परमात्मा के गुणों को स्वयं में उतारने से ही सुख-शांतिमय विश्व की पुनर्स्थापना
– प्रकृति और व्यक्ति भाव से ऊपर उठकर ही परमात्मा का बोध – स्वामी प्रवक्ता नंद जी महाराज
– तीन दिवसीय अखिल भारतीय साधु-संत महासम्मेलन का समापन
– ब्रह्माकुमारीज़ के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में बड़ी तादात में पधारे साधु-संत एवं महात्माएं
भोरा कलां , गुरुग्राम, हरियाणा।
ब्रह्माकुमारीज़ के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में तीन दिवसीय अखिल भारतीय साधु-संत महासम्मेलन का समापन हुआ। परिसर के दादी प्रकाशमणी सभागार में आयोजित समापन सत्र में देश के अनेक स्थानों से आए साधु-संतों ने अपने विचार व्यक्त किए। परमात्मा द्वारा विश्व परिवर्तन की विधि और सिद्धि विषय पर बोलते हुए पीलीभीत, बरखेड़ा से आए विधायक स्वामी प्रवक्ता नंद जी महाराज ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ एक आध्यात्मिक संगठन है। उन्होंने कहा कि प्रकृति और व्यक्ति भाव से ऊपर उठकर ही परमात्मा का बोध होता है। स्वयं को शरीर समझना ही भ्रम है। जब तक हमारे में परमात्मा के गुण विद्यमान हैं, तब तक हम सुख, शांति और प्रेम से आनंदित रहते हैं। जैसे ही इन गुणों का ह्रास होता है, वैसे ही दुःख का आभास होने लगता है।
सहारनपुर से पधारे महामंडलेश्वर स्वामी कमल किशोर जी महाराज ने कहा कि ये संसार कर्म प्रधान है। जो जैसा कर्म करता है, वैसा फल पाता है। ब्रह्माकुमारीज़ संस्था कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान देती है। उन्होंने कहा कि उन्हें दादा लेखराज जी की जीवन कहानी पढ़कर महान प्रेरणा मिली।
हरिद्वार से पधारे महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद जी महाराज ने कहा कि रहन-सहन की पवित्रता ही सुख का आधार है। आहार शुद्धि से ही अंतःकरण की शुद्धि होती है।
वृंदावन से पधारे स्वामी श्री कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म की स्थापना स्वयं परमात्मा के द्वारा हुई है। उन्होंने कहा कि रूप बहुरंग होता है। स्वरूप अंतरंग होता है। रूप चाहे अनेक हैं लेकिन स्वरूप सबका एक ही है। आत्मिक दृष्टि से ही शांति भाव आएगा।
ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सम्मेलन से हम कोई न कोई प्रेरणा अवश्य लेकर जाएं। उन्होंने कहा कि 90 लाख साधु-संत अगर एक हो जाएं तो परिवर्तन सहज ही हो जाएगा। साधु केवल वही नहीं जिसने गेरुआ चोला पहना है। बल्कि वो हर व्यक्ति साधु है, जिसके अन्दर समदृष्टि है। प्रेम, दया और करुणा का भाव है। उन्होंने कहा कि अब हमें घर-घर में ध्यान अभियान चलाने की जरूरत है।
संस्था के प्रमुख महासचिव राजयोगी बृजमोहन ने कहा कि धर्म सत्ता का एक होना जरूरी है। एकता के कारण ही समरसता आती है। ज्ञान के मंथन से ही अमृत निकलेगा। इस प्रकार के भव्य आयोजन ईश्वर की ही प्रेरणा से ही होते हैं।
माउंट आबू से राजयोगिनी उषा दीदी ने कहा कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है। लेकिन परिवर्तन के साथ हमें भी परिवर्तन होना जरूरी है। अगर हम परिवर्तन नहीं होते तो समय परिवर्तन के लिए मजबूर करता है। जिससे बहुत पीड़ा होती है। परमात्मा संस्कार परिवर्तन के द्वारा ही संसार परिवर्तन करते हैं।
कार्यक्रम में जोधपुर से महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञान स्वरूपानंद जी महाराज, नोएडा से महंत मुकेश आनंद जी महाराज, सोनीपत से महंत शेष नारायण स्वामी, कैथल से महंत आशीष शास्त्री, हनुमान मंदिर, करोल बाग, दिल्ली से महंत ओम गिरी महाराज, कटनी से आचार्य पुष्पेंद्र, दिल्ली से महंत श्री महेश जी महाराज, पंजाब से पीठाधीश्वर श्री चंदर पाराशर जी महाराज, जबलपुर से काली नंद महाराज, वृंदावन से साध्वी डॉ. कृष्णा प्रिया, कर्नाटक से गीता विदुषी बीके वीणा, जबलपुर से डॉ. पुष्पा पाण्डेय एवं हैदराबाद से बीके त्रिनाथ ने भी कार्यक्रम के प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की।
कार्यक्रम में पधारे साधु-सन्तों के लिए विचार गोष्ठियों का भी आयोजन हुआ। साथ ही राजयोग के अभ्यास के द्वारा भी सभी ने शांति की गहन अनुभूति की। कार्यक्रम का संचालन संस्था के दिल्ली, लाजपत नगर सेवाकेंद्र प्रभारी बीके सपना ने किया।