ऋषिकेश,उत्तराखंड: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, ऋषिकेश संस्था में गीता जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य था “गीता ज्ञान से ही विकारों व अधर्म का विनाश, एवं सतयुगी दुनिया की स्थापना”
महामंडलेश्वर स्वामी गणेशदास जी महाराज ने कहा एहसास होता है कि प्रजापिता ब्रह्मा इसका सारथी स्वयं ईश्वर है पूरी सृष्टि का बीज यह प्रजापिता ब्रह्मा ही है इस भवन में बैठकर मुझे शिवालय महसूस होता है मैं कभी मुख्यालय माउंट आबू नहीं गया परंतु यहां बैठे-बैठे मुझे ध्यान में उसकी शांति व शक्ति का अनुभव होता है। दादा लेखराज द्वारा परमात्मा ने जो ज्ञान दिया उसकी प्रतियां भारतवर्ष के प्रत्येक आश्रम में प्रतिदिन सुनाई जाती है (जिसे मुरली कहते हैं) यही ब्रह्माकुमारी की गीता है |
महंत रवि प्रपन्नाचार्य शास्त्री जी महाराज ने बताया मुझे गंगा तट पर स्थित इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आने का प्रथम अवसर मिला है यहां पढ़ने वाले साधकों का परम सौभाग्य है कि वह भगवान शिव से ईश्वरीय ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, ब्रह्माकुमारी संस्था ने आज पूरे विश्व में अनुशासन, सेवा, समर्पण व सरलता का अपना वर्चस्व कायम किया है। वृद्धावस्था में प्रभु की शरण में आने से कोई औचित्य नहीं है जबकि युवावस्था से ही कर्म करते ईश्वर का सानिध्य ही मुक्ति का मार्ग है इसलिए उन्होंने गीता जयंती पर सभी को संकल्प कराया कि अपने-अपने बच्चों को गीता ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित करें।
महामंडलेश्वर स्वामी स्वतंत्रानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि गीता हमारा मार्गदर्शन करती है इसी से हमारी शरणागति होती है। गीता का सार ही है त्याग।
में-पन, विकारों और कर्तापन का त्याग। ब्रह्माकुमारी संस्था अपने साधनों को गीता ज्ञान में परागंत कर अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रही है। आजकल 90% लोगों को मानसिक डिप्रेशन है मनुष्य पैसे को ही अपना सब कुछ मान रहा है जबकि वह बाहरी वैभव है, सुख हमें ध्यान से मिलता है और वैभव हमें पैसे से खरीदना पड़ता है आज 95% लोग सुख और वैभव को एक ही बात मानते हैं।
देहरादून से पधारी बी०के० मंजू दीदी जी ने बताया गीता जयंती कोई साधारण पुस्तक या ग्रंथ नहीं है, यह परमात्मा के मुख द्वारा उच्चरित ज्ञान है, परमात्मा ने अर्जुन को कहा कि बुद्धि से ज्ञान का शस्त्र उठा व मोह का त्याग कर। आज ब्रह्माकुमारी संस्था में ज्ञान अर्जित करने वाले प्रत्येक अर्जुन को परमात्मा तब तक ज्ञान देते रहेंगे जब तक वह नष्टोमोहा स्थिति प्राप्त न कर ले। जब मन स्वच्छ और पवित्र हो जाएगा तो यह परमात्मा में लग जाएगा व मनमनाभव बन जाएगा, एवं अच्छा सोचने से जीवन सुगंधित हो जाएगा। गीता का सार ही है कि जो हुआ वह अच्छा, जो हो रहा है वह भी अच्छा, और जो होगा वह और भी अच्छा होगा।बी०के० आरती दीदी ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता का आधार इस श्लोक में समाया है यदा यदा ही धर्मस्य ….. युगे युगे। बचपन से ही हम प्रार्थना करते आ रहे हैं कि अस्तो मा सद्गमय …….. ज्योतिर्गमय। अर्थात हे प्रभु मुझे अंधकार से प्रकाश व असत्य से सत्य की ओर ले चलो। परमात्मा शिव ही सत्य है और वही सुंदर है। गीता में लिखे अनुसार जब-जब धर्म की अति ग्लानि होती है, तब-तब परमात्मा का धरती पर अवतरण होता है। आज कलयुग में मदिरालय भरे हैं और शिवालय खाली है श्रीमद् भागवत गीता का सार यही है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में भगवान ने अर्जुन को ज्ञान दिया कि वत्स तुम्हें धर्म युद्ध करना है वास्तव में यह युद्ध अपने अन्दर के विकारों व व्यसनो से मुक्त करना था। स्थूल युद्ध तो हिंसा कहलाता है। कुरुक्षेत्र यानी कर्म-युद्ध। परमात्मा जिस रथ के सारथी बने वह स्थल नहीं बल्कि शरीर रूपी रथ है। भगवान ने अर्जुन को मन रूपी घोड़े को ही वश में करने का ज्ञान दिया था इस ज्ञान को अर्जित करने वाला अर्जुन है।
मंच का कुशल संचालन करते हुए बी०के० सुशील भाई ने बताया कि गीता ही सर्व-शास्त्र शिरोमणि है वह जीवन जीने की कला सिखाती है। श्रीमद् भगवान उवाच जब सब कुछ गीता में लिखा है तो धारण क्यों नहीं किया गया वास्तव में इसके लिए जरूरत थी अभ्यास व वैराग्य की। पूर्व जन्म में किसी को नहीं पता था कि दुनिया कब खत्म होने वाली है, परंतु आज कलयुग अंत में इन आंखों से जो दिख रहा है वह बहुत जल्दी खत्म होने वाला है, एवं गीता ज्ञान से ही नयी दुनिया की स्थापना होगी, और गीता जयंती मनाना सार्थक हो जाएगा।