दूसरों को देख उनकी कमज़ोरियों को फॉलो नहीं करना, उनकी कमज़ोरियों को देखकर वो कमज़ोरी मेरे अन्दर तो नहीं है, ये चेक कर लेना।
कोई भी भाई या बहन जब ईश्वरीय ज्ञान लेता है, जो ज्ञान स्वयं भगवान ने दिया है। जब उसे निश्चय हो जाता है और उसे प्रभु मिलन की अनुभूति होने लगती है तो उसे सत्य मार्ग मिल जाता है। उसका नशा चढ़ जाता है। खुमारी हो जाती है वाह मेरा भाग्य! भगवान मिल गए। बाबा जो लक्ष्य मुरलियों में देता है, उसको बहुत दृढ़ता होती है मैं नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी अवश्य बनूंगा। मैं रोज़ आठ घंटे योग कराऊंगा। वाह मेरे तो भाग्य ही खुल गये। सतमार्ग मिल गया। मैं कितने अंधकार में भटक रहा था, मेरे जीवन का अंधकार हे प्रभु! तुमने आके हर लिया। उसके पैर ज़मीन पर नहीं रहते। उसकी खुशी आसमान छूती रहती है। सबको अनुभव है। पर धीरे-धीरे खुशी का, नशे का पारा डाउन होने लगता है।
आज हम कुछ कारणों को आपके सामने रखेंगे। जिसके कारण ये नशा और ये खुशी डाउन होती है। हमारी खुमारी कम होने लगती है। हालांकि भगवान से मिलन के अनेक अनुभव हो जाते हैं, शिव बाबा की मदद के भी बहुत सारे अनुभव होने लगते हैं। बाबा हमें बहुत प्यार करता है ये आभास भी बहुत अच्छी तरह होने लगता है। परंतु पहली बात तो ये कि हमारी धारणायें बहुत सूक्ष्म हैं। प्युअर बनना है। खुशी और नशे में तो प्युरिटी इज़ी लगती है। जैसे ही मनुष्य काम धंधे में बिजी होता है और खुशी और नशा कम होता है तो प्युरिटी भारी लगने लगती है। फिर खुशी और नशा और डाउन होने लगता है। फिर मनुष्य क्या गलती करता है, आलस के अधीन होने लगता है। सवेरे उठना, ये रोज़-रोज़ उठना तो बड़ा भारी काम है। कभी-कभी उठना होता है तो ठीक था। रोज़ सवेरे-सवेरे तैयार होके मुरली सुनने जाना। रात देर से सोये थे, आज मेहमान आ गये थे। बड़ा भारी काम है। अच्छा हमने ये मार्ग अपना लिया, हमारा तो सुख भरा जीवन ढीला पड़ गया। मनुष्य ये सोचता है तो ढीला हो जाता है। ढीला होने से ईश्वरीय मदद कम हो जाती है। जो जीवन में एक उमंग-उत्साह रहना चाहिए वो भी फीका पडऩे लगता है। एक ये बड़ा कारण होता है आलस और अलबेलापन। फिर संगठन में रहते हैं। दूसरों को देखा कि वो तो भोजन खाते हुए बातचीत कर रहे हैं तो सोचते हैं हमने तो सुना था कि योगयुक्त होकर भोजन खाना चाहिए। हम तो बहुत साइलेन्स में, योगयुक्त होकर भोजन करते थे। ये तो सभी लोग ऐसे ही कर रहे हैं तो ढिलाई आने लगी। दूसरों को देखने से बहुत ढिलाई आती है। अरे योग में उन्हें पता चलता है कि फलाना भी नहीं आता, फलानी भी नहीं उठती तो हमें क्या पड़ी है, जो भाग्य में मिलेगा वो ले लेंगे ना। और ढीले हो जाते हैं।
दूसरा बड़ा कारण है, दूसरों को देखना, उनकी कॉपी करना। बाबा ने बहुत हँसाया था एक बार। चार भाई एक कमरे में सोये हुए हैं, एक की आँख खुलती है सवेरे 3:30 बजे। वो रजाई से बाहर मुँह निकाल कर देखता है कि बाकी तीन तो सोये हुए हैं तो वो भी सो जाता है। हँसाया था बाबा ने बहुत। तो ये दूसरों को कॉपी करना इससे गिरावट बहुत आती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं उनकी आँख खुली उन्होंने देखा कि बाकी सब सोये हुए हैं तो वो जागृत हो जाता है कि अच्छा ये अपना भाग्य गंवा रहे हैं मैं इनसे ज्य़ादा भाग्य, श्रेष्ठ भाग्य बनाऊंगा। और वो उठकर तीव्र पुरुषार्थ करने लगता है। ये रियल बात, दूसरों को देख उनकी कमज़ोरियों को फॉलो नहीं करना, उनकी कमज़ोरियों को देखकर वो कमज़ोरी मेरे अन्दर तो नहीं है ये चेक कर लेना और उसको चेंज कर देना। ये आवश्यक होता है।