प्रश्न:- किसी भी कार्य के लिए बाबा ही हमें निमित्त बनाता है या प्रेरित करता है, या बाबा खुद ही करता है? फिर मन्मनाभव रहने के लिए भी कहता है क्यों?
उत्तर:- हम कोई भी कार्य करते हैं तो बाबा कहता है तुम निमित्त बनकर करो, बाकी रहो मन्मनाभव। तो कार्य में हल्के रहेंगे। अगर मन्मनाभव रहेंगे तो अहंकार नहीं आ सकता। यह सेफ्टी है हमारी। दूसरा ये तो हम जानते हैं कि करनकरावनहार बाबा है। जिन बच्चों को निमित्त बनाता है उसकी बुद्धि क्लीयर है तो बाबा के कार्य अर्थ राइट टचिंग आती है। उसमें ये नहीं आयेगा कि मैंने किया। जैसा कार्य था वैसी बाबा की टचिंग आयेगी। बाबा कार्य अर्थ बच्चों को निमित्त रखता है, करता खुद है। यह कभी न आये कि मैंने किया। उस समय अनुभव होगा कि और सब संकल्प शान्त। मैंने किया यह कभी ख्याल नहीं आता, मुझे करना है यह भी नहीं आता। न किसी के कहने से किया। इंसान के कहने से नहीं किया। भले निमित्त कहेंगे दादी ने कहा। लेकिन काम तो बाबा का है। कोई दादी के फोर्स से मैंने नहीं किया लेकिन दिल ने स्वीकार किया। दिल कहती है कि इस कार्य में मेरा ही फायदा है, मेरा ही कल्याण है। तो अभिमान भी न रहे, दिल में कार्य करने के लिए भावना भी अच्छी रहे। शुभ भावना, नि:स्वार्थ भावना हो कार्य के लिये। जैसे बाबा मेरी स्थिति बना रहा है कार्य के लिए, मैं ऐसी स्थिति में काम करूँ। जिससे मेरा भी भला और कार्य भी सफल। कराया बाबा ने। एक होता है बाबा का डायरेक्शन, दूसरा होता है बाबा के डायरेक्शन से मेरी स्थिति। कार्य में स्थिति से मुझे भी फायदा है, दूसरों को भी मेरी स्थिति मदद करती है।
प्रश्न:- अगर किसी का भारी रहने का स्वभाव है, वह अपने जीवन में हल्कापन कैसे लाये?
उत्तर:- 1.भारी होना बॉडी कॉन्शियस की निशानी है। जितना बॉडी कॉन्शियस रहते हैं उतना भारी रहते हैं। जितना सोल कॉन्शियस रहते हैं उतना हल्का रहते हैं। सोल है हल्की, बॉडी है भारी। ऐसे नहीं पांच तत्वों का शरीर भारी है। लेकिन कॉन्शियस से भारी हो जाते हैं। सोल तो बॉडी में वैसे भी छोटी है। लेकिन देहभान में है तो भारी है, आत्म अभिमान में हैं तो हल्के हैं। सोच ने हमको भारी कर दिया था। पास्ट की बातें, प्रेजेन्ट अपने में विश्वास नहीं, दूसरों से भेंट करते हैं, अपने और ड्रामा में विश्वास नहीं तो भारी हो जाते हैं। हल्का होने के लिए बाबा और अपने में विश्वास हो, सोल कॉन्शियस होकर कार्य करो, न्यारे होकर कार्य करो। न्यारे भी रहो, मास्टर भी रहो। बालक हैं तो हल्के हैं, मालिक हैं तो समझदार हैं। अभिमान नहीं है लेकिन समझदार हैं। ईश्वर के बालक हैं तो इतनी तो समझ है कि हमको क्या करना है, कैसे करना है।
2.लाइट वह रहता है जिसका मन साफ रहता हो। जो अपनी या औरों की बात मन में रखता है वह भारी रहता है। तो मन में कुछ भी बात न रखो, एकदम लाइट रहो, सारे कार्य में भी लाइट रहेंगे,स्वभाव में भी लाइट रहेंगे। बाबा की गुप्त शक्ति खींचते भी लाइट रहेंगे। जो काम सामने आता है उसकी समझ है तो लाइट हैं। कन्फयूज़न है तो भारी हैं। करें, न करें तो भारी हो जाते हैं। परन्तु नहीं। ज्ञान है लाइट, रोशनी है, क्या बड़ी बात है। एक तो करनकरावनहार करा रहा है, समय कहता है तुम करो। मैं नहीं करूँगा तो और कौन करेगा, मेरे लिए भाग्य विधाता ने चांस दिया है तो कर लूँ। भाग्य विधाता बाप ने अपना हक समझ कर मुझे कहा है। बाबा सेवा देता है तो शक्ति भी देता है। कभी ख्याल नहीं आता कि मेरे से नहीं होगा। तन की भी, मन की भी, धन की भी शक्ति देता है। मुख्य बात है करनकरावनहार की शक्ति है। कल्प पहले हमने किया है, अब भी कर रहे हैं, फिर भी करते रहेंगे। कई बातें ऐसी मीठी स्मरण करते हल्के रहेंगे, भारी होने की बात ही नहीं।