संगदोष और परचिंतन से बचते हुए बाबा की छत्रछाया का अनुभव करें…
जो बाबा ने हमें कहा था कि अन्तिम समय पेपर आयेगा। अन्तिम समय के पेपर में एक पेपर इविल स्पिरिट का भी है। जिनकी इच्छायें अधूरी रही हुई हैं। इसीलिए बाबा ने जो विधि बताई कि लाइट का शरीर अपना इमर्ज करो। जितना लाइट का स्वरूप आपका होगा तो अनेकों को साक्षात्कार होगा। जो लाइट का स्वरूप वो देखेंगे तो आत्मायें नज़दीक भी नहीं आयेंगी।
जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जो आंतरिक स्थिति हमारी परेशान वाली हो जाये और परेशानी के कारण हमें कुछ सूझे ही नहीं। बाबा ही याद न आये। बाबा से हम दूर चले जा रहे हैं ऐसा तो नहीं हो रहा है? बुद्धियोग बाबा के तरफ लगाने की बजाय मेरा बुद्धियोग बार-बार उसके तरफ जा रहा है तो ये भी एक प्रकार का देहअभिमान है। ये भी एक प्रकार का परचिंतन है जो हमारी स्थिति को नीचे गिराता है। अब आगे पढ़ेंगे…
अभी बहुत सुन्दर एक सीखने की बात आई कि बाबा जो कहते हैं कि परचिंतन पतन की जड़ है और आत्म चिंतन उन्नति की सीढ़ी है, तो कैसे परचिंतन पतन की जड़ है?
दो बहनें या मातायें थी शायद। वो रोज़, गाँव में हर वक्त पानी तो आता नहीं है तो उनको हैंडपम्प से पानी लाना पड़ता था। तो हैंडपम्प से सुबह-सुबह पानी लेने जाते थे। तो जाते-जाते भी परचिंतन, आते-आते भी परचिंतन। अब उसके कारण इतनी मानसिक स्थिति उनकी ड्रेन हो रही थी, कमज़ोर हो रही थी। और कहा जाता है कि जो रास्ता था वहाँ एक पेड़ था और उस पेड़ पर तीन आत्मायें रहती थी। वो जब देखती थे रोज़ इनको आते-जाते। एक बहुत ज्य़ादा परचिंतन करती थी, एक बार-बार उसको स्टॉप करने का प्रयत्न करती थी कि छोड़ो ना इन बातों को, जिसको जो करना है वो करने दो। जो होगा वो होगा। अब वो दूसरी जो थी उसकी तो आदत थी परचिंतन करने की और आदत ऐसी पड़ गई जो उसको छूटती नहीं थी। तो उन तीनों आत्माओं ने आपस में बात की, कि हमारे लिए ये स्थान उत्तम है। और उन तीनों आत्माओं ने उसमें प्रवेश किया। उस बहन, माता में जो बहुत ज्य़ादा परचिंतन करती थी। जब उसके अन्दर प्रवेश किया तो उसके बाद तो नैचुरल है कि उसकी स्थिति क्या हो सकती है, वो आप समझ सकते हैं। तो उसके बाद तो वो अपने वश में नहीं रही। बहुत ज्य़ादा तूफान मचाना चालू किया उसने। तोड़-फोड़ करना चालू किया। परिवार वाले परेशान हो गये कि क्या चाहिए उसको, अलग-अलग चीज़ों का डिमांड करने लगी वो। तो जब डिमांड करने लगी तो तब उनको लगा कि कोई आत्मा है इसके अन्दर जो प्रवेश किया हुआ है।
फिर किसी के पास झाड़-फूंक के लिए लेके गए, तो जब उसने बातचीत की तो पता चला कि तीन आत्मायें हैं। बोले तीन आत्मायें हैं और उनकी अधूरी इच्छायें जो थी वो इसके द्वारा पूरा करना चाहती हैं। तो क्या अधूरी इच्छा है तब तक हम निकलेंगे नहीं जब तक हमारी इच्छायें पूरी नहीं होती। तो पूछा कि तुमने इसका शरीर क्यों लिया? बहुत ज्य़ादा लोग हैं दुनिया में किसी का भी शरीर ले लेते। तब वो तीनों आत्मा ने बताया कि नहीं ये और इसके साथ दूसरी बहन भी थी। रोज़ पानी भरने जाते थे तो आते-जाते खूब परचिंतन चलता था। तो हमने देखा कि ये तो एकदम कमज़ोर है और हमको तो कमज़ोर ही चाहिए। जब कमज़ोर मिलेगा तभी तो हम अपनी डिमांड्स या हमारी अधूरी इच्छायें पूरी कर सकेंगे। तो फिर पूछा कि अच्छा तो तुम्हारी डिमांड क्या है? तो एक ने कहा कि बहुत समय हो गया मैंने नॉनवेज नहीं खाया, मुझे नॉनवेज खाना है। दूसरी ने कहा कि मुझे शराब पिए बहुत समय हो गया, तो मुझे शराब चाहिए। तीसरी ने भी ऐसी ही कुछ डिमांड रखी। तो वो जो निकालने वाला था उसने पूछा कि अगर तेरी ये डिमांड पूरी की तो छोड़ेगी तू इसको? तो बोली हाँ छोड़ देंगे। तो जब कहा कि छोड़ देंगे। तो उनके रिश्तेदारों को कहा कि खिलाना पड़ेगा। तभी छोड़ेंगी ये आत्मायें। तो उन्होंने कहा लेकिन ये तो ब्रह्माकुमारी में जाते हैं। खाते ही नहीं हैं, ना पीते हैं। तो कहा कुछ भी करो लेकिन खिलाना पड़ेगा अभी।
एक होटल में ले जाकर उसको खिलाना पड़ा। उसको शराब पिलाना पड़ा तब जाकर उन तीनों आत्माओं ने उसको मुक्त किया। और निकल गई। जो बाबा कहते हैं- परचिंतन पतन की जड़ है। अब सोचो शायद बीस-पच्चीस सालों से वो ज्ञान में चलती थी, जहाँ तक मेरी नॉलेज है। तो बीस-पच्चीस सालों की तपस्या क्या हुई? भंग हो गई कि नहीं हुई? और उसके बाद जब उन आत्माओं ने छोड़ा, उस बहन को जब महसूस हुआ तो इतना रोई, पश्चाताप किया उसने, जिसको बाबा कहते हैं खून के आँसू निकले। वैसे खून के आँसू रोई वो। अब मैं सारा मेकअप कैसे करूंगी! अब उसने वो आदत छोड़ दी। अब ना करना है और न सोचना है। अब जितना हो सके मुझे पुरूषार्थ करना है। अब आप सोचो कि जो बाबा ने हमें कहा था कि अन्तिम समय पेपर आयेगा। अन्तिम समय के पेपर में एक पेपर इविल स्पिरिट का भी है। जिनकी इच्छायें अधूरी रही हुई हैं।
इसीलिए बाबा ने जो विधि बताई कि लाइट का शरीर अपना इमर्ज करो। जितना लाइट का स्वरूप आपका होगा तो अनेकों को साक्षात्कार होगा। जो लाइट का स्वरूप वो देखेंगे तो आत्मायें नज़दीक भी नहीं आयेंगी। इसलिए बाबा कहते हैं अपने आप को बहुत शक्तिशाली बनाना है। तो ये विधि बताई बाबा ने आपस में बात करो तो शुभ सम्मेलन करो। अपने आप से जो बात करो तो विचार सागर मंथन करो।
इसलिए इन सब चीज़ों से हमें अपने आपको सेफ रखना बहुत ज़रूरी है। और जितने उमंग-उत्साह के पंख होंगे उतना सेफ रहेंगे। हमारी खुशी अन्दर की होनी चाहिए, साधनों के आधार पर नहीं। जितनी अन्दर से अपने आप को खुशकिस्मत समझते हुए खुशी में रखेंगे उतना ही आप उमंग-उत्साह के पंखों के साथ उड़ जायेंगे। और नीचे की हर प्रकार की माया से आप अपने आप को सेफ रख सकेंगे।