हमारे कर्म औरों के लिए दर्पण बन जायें

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हम सबको पता है कि अभी यह पतित पुरानी दुनिया विनाश हुई पड़ी है और नई दुनिया स्थापन करने के लिए हम आत्मा भी सतोप्रधान, शरीर भी सतोप्रधान, तत्व भी सतोप्रधान बन रहे हैं। प्रैक्टिकली हरेक अनुभव करें, बाबा सर्वशक्तिवान है, ज्ञान का सागर है। बाबा प्यार का सागर, सुख का सागर भी है। इतना भी बुद्धि में आ गया, तो सागर के कण्ठे पर कितना अच्छा है क्योंकि शीतल वायु बहुत अच्छी है। तो क्लास में आना भी सागर के कण्ठे पर आना है, साइलेन्स में वॉक करना, साइलेन्स में बाबा की बातें सुनना, इससे कितना सुख मिलता है। समर्पण वो जिसके कर्म दर्पण जैसे हों। हम सबके सामने बाबा हमारा दर्पण है। फिर हमारा कर्म ऐसा हो जो औरों के लिए दर्पण बन जाये क्योंकि कर्म बड़े बलवान हैं, परमात्मा सर्वशक्तिवान है। श्रेष्ठ कर्म करने से अच्छी शक्ति आयेगी। बाबा कहता है सिर्फ अंगुली दे दो बस, लेकिन अंगुली हाथ के बगैर तो आयेगी नहीं। तो हाथ भी आ गया, हाथ हार्ट के बगैर नहीं आयेगा, होशियार है भगवान, फिर गले लगा लिया। लेकिन बुद्धि समर्पण होती है दिल से, दिल में सच्चाई नहीं है तो बुद्धि ठीक काम नहीं करती है।
आठ शक्तियों में परखने की शक्ति नम्बरवन है। यह राइट है, रॉन्ग है, समेट लिया या समा लिया। जिसको परखने की शक्ति नहीं है वो जौहरी नहीं है, अनाड़ी है। जौहरी की आँख तेज हो, दृढ़ता की शक्ति हो और एक परमात्मा से प्यार हो। सौदा ऐसा हो। मेरे लिए यह ज्ञान रत्न हैं, वैल्यू उसकी है। उन्हें परखने वाले हम बाबा के रत्नागर बच्चे हैं। उनसे फिर सेवा ऐसे होगी जैसे जादूगर। एक सेकण्ड में क्या से क्या बन जाता है और क्या बना देता है। कल हम क्या थे, आज बाबा ने कैसा बना लिया। कल का आया हुआ बच्चा भी बदल जाता है। समझ लिया ना, यह ज्ञान रत्न हैं।
नियत साफ मुराद हासिल, सारी वैल्यू नियत पर है। नियत में दिल की भावना भी आती है। सच्ची है या नहीं है। कहते हैं इसकी नियत ठीक नहीं है, सम्भालना। इसके सूक्ष्म वायब्रेशन आते हैं। तो हम अपनी नियत देखें। हैवान और इन्सान। अन्दर की दुनिया कुछ और है और बाहर की दुनिया कुछ और। अपने से पूछो कि अन्दर की दुनिया हमारी कैसी है। जिसकी नियत अच्छी है, उसकी अन्दर की दुनिया कैसी होगी! हम क्या देखें? बड़ी-बड़ी बिल्डिंग हैं, उसमें है ही क्या! शीशा, गिरेगा तो क्या होगा! वो दुनिया को क्या समझते हैं और हम दुनिया को क्या समझते हैं। ऐसी दुनिया में हम कैसे रहें? ऐसी दुनिया में धन्धा भी करना है, बाल-बच्चों को भी सम्भालना है। बाबा कहता है ऐसी दुनिया में रहते हुए निमित्त मात्र रहो, किसी को अपना नहीं समझो, अपना समझ किसी में लगाव नहीं रखो। ऐसे रहने से जिनके साथ रहेंगे उनका कल्याण होगा।
हम कल्याण भाव से रहते हैं, बाकी और कोई भाव नहीं है। कुछ नहीं चाहिए, अन्दर से दिखाई पड़े कि इतना इसको वैराग्य है। देह के भान से परे। अभिमान तो नहीं है, कोई दु:ख-सुख का प्रभाव तो नहीं है! तो दुनिया में रहते पश्चाताप नहीं करना है। ऐसा नहीं पहले खा लो फिर रो लो। यहाँ तो पाप की दुनिया है, पीस का तो देवाला है। प्यार तो है ही नहीं। ऐसे में रहते उन्हों को बदलने के लिए रहो और हमारे पास अन्दर बहुत कुछ है उनको बदलने के लिए। इसका अभिमान नहीं है, पर है। चलन हमारी ऐसी हो, सदा ही महान आत्मा की तरह मेहमान होकर रहें।

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