कैसे… हरेक को अपना बना के ‘मेरे-मेरे’ से छुड़ाया

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खत्म हो गया। यह लाइफ इतनी अच्छी और ऊंची है, फिर कोई नहीं कह सकता तुम मेरी हो। कोई अपना दांव नहीं लगा सकता है। अगर मेरापन आ गया तो कोई भी अपना दांव लगा सकता है।
शिव के साथ शक्ति का गायन है। सिर्फ शिव-शिव नहीं कहते हैं। शिव की शक्ति, शक्ति खींच लेती है। जो नये-नये आते हैं उनके लिए माया अलग होती है, आगे बढ़ते हैं तो माया अलग होती है फिर मेरे आगे माया अलग है। माया को समझने वाला, पहले लेसन से ही समझ जाता है कि यह माया है। आज फिर बाबा ने कहा आलस्य माया है। बाबा कहेगा जागो बच्चे, वो कहेगी सो जा। आलस्य माया का रूप धारण करके, मीठी बातें सुना के रेग्यूलर, पंक्चुअल बनने नहीं देगा। पंक्चुअल, रेग्यूलर और गुणवान को माक्र्स अच्छी मिल जाती हैं। वह स्कूल का नाम बाला करते हैं। गुणवान बनना माना चरित्रवान बनना। फिर माया देखती है, यह तो मेरी बात सुनते नहीं हैं। मुझे अपने चरित्र पर ध्यान रखना है, ऊंचे ते ऊंचा मेरा बाबा है, ऐसा चरित्र मेरा भी हो। भले वो विचित्र है पर मेरा चरित्र ऊंचा बनाता है।
समझदार, सच्चा, सयाना बच्चा कभी एक सेकण्ड भी मनमत या परमत पर चलकर बेसमझी का काम नहीं करेगा। मनमत बेसमझ बना देती है, श्रीमत सेकण्ड में समझदार बना देती है। मुरली हर रोज़ हमारे प्रश्नों का जवाब देती है इसलिए कभी नहीं कहेंगे यह मुरली मैंने पहले सुनी या पढ़ी है। कल की मुरली में कल की बात मिली, आज की मुरली में आज की बात मिली। यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, पुरूषोत्तम बनने के लिए, पर कईयों को इसकी वैल्यू नहीं है। पुरूषोत्तम माना इस ब्राह्मण परिवार में उत्तम। दुनिया के करोड़ों में से तो हम निकल आये, भगवान ने चुन-चुन के हरेक को कहाँ-कहाँ से लाया है। कैसे हरेक को अपना बना के मेरे-मेरे से छुड़ाया है। बाबा हमको सीढ़ी चढऩे के बजाए गिफ्ट में लिफ्ट देता है। बच्ची बैठो और जाओ। सांस चढऩे की बात ही नहीं है, सोचने की बात ही नहीं है। ऐसा जो रिहर्सल नहीं करता है, तो माया देखती है इसके पास टाइम बहुत है, मेरा बनने के लिए। फिर वो हमारा टाइम ले लेती है, संकल्प ले लेती है। परन्तु बाबा ने जो भी नियम बनाके दिये हैं, सुबह से रात्रि तक जो उन नियमों पर चलता है उसके पास बल बहुत है, इसलिए कहा जाता है नियम में बल है। जो सच्चा-सयाना बाबा का बच्चा है, वो चेक करता है, कुछ भी छिपाता नहीं है। कोई कुछ उल्टा करे फिर बाप से छुपाये तो वो पाप वृद्धि करता रहता है। सेवा में उमंग-उत्साह खत्म हो जाता है। संगमयुग में टाइम बड़ा वैल्यूबुल है। तो पुरूषार्थ करने की आदत डालनी चाहिए।

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