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अलीराजपुर: मकर संक्रांति के अवसर पर तिल के समान समझ कर अपनी बुराइयों का दान देना यही तिल के दान का महत्व है-ब्रह्माकुमारी माधुरी बहन

अलीराजपुर, मध्य प्रदेश। हम सभी इस शरीर के साथ पार्ट बजाने वाली एक चैतन्य ज्योति आत्मा है ।समय अंतर के कारण हम स्वयं को भूल शरीर मान बैठे हैं इसीलिए हमारे जीवन में अंधकार आ गया है अर्थात सूर्य दक्षिण की ओर चला गया लेकिन आज से ही मकर संक्रांति के दिन से ही दिन बड़े होते हैं सूर्य उत्तरायण की ओर जाता है अर्थात  हमारी ज्योति ज्ञान सूर्य के द्वारा जग जाती है तो हमारा दिन  अर्थात हमारे जीवन में सदा उजाला ही उजाला रहता है।

आज के दिन के महत्व को सदा खाने और खिलाने का महत्व बना दिया है। कुछ खाते हैं, कुछ खिलाते हैं। वह तिल दान करते हैं या खाते हैं।

तिल अर्थात् बहुत छोटी-सी बिन्दी, कोई भी बात होती है- छोटी-सी होती है तो कहते हैं – यह तिल के समान है और बड़ी होती है तो पहाड़ के समान कहा जाता है। तो पहाड़ और तिल बहुत फर्क हो जाता है ।

तो तिल का महत्व इसलिए है क्योंकि अति सूक्ष्म बिन्दी बनते हो। जब बिन्दी रूप बनते हो तभी उड़ती कला के पतंग बनते हो। तो तिल का भी महत्व है। और तिल सदा मिठास से संगठन रूप में लाते हैं, ऐसे ही तिल नहीं खाते हैं। मधुरता अर्थात् स्नेह से संगठित रूप में लाने की निशानी है। जैसे तिल में मीठा पड़ता है तो अच्छा लगता है, ऐसे ही तिल खाओ तो कड़ुवा लगेगा लेकिन मीठा मिल जाता है तो बहुत अच्छा लगेगा। तो आप आत्मायें भी जब मधुरता के साथ सम्बन्ध में आ जाती हो, स्नेह में आ जाती हो तो श्रेष्ठ बन जाती हो। तो यह संगठित मधुरता का यादगार है। इसकी भी निशानी है। तो सदा स्वयं को मधुरता के आधार से संगठन की शक्ति में लाना, बिन्दी रूप बनना और पतंग बन उड़ती कला में उड़ना, यह है आज के दिन का महत्व। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला की प्रणेता ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने दीपा की चौकी पर स्थित ब्रह्माकुमारी सभागृह में मकर संक्रांति के अवसर पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया ।इस अवसर पर सेवा केंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी माधुरी बहन ने बताया कि

इसमें दान देना अर्थात् जो भी कुछ कमज़ोरी हो उसको दान में दे दो। छोटी-सी बात समझकर दे दो। तिल समान समझकर दे दो। बड़ी बात नहीं समझो – छोड़ना पड़ेगा, देना पड़ेगा नहीं। तिल के समान छोटी-सी बात दान देना, खुशी खुशी छोटी-सी बात समझकर खुशी से दे दो। यह है ‘दान’ का महत्व। समझा।

सदा स्नेही बनना, सदा संगठित रूप में चलना और सदा बड़ी बात को छोटा समझ समाप्त करना। आग में जला देना यह है महत्व।  दृढ़ संकल्प की आग जला दी। आग जलाते हैं ना इस दिन।

तो संस्कार परिवर्तन दिवस – वह ‘संक्रान्ति’कहते हैं आप ‘संस्कार-परिवर्तन’ कहेंगे। कार्यक्रम के अंत में सभी को तिल गुड़ के लड्डू ,जलेबी ,मीठा दलिया भोग में वितरित किया गया । सभी ने अपनी बुराइयों का दान चिटकी लिखकर भगवान को अर्पित किया।आसपास के गरीब बस्तियों में सभी को भोग वितरित किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में सभी को शारीरिक एक्सरसाइज ब्रह्माकुमार अरुण भाई ने कराई।

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