अपने आपको सदा शिवशक्ति समझ कर हर कर्म करती हो? अपने अलंकार व अष्ट भुजाधारी मूर्त सदा अपने सामने रहती है? अष्ट भुजाधारी अर्थात् अष्ट शक्तिवान। तो सदा अपने अष्ट शक्ति स्वरूप स्पष्ट रूप में दिखाई देते हैं? शक्तियों का गायन है ना- शिवमई शक्तियां। तो शिव बाबा की स्मृति में सदा रहती हो? शिव और शक्ति- दोनों का साथ-साथ गायन है। जैसे आत्मा और शरीर- दोनों का साथ है, जब तक इस सृष्टि पर पार्ट है तब तक अलग नहीं हो सकते। ऐसे ही शिव और शक्ति – दोनों का भी इतना ही गहरा सम्बन्ध है, जो गायन है शिवशक्तिपन का। तो ऐसे ही सदैव साथ का अनुभव करती हो व सिर्फ गायन है? सदा साथ ऐसा हो जो कोई भी कब इस साथ को तोड़ न सके, मिटा न सके। ऐसे अनुभव करते हुए सदा शिवमई शक्ति स्वरूप में स्थित होकर चलो तो कब भी दोनों की लगन में माया विघ्न डाल नहीं सकती।
कहावत भी है – दो दस के बराबर होते हैं। तो जब शिव और शक्ति दोनों का साथ हो गया तो ऐसी शक्ति के आगे कोई कुछ कर सकता है? इन डभले शक्तियों के आगे और कोई भी शक्ति अपना वार नहीं कर सकती व हार खिला नहीं सकती। अगर हार होती है व माया का वार होता है, तो क्या उस समय शिव शक्ति स्वरूप में स्थित हो? अपने अष्ट शक्तियां सम्पन्न सम्पूर्ण स्वरूप में स्थित हो? अष्ट शक्तियों में से अगर कोई भी एक शक्ति की कमी है तो अष्ट भुजाधारी शक्तियों का जो गायन है वह हो सकता है? सदैव अपने आपको देखो कि हम सदैव अष्ट शक्तियों को धारण करने वाले हैं? वही अष्ट देवताओं में आ सकते हैं। अगर अपने में कोई भी शक्ति की कमी अनुभव करते हो तो अष्ट देवताओं में आना मुश्किल है। और अष्ट देवता सारी सृष्टि के लिए इष्ट रूप में गाये और पूजे जाते हैं। तो भक्ति मार्ग में इष्ट बनना है व भविष्य में अष्ट देवता बनना है तो अष्ट शक्तियों की धारणा सदैव अपने में करते चलो।
इन शक्तियों की धारणा से स्वत: ही और सहज ही दो बातों का अनुभव करेंगे। वह कौन-सी दो बातें? सदा अपने को शिव शक्ति व अष्ट भुजाधारी अथवा अष्ट शक्तिधारी समझने से एक तो सदा साथीपन का अनुभव करेंगे और दूसरा सदा अपनी स्टेज साक्षीपन की अनुभव करेंगे। एक साथी और दूसरा साक्षी, यह दोनों अनुभव होंगे, जिसको दूसरे शब्दों में साक्षी अवस्था अर्थात् बिन्दु रूप की स्टेज कहा जाता है और साक्षीपन का अनुभव अर्थात् अव्यक्त स्थिति का अनुभव कहा जाता है। अष्ट शक्ति की धारणा होने से इन दोनों स्थिति का अनुभव सदा सहज और स्वत: करेंगे।