चलो युवा प्रकाश की ओर…  राजयोगी बी. के. दिलीप भाई, शांतिवन, आबू रोड

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12  जनवरी  राष्ट्रीय युवा दिवस पर खास लेख  …..

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद के भांति चल अपनी मंजिल की ओर, न रुक, न थक बस चलते चल मंजिल की ओर। चारों तरफ चमक-धमक का नकली प्रकाश में अपना जीवन को मत धकेल देना। बस तू चलता चल, अपने भीतर की आवाज को सुन और असली प्रकश की ओर चलता चल।  अगर वह भी नहीं सुनाई देता तो कुछ सकारात्मक साहित्य पढ़ ले, या कुछ अच्छे दोस्तों का संग कर ले, या कुछ अनुभवी बुजर्गों के संग बैठ और जो वह सुनाते है उसे ध्यान से सुन, पढ़।  इससे रास्ता साफ होगा की मंजिल कौनसी है, कहाँ पहुंचना हैं…. तू बस चलता चल चल अपने श्रेष्ठ मंजिल पर। एक दिन आएगा उस मंजिल को तू छू लेगा।  इतना ही पर्याप्त नहीं है।  अपने आप में वह ज्ञान की रोशनी, प्रकाश से भर जाओगे जो दूसरों के लिए मार्ग प्रसस्थ करोंगे।  इससे ज्यादा ख़ुशी क्या होगी खुद के जीवन सुधारने से अनेकों का जीवन सुधर जाता है। जब तक खुद नहीं बढ़ते तो दूसरों को कैसे बढ़ा सकोगें !  इसलिए ध्यान अपने खुद में केंद्रित करना आव्यश्यक है।

स्वामी विवेकानंद के यह पांच विचारों को केंद्रित कर लो :-

1 . उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।

2 . ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं। …

3. किसी की निंदा ना करें, अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। …

4. बाहरी प्रकृति केवल आंतरिक प्रकृति बड़ी है।

5. सच को कहने के हजारों तरीके हो सकते हैं और फिर भी सच तो वही रहता है।

इसके लिए एक अच्छा विचार उठाओ। उस एक विचार को अपना जीवन बनाओ; उसका सपना देखो; उसके बारे में सोचो; उस विचार पर जियो। मस्तिष्क, शरीर, मांसपेशियों, नसों और शरीर के हर हिस्से को उस विचार से भर दो, और बाकी हर विचार को अकेला छोड़ दो। यही सफलता का रास्ता है, और इसी तरह महान आध्यात्मिक दिग्गज पैदा होते हैं।” अर्थात मौन हो जाओ अपने भीतर जाओ श्रेठ चिंतन करो।  यह बात सत्य है कि मनुष्य के मन के भीतर ही उसके सारे प्रश्नों के उत्तर रहते हैं लेकिन मन से उत्तर पाने के लिए मौन होना जरूरी है। जब तक व्यक्ति शांत-चित्त नहीं होता, तब तक वह बेचैन रहता है। शांतचित रहने का सबसे अच्छा तरीका मौन है। ऐसी बहुत सी समस्याएं हैं जिन्हें मौन रहकर आसानी से सुलझाया जा सकता है।

मौन एक सूक्ष्म शक्ति है:- मौन का अर्थ है कि चुप रहना।  जितना जरूरी हो उतना ही बोलना क्योंकि बोलने से एनर्जी नष्ट होती है। मौन रहने से एनर्जी बचती है। मौन एक सूक्ष्म शक्ति है। जो वस्तु जितनी सूक्ष्म होती है उतनी ही शक्तिशाली होती है। जैसे चुंबकीय शक्ति व बिजली जितनी सूक्ष्म होती है, उतनी ही शक्तिशाली होती है। प्रकृति शांत है इसलिए शक्तिशाली है। जितना ज्यादा मौन रहेंगे और सकारात्मक विचार मन में रखेंगे तो अनंत शांति मन में बनी रहेगी।

अपने चिंतन को – सकारात्मक,  बोल – कम बोलो मीठा बोलो योग्य बोलो, समंध-संपर्क – वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओत प्रोत होना चाहिए।

इन्ही तीन गुणों  से भरपूर स्वामी विविकंदन जी को केवल दो मिनिट में अर्थात कम समय में कम बोल से  श्रेष्ठ विचारों को, भारतीय संस्कृति को धर्म सम्मलेन में बताना था। और जब कम समय ही कम  शब्दों में कहा –  अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है, मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं,सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।

2. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है।

इस राष्ट्रिय युवा दिवस पर अपने चिंतन,बोल, कर्म, सम्बन्ध-संपर्क को सकारात्मक बनाकर अपने भीतर का आत्मिक, आध्यात्मिक और सकारात्मक प्रकाश को पुरे ब्रह्माण्ड में प्रकाशित करना ही अपने युवा काल की सार्थकता होगी।

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