समर्पित जीवन का ताज़ा समाचार…

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समर्पण की बात करते हैं, जिसको हम कहते हैं डेडिकेशन, डिवोशन। जिसको हम कहें तो हमारा एक-एक अंग, प्रत्यंग शीतल। हम कहते हैं, ‘संत बड़े परमार्थी… शीतल जिसका अंग। अब बात यह है कि ये शीतलता आयेगी कैसे? शीतलता कब आयेगी, जब हम शिव बाबा को अर्पित कर देंगे। समर्पण का मतलब जब हम मोटे रूप से भी कहते हैं तो हमारा तन भी, मन भी, धन भी और बुद्धि भी। हम जो भी हैं, जैसे भी हैं, बाबा तेरे हैं, इस क्षण से, इस घड़ी से हम तेरे हैं। जैसे हैं, तू संभाल ले हमें। हमारा कल्याण कर, आपके हाथ में हैं हम। तू जो हमें कहेगा, हमारा वचन… हम वैसे ही करेंगे। ये वचन हम निभायेंगे और आपका वचन ये है कि आपको मैं सब पापों से मुक्त करा दूंगा। सब विकारों से छुड़ा दूूंगा, दु:ख और अशांति से बिल्कुल निजात दिला दूंगा। आप अपना वचन पूरा करेंगे ही, इस तरह हमारा एक प्रकार से एग्रीमेंट हो जाता है।
उसमें हम समर्पण की बात कहते हैं तो महीनता से, गहराई से, विस्तार से, स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि हरेक इंद्रियां समर्पित रूप से हों। हमारी आदत में खाने के चस्के लगते हैं कुछ, वह अच्छा लगता है, यह अच्छा लगता है लेकिन यहां जो मालिक की मर्जी है, जो खिलाये, जो पिलाये, या हमारे कुछ लफड़े हैं! यह चीज़ चाहिए, वह चीज़ चाहिए।
हमारी देखने की वृत्ति, दृष्टि कैसी है? जब हमने अपना यह नेत्र भगवान को समर्पित कर दिया तो भगवान क्या चाहेगा, हम इनके द्वारा कैसे देखें? वो कैसे यूज़ करना चाहेगा? प्रेम से, प्यार से, सद्भावना से, किसी को कल्याण की दृष्टि से तो किसी को आत्मिक-भाव से। उसका देखना वो कैसा होगा, बिल्कुल सामान्य व्यक्ति की तुलना में अलौकिक होगा। और बाबा कहते हैं, सी नो ईविल, डू नो ईविल, बुरा मत देखो। क्या हम हरेक की बुराई नोट करते रहते हैं, अवगुण नोट करते रहते हैं! तभी तो हमें दूसरों को वर्णन करने का मटेरियल मिलता है डेली। हमारा समाचार पत्र ही अलग प्रकार का है। वो जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस तो अलग-अलग निकलते हैं लेकिन हमारा अपना न्यूज़ पेपर अलग है। देखो हम आपको बतायें, आज फिर से मुझसे झगड़ा किया, हाँ फिर झगड़ा किया। क्या कहती थी वो, अरे उसकी तो आदत ही है, तू जानती है ना! झगड़ालू है वो। आये दिन झगड़ा करती रहती है।
आज मैं चाय पीने गई, उसने यह कहा, उसने वह कहा, यह है आज का ताज़ा समाचार। आजकल हम सुनते हैं, समाचार भी मिड डे, ईवनिंग न्यूज़, ब्रेकिंग न्यूज़ निकलती है ना। यह है आपकी आज की ताज़ा खबर। इन खबरों में क्या भरा हुआ रहता है! तो बाबा कहते हैं, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल। अपनी हर एक कर्मेन्द्रियों का क्या प्रयोग करना है? यह तो निगेटिव है, लेकिन बाबा कहते हैं, पॉजि़टिव तरीका क्या है? हमारे मुख से कैसे रतन निकलें? किसी के प्रति ऐसे शब्द निकले वाह…वाह…, और कहो कुछ। ऐसे नहीं कि किसी की तारीफ के पुल बांधते ही रहें, यह भी नहीं। लेकिन जो बाबा ने हमें खज़ाने दिये हैं उनके गुण गाते रहें। हमारे मन से किसी के गीत निकलेंगे, इस हृदय वीणा से किसी की झनकार निकलेगी, तो उस प्रकार से हमारे मुख से बोल निकलेंगे।
हमारा नयन है, वो मीठी दृष्टि से, स्नेह भाव से, दूसरे के प्रति सद्भावना से, उसके प्रति कल्याण की दृष्टि से देखने के लिए। किसी में हमें खराबी दिखाई दी, ऐसे तो नहीं है कि हम आँखें बंद कर रहते हैं! आँखें अगर ठीक न हों तो आँख वालों के पास जाकर ठीक करा कर आते हैं। कहते हैं ना, कहां गया था? तो कहते हैं, आँख दिखाने। आँख दिखाने के दो भाव हैं। समझ गये आप, सोच के ही हँसेंगे ना। माना कि आप जानते हैं आँख दिखाने का मतलब। लेकिन जो हमारे नेत्र हैं, जिसको हम कमल नयन, कमल हस्त, कमल मुख कहते हैं, वो कैसे बनेंगे, जब हम समर्पित करेंगे। तो हमें देखना चाहिए कि हमारी जो कर्मेन्द्रियां हैं उन्हें हम कर्मेन्द्रियातीत बनाना चाहते हैं।
किसी ने कहा, इंद्र की पूजा करनी चाहिए। शास्त्रों में आधे से ज्य़ादा इसी के बारे में वर्णन है। लोग समझते हैं कि वर्षा करने वाला इंद्र है लेकिन इंद्र शब्द की संस्कृत में व्याख्या करके देखना चाहें, तो जिसने इंद्रियों को जीता वह इंद्र है। वो ज्ञान वर्षा करता है। जिन मनुष्यों का मन शांति से सूख गया हो, जिसमें मानवता सूख गई हो, जिसमें नैतिकता सूख गई हो, उनपर ज्ञान वृष्टि करके वो हरा-भरा करता है। जो इंद्रियों को जीता हुआ हो, वो है इंद्र।
इसका स्पष्टिकरण है तो इंद्र पद, देवताओं का आदि पति है, वो इंद्र है। वो ब्रह्मा के समतुल्य है, ब्रह्मा का एक नाम ‘इंद्र’ है। उसने सब इंद्रियों को जीता कैसे? क्योंकि उसने अपने को समर्पित किया। तो समर्पण करने से, वो जैसा चाहे वैसा ही हमारी कर्मेन्द्रियां करें, तभी हम समर्पण हैं। सोचने की बात है, कई बार इंद्रियां अपने प्रलोभन में हमें समर्पण के विपरीत कर देती हैं। तो हमें ध्यान रखना है, जिस तरह परमात्मा के प्रति हमारा अनुबंध है, मैं जो हूँ, जैसा हूँ, तेरा हूँ, और बाबा कहते, मैं जो हूँ, जो मेरा है, सबकुछ तेरा है। इसको हमें हमेशा स्मृति में रखना है। स्मृति ओझल न हो जाये, इसका ध्यान रखना है।

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