच्छता के साथ मन को भी साफ-सुथरा बनायें। तो स्थूल और सूक्ष्म दोनों पहिये जब ठीक होंगे तो हमारी जीवन यात्रा प्रसन्नता पूर्वक चलेगी। बैलेंस बना रहेगा तो परमात्मा की ब्लेसिंग भी मिलती रहेगी।

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