मंथन से निकलेगा अमृत

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शास्त्रों में समुद्र मंथन का गायन है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तो उसमें एक वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। मंदराचल पर्वत को बीच में रखा गया। जिसके चारों तरफ वासुकि नाग को लिपटा हुआ दिखाते हैं। एक तरफ असुर और दूसरी तरफ देवता। देवताओं को मूंछ की तरफ दिखाया और असुरों को सिर की तरफ दिखाया। और समुद्र मंथन में कहते हैं कि चौदह रत्न निकले, ये कहानी है। लेकिन क्या ऐसा संभव हो सकता है? आपके हिसाब से आज का विज्ञान का युग है।
समुद्र इतना गहरा होता है कोई भी पर्वत, कितने सारे पर्वत उसके अन्दर समा जायें। और पर्वत को घुमाना आसान काम है क्या! तो कोई भी किस्सा और कहानी को जब पिरोया जाता है तो उसके पीछे कोई न कोई मर्म होता है। और उस मर्म को जानने से ही हम उस बात के साथ अपने आपको जोड़ सकते हैं। ये समुद्र मंथन आपके जीवन की कहानी है। जिसमें एक व्यक्ति की जो दिनचर्या है उसको बड़े ध्यान से देखें तो उसमें पायेंगे कि उसमें देवता भी हैं और असुर पक्ष भी है। कहा जाता है कि देवतायें पूंछ की तरफ हैं और असुरों को सिर की तरफ दिखाया। सिर का मतलब जिसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार भरा हुआ है। और पूंछ की तरफ देवताओं को दिखाया कि थोड़ी बहुत पूंछ, पूंछ का मतलब पूछना थोड़े बहुत गुण, जो हम सबके अन्दर बचे हैं उसी आधार से ही तो हमारा परिवार चल रहा है। और जब देखो घर में किसी बात पर कोई मनन-चिंतन होता है, कोई डिस्कशन होता है तो कोई बात निकल आती सामने कि नहीं अगर ये बात ऐसे की जाये तो बहुत अच्छा है। लेकिन उस समय दोनों चीज़ें लड़ रही होती हैं, एक असुर पक्ष भी लड़ रहा होता है, एक देवता पक्ष भी अन्दर ही अन्दर द्वंद्व में जी रहा होता है।
लेकिन मंदराचल पर्वत का मतलब ही यही है कि मन के अन्दर अचल स्थिति। मन के अन्दर रहते हुए हमारी स्थिति इतनी अचल हो, इतनी अडोल हो कि हम आराम से कोई चीज़ का सॉल्यूशन निकाल पायें, समाधान निकाल पायें। तो उसमें दिखाते हैं चौदह रत्न कौन-कौन से निकले हैं- पहला निकला श्री माना श्रेष्ठ बनना। दूसरा, मणि, रम्भा, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज, कल्पतरु, शशि, धेनु, धन, धन्वंतरि, विष, बाज। ये चौदह रत्न हैं। अब इन चौदह रत्नों का हमारी दिनचर्या में क्या गायन है। परमात्मा हमको रोज़ श्रेष्ठ विचार देते हैं। श्रेष्ठ थॉट देते हैं। जिससे हम श्रीलक्ष्मी-श्रीनारायण बनते हैं। मणि का मतलब आत्मा बनाने का अभ्यास कराते हैं। रम्भा का मतलब परी बनाते हैं कि अगर आप दिन-रात अभ्यास करें तो आप फरिश्ता स्थिति को प्राप्त करेंगे। वारुणी का मतलब जल की तरह ट्रांसपेरेन्ट बनाते हैं, पारदर्शी बनाते हैं। अमिय, अमृत के समान हमको ज्ञान अमृत पिला कर अमर बनाते हैं और दूसरों को भी वही बातें सिखाकर हमारे जीवन को अमर बनाने की बात करते हैं। शंख का मतलब निरंतर परमात्मा की बातें करने से हमारा मुख भी पवित्र होगा, और हमारा जीवन भी सुखमय होगा। गजराज,एरावत हाथी का बहुत वर्णन है कि एरावत हाथी इन्द्र का हाथी है जो सदा मस्त रहता है, उड़ता रहता है, तो ऐसे ही हम इस जीवन में होंगे, चारों तरफ परिस्थितियां होंगी फिर भी हमको उडऩा है। एरावत हाथी का इसलिए उदाहरण दिया जाता है।
फिर कल्पतरु, पूरे वृक्ष की नॉलेज। परमात्मा जो हमको देते हैं ताकि हमारे अन्दर ड्रामा की हरेक बात को लेकर कभी कोई संशय न आये। फिर आया शशि, शशि का मतलब चन्द्रमा की तरह शीतलता। चन्द्रमा की तरह शीतल बनाते हैं। फिर धेनु,कामधेनु, कामधेनु की बात की जाती है माना सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करना। हम सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करने का मतलब जो भी जिस परिस्थिति में है उसे उससे बाहर निकालना। धन, ज्ञान धन दिया। ज्ञान धन से स्थूल धन कहा जाता है जितना ज्ञान उतना स्थूल धन। फिर धन्वंतरि, परमात्मा ने हमको चिकित्सक बनाया। सबसे बड़ा चिकित्सक का मतलब हम खुद ही खुद के चिकित्सक बनें। आपसे ज्य़ादा आपको कौन जान सकता है! शारीरिक अवस्था, फिर मानसिक अवस्था, फिर विष जितने भी बुराई, विकार लोगों के हैं, उनको छुड़ाने का काम करना। इसलिए कहा जाता है विष बाज। विष का मतलब होता है निलकंठ। नीलकंठ का एक वर्णन है शास्त्रों में कि जब शंकर जी ने सबका विष पिया तो उसको विष बाज कहा, बाज का अर्थ है कि जो दूर से ही हर एक चीज़ को भांप ले। परिस्थितियों को भांप ले। वो बाज की कैटेगिरी है।
तो ये सारे चौदह रत्न आपके पूरे दिन की दिनचर्या को आपके सामने रखते हैं और इसी का मनन-चिंतन अगर हम रोज़ विचारों के साथ करेंगे तो सॉल्यूशन निकल कर आयेगा ही आयेगा।

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