
हम सभी मनुष्य धर्म के हिमायती हैं, होना भी चाहिए क्योंकि समाज में हैं तो धर्म, धारणा और परमात्मा के लिए भाव, निश्चित रूप से हम सबकी आधारभूत प्राकृतिक नेचर है, होनी ही चाहिए। लेकिन एक अन्दर सवाल उठता है और वो बड़ा सहज है, सरल है और लाज़मी भी है कि हम सभी बहुत समय से तीर्थ स्थान पर जाते हैं, पूजा-पाठ भी करते हैं, सब कुछ कर रहे हैं लेकिन हमारे घर के सदस्य जो हमारे साथ रहते हैं वह हमें बीच-बीच में यह भी कहते हैं कि आप इतने समय से सारा कुछ परमात्मा के भजन में, परमात्मा के प्यार में, परमात्मा के लिए पूजा करते हैं, पाठ करते हैं, कीर्तन करते हैं, मेडिटेशन करते हैं, लेकिन परिवर्तन का भाव थोड़ा कम दिखता है।
जब वह यह कहते हैं तो एक प्रश्न ज़रूर उठता है, प्रश्न चिन्ह भी लगता है कि क्या मैं सही नहीं चल रहा? तो इसको चेक कैसे करना चाहिए क्योंकि आस्था बहुत अच्छी चीज़ है, भावना बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन उसके साथ-साथ हमारे अन्दर परिवर्तन भी हो तो सोने पे सुहागा होगा। इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति का जो खुशी का जो ग्राफ है, हैप्पीनेस का जो ग्राफ है वो ऊँचा उठना चाहिए। लेकिन अगर पूजा-पाठ करने के बाद, भक्ति करने के बाद, यात्रा करने के बाद भी अगर मेरा ग्राफ नहीं उठता है तो केवल मैं कर्म कांड या केवल नियम प्रमाण सब कुछ करता हूँ। लेकिन अगर सच में मेरे अन्दर परिवर्तन है तो मेरा खुशी का ग्राफ बढऩा चाहिए। कहने का भाव ये है कि हमारी भावना क्या सच में भगवान के लिए है! अगर भगवान के लिए भावना है तो भगवान के बच्चों के लिए भी भावना होनी चाहिए। भगवान की एक-एक चीज़ के लिए भावना होनी चाहिए हमारी। लेकिन हमारी भावना भगवान से अलग कहीं और तो नहीं है? जैसे नियम प्रमाण उठना, मन्दिर जाना, बैठना, जल्दी-जल्दी सारे काम करना, माला-मूर्ति इन सबके लिए, बार-बार उनकी धुलाई करना, सब कुछ करना, तो क्या सिर्फ इसके लिए हमारी भावना है या भगवान के लिए भी है, ये सोचने का विषय है।
अगर सच में मेरे अन्दर परमात्मा के लिए भावना है तो मेरे अन्दर परिवर्तन आना चाहिए। क्योंकि परमात्मा तो सबके बारे में अच्छा सोचता है, सबके बारे में अच्छे भाव रखता है लेकिन क्या मेरे अन्दर सबके लिए अच्छे भाव हैं? सबके लिए अच्छी बातें हैं? अगर भाव और भावना है तो इसका मतलब मैं सच में आस्था रखता हूँ। सच में परमात्मा के साथ, सच में मेरे अन्दर परिवर्तन है। और जैसे ही कोई समस्या आती है तो देखो हम सबसे पहले किसके पास जाते हैं, आस-पास लोगों के पास ही तो जाते हैं ना! क्योंकि परमात्मा तो ऐसे नहीं दिखाई देता। लेकिन अगर हमारी भावना उनके लिए नहीं है और सारे मनुष्य मात्र के लिए नहीं है, हयूमैनिटी के लिए नहीं है तो हमारा साथ कौन देगा? इसलिए मनुष्य एक प्रमाण है, आस-पास का व्यवहार एक प्रमाण है, हमारा आचरण एक प्रमाण है कि हम सच में परमात्मा के लिए भावना रखते हैं। अगर आचरण, व्यवहार में परिवर्तन नाम मात्र है तो भावना शायद मन्दिर और मूर्ति के लिए सिर्फ रह गई है।
तो इस पर हम सबको इस वर्ष काम करना चाहिए। सच में परमात्मा के लिए रियल भावना पैदा करना चाहिए। परमात्मा गुणों को चाहता है, शक्तियों को चाहता है, सबके अन्दर आत्मिक प्रेम को देखना चाहता है। अगर वो हमारे अन्दर है तो हमारी भावना है। आचरण बदलना चाहिए।




