बच्चों की जवाबदारी ज़रूर माँ-बाप के ऊपर है। उनको भी रास्ता दिखाना है। यह है मुक्ति में जाने का रास्ता और यह है नर्क में जाने का रास्ता। अब कहाँ भी जाओ। राह दिखा दो, चिंता छोड़ दो। क्या करें, कैसे करें, इन चिंताओं की चिंता में न रहो। आपका काम है उनको उस एज तक पढ़ाना, उस कर्मबन्धन को निभाना- यह है डयूटी। फिर जैसी उनकी तकदीर।
जहाँ तक हो सके जब दोनों ज्ञान में चलते हों तो हमेशा समझो हम दो नहीं लेकिन 10 हैं। योग का वातावरण ज़रूर बनाओ। 3 पैर पृथ्वी में आसन बिछाकर योग में ज़रूर बैठो। पीसफुल रहो। बाबा ने जो याद की ट्राफिक दी है उसका जितना हो सके पालन करो। जो भी भोजन बने उसका नियम अनुसार बाबा को भोग ज़रूर लगाओ। अगर ज्वाइंट फैमिली है, भोजन का भोग नहीं लगा सकते तो फल का लगा दो। दो मिनट भी याद में बैठकर भोग लगाने से बच्चों में भी वह आदत पड़ेगी। वातावरण शुद्ध होगा।
अगर कोई रोज़ मुरली सुनने किसी कारण से नहीं जा सकते तो दिल में यह दृढ़ता अवश्य हो कि जब तक ज्ञान डांस नहीं की है तब तक भोजन नहीं खाना है। मुरली ज़रूर पढऩी है। मुरली कोई मैगजीन नहीं। ऐसे नहीं मैगजीन पढ़ ली बस। ऐसे भी नहीं ब्राह्मणी से रूठा और कहे हमें मुरली अलग दो। लाचारी कारण हो, नहीं आ सकते तो मुरली ले जाओ। आप सबका हक है। अपने टाइम पर ज़रूर पढ़ो। इन्टरनेशनल योग में भी अवश्य भाग लो। उस दिन का बहुत अच्छा प्रभाव रहता है।
बाबा की श्रीमत है बच्चे, तुम्हें किसी भी हालत में रोना नहीं है। एक है आँखों का रोना, दूसरा है मन का रोना। अब आँखों के रोने और मन के रोने को तलाक दो। क्या करूँ, कैसे करूँ… कुछ भी करो। यह क्वेश्चन तो है ही माया के। परन्तु बाबा ने बिन्दी दी है। तीन बिन्दी लगाओ। एक बिन्दी- मैं आत्मा हूँ, दूसरी बिन्दी है बाबा और तीसरी बिन्दी ड्रामा- यह तीन बिन्दु लगाने से उदासी खत्म। जब मन में आता यह ऐसा क्यों करता। ऐसा-वैसा सोचा माना उदास हुआ। बाबा कहता बिन्दु लगा दो। बाबा की गृहस्थी अति विशाल है, देखो तो अति बड़ी है न देखो तो बिन्दु है। बाबा बैठा है इस एक शब्द से बिन्दु आ गई। न किसी की महिमा में ऊपर चढ़ो, न किसकी ग्लानि में नीचे गिरो। अपना स्लोगन है- निंदा स्तुति, मान-अपमान, दु:ख-सुख, ठंडी-गर्मी, सबमें समान। एकरस स्थिति रहे उसके लिए सदैव एक से सर्व रसों का अनुभव करो। जब सब रस मेरे में भरे होंगे तो एकरस हो जायेंगे।