सेवा के साथ-साथ केवल त्याग नहीं, त्याग वृत्ति हो -अभिमान… सब बुराइयों का मूल

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सेवा के साथ त्याग और तपस्या की जो बात है इस पर पूरा ध्यान देंगे तो बैलेन्स भी ठीक चलेगा और हमारी स्व उन्नति भी ठीक तरह से होगी। इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं- बच्चे, जब भी कहाँ सेवा में जाओ तो बाबा को याद करके जाना।

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अगर आप पहले स्वयं आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर, शिव बाबा को याद करके, अपनी उस आनन्द की स्थिति में स्थित होकर बाबा की महिमा करेंगे तो उसके मन को वह लगेगी, उसको टच होगा, बाबा भी आपकी मदद करेगा, उस आत्मा का कल्याण हो जायेगा। अब आगे पढ़ेंगे…
जो शुरू करने से पहले बाबा से बातें करो – बाबा इस आत्मा का भी कल्याण हो जाये, बाबा इसकी बुद्धि का ताला खुल जाये, मेरा भाई आया है यह भी आपका वर्सा प्राप्त करे। जब आपका मन शुभ कामना, शुभ भावना से द्रवित हो जायेगा, ऐसी स्थिति से आप उस आत्मा को निहारते हुए बात करेंगे तो वह भी कुछ अनुभव करेगा। यदि आप किसी बात से किसी को कन्विन्स नहीं कर पाये तो बिचारा वह टूट जायेगा। उसको कहो कि हमसे बड़े और हैं जो आपको समझायेंगे। कोई बात नहीं, अगर हमने ठीक प्रकार से नहीं समझाया तो बड़े-भाई बहनों से समझ सकते हो। बाबा कहते हैं हट्टी तो एक ही है, दूसरी हट्टी इस तरह की, इस सौदे की दुनिया में है ही नहीं। अगर बाबा के घर में आकर खाली हाथ लौट गया यह तो एक बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा। तो सेवा के साथ त्याग और तपस्या की जो बात है इस पर पूरा ध्यान देंगे तो बैलेन्स भी ठीक चलेगा और हमारी स्व उन्नति भी ठीक तरह से होगी। इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं- बच्चे, जब भी कहाँ सेवा में जाओ तो बाबा को याद करके जाना।
ऐसे जीवन में हमने कई बार देखा है, याद करके कोई काम शुरू करते हैं और यह समझते हैं कि बाबा ही करनकरावनहार है, हम तो इन्स्ट्रुमेंट्स हैं, इस आत्मा का भक्ति का पार्ट पूरा हो गया है, अब इसके ज्ञान में आने का टाइम आ गया है, बाबा इसको ढूंढकर कहीं से लाया है, इसके निमित्त ही बाबा ने यह सेवा स्थान यहाँ खोला है, बाबा ने तो हमको केवल निमित्त बनाया है, बोलने वाला तो बाबा ही है, इसके भाग्य बनने का समय आ गया है, भाग्य विधाता तो बाबा ही है- जब ये बात हम समझते हैं तो सफलता फटाफट होती है। जब हम यह समझते हैं कि हम तो समझाने में बड़े कुशल हैं। सब यही कहते हैं कि यह तो बड़ा अच्छा समझाता है। मुझे खास इसको समझाने के लिए कहा गया है। हम ही इनको समझाने वाले हैं, अपने बारे में हम बहुत कुछ समझ लेत हैं। शिव बाबा को एक तरफ रख देते हैं और स्वयं ही सामने आ जाते हैं, तो उसके सामने से भी शिवबाबा हट जाते हैं, हम ही सामने रह जाते हैं, हड्डी-मांस का पिंजर ही सामने रह जाता है, उसका नतीजा हम देखते हैं- हम पत्थर के साथ सिर मारते हैं, पत्थर तो फूटता नहीं, सिर ही फोड़ते हैं, वह आदमी बिना कुछ कहे चले जाता है। हम ही कहते हैं यह आदमी कई दिनों तक आया, कोर्स किया, यह आदमी अब आता क्यों नहीं? बाबा ने कितनी मेहनत से हमारे पास उस आत्मा को प्रेरित करके भेजा। यदि प्राइम मिनिस्टर किसी को रिकमन्ड करके भेजे और हम अनदेखा कर दें!
बाबा ने हमें भेजा सेवा करने के लिए, हमारा भाग्य बनाने के लिए, उसका भी भाग्य जगाने के लिए और हम त्यागमूर्त नहीं, तपस्यामूर्त नहीं, मान और शान में आकर अपनी इच्छा और तृष्णा में आ गये और अपने ही पन में ‘मैं हूँ कुछ’ इस अभिमान में आ गये, सेवा-अभिमान में आ गये तो बाबा कहते हैं मेरे बच्चे ज्ञानी होने के बावजूद, योगी होने के बावजूद देह अभिमानी हैं। अभी तक उनमें जो रूहानियत आनी चाहिए, वह है नहीं। इसलिए सेवा के साथ-साथ केवल त्याग ही नहीं, त्याग वृत्ति हो, हमें कुछ नहीं चाहिए। बाबा मिल गया, सबकुछ मिल गया। हमें तो केवल योगी जीवन चाहिए, बाबा ने वह दे दिया। बस।

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