इस धरती पर एक निश्चित समय पर दिव्य कार्य कराने हेतु अवश्य अवतरित होते हैं। समय लगता ज़रूर है लेकिन कुछ समय के बाद वो लक्षण दिखने भी लग जाते हैं। वो जगत नियंता हम सभी का परमपिता, हम सभी के प्राणेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, जीवन को दिशा और दशा दोनों बदलने वाले जिनको हमने कहाँ नहीं ढूंढा! वो खुद आकरके हम सभी को अपने बारे में बता रहे हैं। और सिर्फ बता ही नहीं रहे हमको अपने साथ उस लोक में ले जाना चाहते हैं, जहाँ पर हम सिर्फ कल्पना करके सोच सकते हैं। तो ऐसे जगत नियंता को कैसे पहचाना जाये? कैसे जाना जाये? क्या कुछ ऐसा किया जाये कि उसको वैसे ही देख पायें जैसा वो चाहते हैं! वो आ तो चुके हैं, लेकिन आना और उसको पहचानना दोनों के लिए थोड़ा तो प्रयास है। और उस प्रयास का निश्चित रूप से परिणाम अच्छा ही है।
वर्तमान समय हम युग परिवर्तन काल से गुज़र रहे हैं। जब कलियुग की समाप्ति और सतयुग का आरम्भ होता है, इस पावन वेला को संगमयुग कहा जाता है। यही वह समय है जब स्वयं परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं।
कलियुग की अंतिम निशानी…
आप सभी के सामने जग ज़ाहिर है इसमें हर वक्त एक अनिश्चितता दिखती है, भय दिखता है, सब अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और हम सबके जुबान से एक शब्द निकल ही आता है कि कब तक ऐसा रहेगा! क्या स्वर्ग नहीं आयेगा? क्या सुखमय संसार हम नहीं देखेंगे? ये कब तक चलेगा? तो आपका ये कहना ही बताता है कि अब परिवर्तन होना ही चाहिए। ऐसे लक्षण हम देख भी रहे हैं, जहाँ चारों ओर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। प्रकृति का प्रकोप भी दिखाई पड़ता है, स्वार्थ ने मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है। न वह खुद चैन से जीता है और न दूसरे को चैन से जीने देता है। ऐसे में अब कालचक्र की घड़ी भी वहाँ आ पहुंची है जहाँ से दु:ख की विदाई होगी और सुख का आगाज़ होगा। अब हम सबके हृदय से ये ही शब्द निकलता है कि ऐसा सतयुगी संसार था और अब वो सुदुर नहीं है, आने ही वाला है। उसी संसार की परिकल्पना को साकार रूप दे रहे हैं हम सभी परमात्मा के बच्चे। जिस मन भावन दुनिया में आप जाना चाहते हैं। इसी का यादगार त्योहार शिवरात्रि है जिसको हम शिवजयंती भी कहते हैं। जिसमें परमात्मा हम सबको दु:खों से मुक्त कर सुख की दुनिया में ले जाने आए हैं।
शिवरात्रि उसी का ही यादगार…
परमात्मा ये बात हमको फिर से याद दिलाते हैं कि आपने कई बार वायदा किया कि जब आप आयेंगे तो हम ये करेंगे, हम ये करेंगे, हम ये करेंगे। लेकिन आने के बाद लक्ष्य भूल गये। अब आलम ये है कि आज चारों तरफ भागवत, उपदेश, कथायें, यज्ञ आदि-आदि चल रहे हैं ताकि इस समाज में एक परिवर्तन आये, सबके कष्ट दूर हों, सब संतापों से, परिस्थितियों से बाहर निकलें, लेकिन देखा जा रहा है कि ऐसा कुछ स्पष्ट नज़र आ नहीं रहा। परमात्मा एकदम सहज और आसान तरीका बताते हैं कि मैं इस धरती पर आता ही तब हूँ जब इस दुनिया में पापाचार, भ्रष्टाचार एकदम अपनी शीर्ष अवस्था पर होता है, और उस समय हमको जब कुछ नज़र नहीं आयेगा तो हम पूजा-पाठ ही करेंगे ना, व्रत-उपवास ही करेंगे ना। तो सहज तरीका ये है कि आप आत्मा हैं, शरीर के मालिक हैं। मैं परमपिता परमात्मा हूँ, आपका पिता हूँ, मेरा रूप ज्योति बिंदु स्वरूप है, और मुझ परमात्मा की स्नेह युक्त स्मृति, स्नेह युक्त याद, प्रेम से याद ही आप सबको, आपके सारे कष्टों से निजात दिला सकती है। तो क्यों ना हम ये वाला तरीका अपनायें।




