जीवन में नियम रखने पड़ते हैं। मर्यादाएं रखनी पड़ती हैं। एक लक्ष्य सामने रखना है, ये करते-करते हमारे संस्कार बदल जाएंगे।
जब हमारा कोई महत्वपूर्ण काम होता है तो हम बड़ों से आशीर्वाद भी लेते हैं। फिर अपने काम पर जाते हैं और काम हो जाता है तो हम कहते हैं आपके आशीर्वाद से मेरा काम हो गया। वास्तव में उनका आशीर्वाद हमारा काम नहीं कराता है बल्कि उनका आशीर्वाद हमारे मन की स्थिति को ठीक कर देता है। हमारी मन की अच्छी स्थिति काम करती है तो हमारा काम ठीक हो जाता है। तो हमारे मन की स्थिति आशीर्वाद से ठीक हो सकती है तो क्या हम बच्चे की सफलता के लिए अगले तीन महीने आशीर्वाद नहीं दे सकते हैं? इसके लिए चार बातें अच्छे से याद कर लेते हैं- 1. ये शक्तिशाली आत्मा हैं, 2. इनकी एकाग्रता अच्छी है, 3. ये अपनी क्षमता से ज्य़ादा पढ़ते हैं, 4. इनकी सफलता तय है।
अगर बच्चे की दिसम्बर से फरवरी के अंत तक या मार्च के पहले सप्ताह में परीक्षा होनी है तो मम्मी-पापा आज से लेकर परीक्षा के समापन तक घर में सिर्फ यही सोचें और बोलें। अगर बच्चों के नम्बर 80 आते थे तो 85 हो जाएंगे, 90 आते थे तो 95 हो जाएंगे। उनके लिए घर में एनर्जी क्रिएट करनी है। हम उन्हें अच्छा खाना-पीना देते हैं, जो अच्छी बात है। लेकिन शरीर के साथ-साथ उनके मन को भी शक्ति देनी है। आप आज से ही शुरू कर दो।
सुबह उठो, 5 मिनट बैठो, परमात्मा को याद करो और ये एनर्जी क्रिएट करो। रात को सोने से पहले परमात्मा को याद करो ये एनर्जी घर में प्रसारित करो। जब भी बच्चा याद आए, उसका एग्ज़ाम याद आए तो 30 सेकंड रूको और ये एनर्जी घर में फैलाओ। कोई और आकर भी बोले कि ओहो, आपके बच्चेे के एग्ज़ाम हैं तो बोलो ऐसे नहीं बोलते इस घर के अन्दर। एंग्जायटी और टेंशन को ना कहेें। हाई एनर्जी के घर में बच्चा पढ़ेगा तो उसका मन एकाग्र हो जाएगा, उसका पढऩे का मन करेगा, उसकी क्षमता बढ़ जाएगी। वो सिर्फ पढ़ाई में ही अच्छा नहीं हो जाएगा, उसकी आत्मिक शक्ति भी बढ़ जाएगी।
आजकल के बच्चे एग्ज़ाम के समय पर डर जाते हैं। कई बच्चों को एंग्ज़ायटी हो रही है। हमने उनको सबसे अच्छे स्कूल में भेजा। सबसे अच्छी कोचिंग क्लासेस में भेजा। अच्छे से अच्छा भोजन दिया। अब हमें उनको सबसे अच्छी एनर्जी भी देनी है। हमें अपने घर के वातावरण को हाई एनर्जी वाला बनाना है। ताकि हमारे घर में जो रह रहा है, उसके मन की शक्ति साफ हो, पुरानी बातें ना हों, एकाग्रता की शक्ति उच्चतम हो। दिसम्बर से लेकर परीक्षा की समाप्ति तक घर में कोई किसी से बहस नहीं करेगा। जीवन में नियम रखने पड़ते हैं। मर्यादाएं रखनी पड़ती हैं।
एक लक्ष्य सामने रखना है, ये करते-करते हमारे संस्कार बदल जाएंगे। आजकल के बच्चे कहते हैं एकाग्रता नहीं आ रही। क्योंकि घर की एनर्जी खराब है। हम उनको कहते हैं एकाग्र बनो, लेकिन ये बोलकर नहीं होता, एकाग्रता वाला माहौल बनाना होता है। जब हम करेंगे तो सबसे पहले हमें ये पता चलेगा कि हमारे पास कितनी क्षमता थी कि जो हम सारा दिन बिना बात के उसे बर्बाद करते जा रहे थे। अब बूंद-बूंद कर एनर्जी बच रही है।