बाबा कहता है बस ड्रामा को याद करो और ड्रामा पर स्थित हो जाओ तो कोई भी फिक्र या चिन्ता जो भी होता है वो नहीं होगा। हम ड्रामा-ड्रामा कह रहे हैं मानों अन्दर सोचते हैं। लेकिन ड्रामा कहा, तो ड्रामा कहने के बाद हमारी बेफिकर स्थिति चाहिए। अगर वो हमारी स्थिति नहीं है तो वो ड्रामा का ज्ञान हमने समाया तो नहीं ना! सुनने के टाइम अच्छा लगता है। जैसे किसी की लॉटरी निकलती है तो उसका चेहरा चमकता है। तो हमारा चेहरा सदा खज़ानों से सम्पन्न लगता है? भरपूर चीज़ और खाली चीज़ दोनों में फर्क होता है ना। जैसे हमने बाबा का, दीदी का, दादी का चेहरा देखा तो चेहरे से ही लगता था कि कुछ है। तो ऐसे ही हमारा चेहरा और चलन सम्पन्न की है? क्योंकि बाबा हमको सम्पन्न देखने चाहता है।
यह सारे खज़ाने अविनाशी हैं, देने वाला कौन है? भगवान ने मेरे को दिया है, आज कोई प्राइम मिनिस्टर कुछ देता है तो उसे कितना सम्भाल के रखते हैं। भगवान हमको देता है तो उसका कितना मूल्य हमको होना चाहिए। हमको चेक करना चाहिए कि शक्तियों का खज़ाना हमारे पास जमा है। जमा की निशानी क्या है, जब जिस शक्ति की आवश्यकता है उस समय वो हमारे ऑर्डर से आवे। यह प्रैक्टिस बार-बार करो क्योंकि कर्मयोगी जब बनते हैं तो कर्म और योग का बैलेन्स कभी कम हो जाता है। कर्म की तरफ अटेन्शन ज्य़ादा चला जाता है, योग का बैलेन्स थोड़ा कम हो जाता है इसीलिए बाबा कहते हैं कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो और चेंज करो, लिंक जोड़ो।
कोई भी चीज़ का लिंक जोड़ा जाता है तो उसमें ताकत आती है। जो श्रीमत में जी हाजि़र करता है उसके पास बाबा भी जी हाजि़र रहता है। वो अनुभव हमने प्रैक्टिकल में किया है। तो बाबा जो कहता है वो करता है सिर्फ हम उसका फायदा नहीं उठाते हैं। हम और बातें देखते हैं ना कि कायदा नहीं, ऐसे नहीं होता है। हमको तो कोई कायदा वायदा पता ही नहीं था। बाबा सचमुच समय पर मदद करता है। बंधा हुआ है। सिर्फ बाबा नहीं कहो, मेरा बाबा कहो। अधिकार से कहो। हम उन बातों को प्रैक्टिकल में लाते नहीं हैं। मानो खज़ाने बाबा ने दिए हैं लेकिन खज़ाने को जमा रखना हमारा काम है।
शक्तियां इतनी हैं लेकिन समय पर वो शक्ति यूज़ होती है? याद भी आती है कि शक्ति लेकर यह काम करें? बाबा की ताकत कोई कम है क्या! बाबा की ताकत ऐसी है जो बुद्धिवानों की बुद्धि बनके काम करा लेता है। जिसको हम कहते हैं असम्भव है, बाबा के लिए क्या असम्भव है! लेकिन हम योगयुक्त हों।