जैसे दुनिया में हम सबके लिए एक बात हमेशा कही जाती है कि आपने क्या परिवर्तन किया? क्या चेंज किया? और यहाँ भी हम कई वर्षों से अपने आप को तराशने की कोशिश कर रहे हैं। तो इस बात का क्या प्रमाण है, या क्या पैरामीटर है कि हमने अपने आप को क्या ट्रांसफॉर्म किया है? अब देखो जब हम कभी आध्यात्मिकता से जुड़ते हैं तो ज्य़ादातर एक ही बात ज़हन में आती है कि अगर मैं रोज़ अपने अन्दर एक छोटा-सा चेंज करूंगा तो मेरा दिन बहुत अच्छा हो जायेगा। तो एक होता है दिन का अच्छा जाना, रात का अच्छा जाना, अच्छा हो जाना, दूसरा है उन्नति को पाना। अब आप देखो दिन और रात तो अच्छा हो ही जाना है। ये तो दुनिया की भी छोटी-छोटी बातें, पॉजि़टिव थिंकिंग जो है, अच्छी सोच के आधार से भी हो सकता है। लेकिन परिवर्तन हमको ये वाला नहीं चाहिए,हमारे सोल लेवल वाला परिवर्तन चाहिए। आत्मा के लेवल का परिवर्तन चाहिए।
अब सारे आध्यात्मिक लोग आपके कर्म और आपके बोल की तारीफ करते हैं तो आप खुश हो जाते हैं। ज्य़ादातर तो यही है ना कि आप बहुत मीठा बोलते हैं, बहुत अच्छा बोलते हैं। आप इसको देखो, इसको ट्रेनिंग कहते हैं, आप किसी को भी ट्रेंड कर देंगे ना तो वो कर लेगा। लेकिन आत्मिक बदलाव का जो पैरामीटर है जिसमें कुछ भी फर्क ना पड़े। कुछ भी फर्क ना पड़े का मतलब परमात्मा हमको शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। और हम हरेक चीज़ को भोगना चाहते हैं। हम बदलाव को इस तरह से देखते हैं कि हमारे व्यवहार में परिवर्तन आ गया। एक है व्यवहार करने की कला, दूसरा है संस्कार परिवर्तन। दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं। तो सभी तो हमको कह रहे हैं कि आप बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे बन गये हैं तो ज़रूरत क्या है पुरूषार्थ की, आत्मिक स्थिति बनाने की, या आत्मा के अन्दर उतर जाने की!
तो इसमें एक बहुत बड़ा जाल है, आत्मिक स्थिति में आते ही आपको इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है ना, उसका रिंचक मात्र भी फर्क नहीं पडऩे वाला। लेकिन हम सबको देखो अपने को ठीक करना है, तो बाहरी चीज़ें त्यागनी हैं। अगर बाहरी ठीक करना है तो अन्दर को छोड़ देना है। कहने का मतलब है कि हम यहाँ पर हरि भजन के लिए आये लेकिन और-और बातों में उलझ गये। परमात्मा हमको निष्काम कर्मयोगी बनाना चाहते हैं। इसका मतलब जिसके ऊपर किसी भी बात का थोड़ा भी असर न हो। अब देखो हम सबको अगर आत्मिक स्मृति हो तो हम जो बोलेंगे, जो कर्म करेंगे, जो कुछ भी बोलेंगे उसको सम्भालना नहीं पड़ेगा। सम्भालने का मतलब ये है कि नैचुरल वो हमसे निकलेगा। और जो कोई भी उसको सुनेगा तो उसको कभी भी ऊपर-नीचे नहीं लगेगा। इस समय हमको बोल, कर्म, व्यवहार सब सम्भालना पड़ता है,क्यों? क्योंकि हम बाहरी रूप से एक व्यवहारिक कला सीख रहे हैं, एक ट्रेनिंग सीख रहे हैं। और अगर हम आत्मिक स्थिति में अपने आपको ले जायें तो ये सब नैचुरल हो जाये।
कहने का मतलब ये है कि हम सब सोल कॉन्शियस होने का परिवर्तन नहीं कर रहे हैं। निंदा-स्तुति, मान-अपमान, जय-पराजय अगर अभी भी हमको अटैक करता है, किसी भी तरह से हिलाता है तो हमारी तपस्या तो नहीं है। अब इस तपस्या को ही असल में करके हमें अपने आपको ट्रांसफॉर्म करना है।
उदाहरण के रूप में अगर कोई योगी जंगल में तपस्या कर रहा हो तो कोई भी सांप-बिच्छू या कोई भी ऐसे आके हमको हिला दे तो कहते इतने समय की आपकी तपस्या भंग हो गई। ऐसे ही यहाँ है, अगर हमारी तपस्या किसी भी बात में भंग हो जा रही है माना किसी भी बात में हिल जा रही है तो आत्मिक स्थिति का ट्रांसफॉर्मेशन तो नहीं है ना! तो ट्रांसफॉर्मेशन आत्मिक स्थिति के आधार से माना जायेगा। व्यावहारिक कला, अच्छा बोलना, तारीफ सुनना, तारीफ करना ये सब बहुत ही हम सबके लिए नॉर्मल चीज़ें हैं, सामान्य चीज़ें हैं, लेकिन परिवर्तन सोल लेवल का ही होता है और वो जब आयेगा तो आपको विपरित या समान कुछ भी नहीं लगेगा। सबकुछ इक्कवल लगेगा, एकदम नया लगेगा, और लगेगा कि मैं इसमें रहते हुए भी बिल्कुल डिटैच्ड हूँ। तो क्यों न इस अभ्यास को बढ़ाकर अपने आप को सच में ट्रांसफॉर्म करें।