स्वयं को नरिश करते रहें

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परमात्मा एक बहुत सुन्दर शब्द हमें देते हैं कि छुई-मुई नहीं बनना है। जिसको टच करते ही वो मुरझा जाता है। ऐसे पत्ते भी होते हैं जिन्हें ‘टच मी नॉटÓभी बोलते हैं। तो परमात्मा कहते हैं कि आपकी जीवन भी ऐसी हो गई है थोड़ा-सा भी किसी ने कुछ आकर कहा, कोई बात आपके अनुसार नहीं हुई, कोई व्यक्ति ने कुछ कहा जो आपको पसंद नहीं आया, आप मुरझा जाते हैं। और जब आप मुरझा जाते हैं क्या हमें अपना ध्यान नहीं रखना! मुझे खुद को खुद ही नरिश(पोषण, खाद डालना) करना है। ताकि मैं सारा दिन फूल की तरह खिला रहूँ।

सुरेश ओबेरॉय – सिस्टर, एक बार दादी गुल्ज़ार आईं थी। मैं मिलने गया था सेन्टर पर तो मैं हमेशा ज्य़ादा सोचता ही रहता था। तो दादी गुल्ज़ार ने कहा कि तुम्हारे चेहरे पर थोड़ा-सा ना मुस्कुराहट रखा करो, और हमेशा एक गुलाब का फूल हाथ में लेकर रखा करो और उसको देखते रहना। जैसे गुलाब का फूल खिला रहता है वैसे तुम भी खिले रहना और मुस्कुराते रहना। और मैं क्या एक्सपेक्ट कर रहा था कि दादी गुल्ज़ार जी कोई एक बहुत बड़ा मंत्र देंगे। अब आपसे बात करते हुए समझ में आ रहा है कि इससे बड़ा मंत्र और क्या हो सकता है!
सिस्टर शिवानी – कितनी अच्छी लाइन है कि एक खिले हुए गुलाब की तरह खिले रहो। देखिए एक खिला हुआ गुलाब खुशबू देता है, मुस्कुराहट देता है।अलग अलग मौकों पर फूल यूज़ किए जा रहे हैं। एक गुलाब का फूल एक फंक्शन के लिए भी है, एक गुलाब का फूल कहीं डेड बॉडी पड़ी है उसपर भी है। मतलब खुशी के मौके पर भी है और दर्द के मौके पर भी। सुख के मौके पर भी है, दु:ख के मौके पर भी। जीत में भी गले में हार, मृत्यु में भी। लेकिन गुलाब का फूल कैसा है दोनों परिस्थितियों में! फूल में कोई बदलाव नहीं होता। वो चारों तरफ अपनी ब्यूटी को, अपनी खुशबू को बिखेरता है।फूल को देखते ही मुस्कुराहट आ जाती है। मतलब हमसे मिलते ही औरों को भी क्या मिल जाये! खुशी।
सुरेश ओबेरॉय – ये बात तो यहाँ तक समझ आ गई कि गुलाब की तरह अपने आपको यानी सॉल को नरिश करना है। और गुलाब की तरह हर परिस्थिति में मुस्कुराना है। औरों को भी खुश करना है। लेकिन नरिश कैसे करना है?
सिस्टर शिवानी – आप पेड़-पौधों को नरिश कैसे करते हैं?
सुरेश ओबेरॉय – पानी डालता हूँ।
सिस्टर शिवानी – शरीर को नरिश कैसे करते हैं?
सुरेश ओबेरॉय – खाना खिलाता हूँ, पानी पिलाता हूँ।
सिस्टर शिवानी – आत्मा को रोज़ क्या देते हैं नरिश करने के लिए?
सुरेश ओबेरॉय – कभी सोचा ही नहीं ना।
सिस्टर शिवानी – जो ये आत्मा अब इस शरीर को भी चलाने वाली है। ये आत्मा कितना कुछ कर रही है सारा दिन। आप सोचते हैं, सोचने के बाद निर्णय लेते हैं और फिर निर्णय लेकर इस शरीर के थ्रू कर्म करते हैं। तो इस शरीर को ऑपरेट करने वाली वो शक्ति, मैं आत्मा। मेरी पहली जि़म्मेदारी मेरे इस शरीर को चलाना और दूसरी चाहे आप बाहर जा रहे हैं, एक्टिंग कर रहे हैं कोई भी प्रोफेशन में हैं, करने वाला कौन? आत्मा। जो सोचती है, कोई भी काम करने से पहले सोचना है हमें, निर्णय लेना है और फिर वो कर्म करना है। ये तीनों चीज़ें करने वाला कौन? आत्मा।
हम कोई भी कर्म बिना सोचे नहीं कर सकते। एक सोच चलेगी तब वो आगे काम होगा। तो इसका मतलब हर काम में छोटे से बड़े करने वाला कौन? मैं आत्मा। अब हमने कहा कि सारा दिन हमें काम करना है, धन कमाना है। पॉवर कमा रहे हैं, नेम-फेम ये सबकुछ कमा रहे हैं। ये सब कमाने वाला कौन? मैं आत्मा। कौन-सी चीज़ है जो मैं नहीं कर रही। मैं के बिना तो आप मर ही जाते हैं ना! जब वो मैं निकल गई, मैैं आत्मा निकल गई तो ये शरीर कुछ नहीं कर सकता। जब ये शरीर कुछ नहीं कर सकता तो जि़म्मेदारियां खत्म। बच्चे वहाँ हैं लेकिन आप उनका कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि मैं आत्मा इस शरीर से निकल गई। तो सारा दिन सबकुछ करने वाला कौन? मैं।
पेड़ पानी के बिना नहीं रह सकता, गाड़ी पेट्रोल के बिना चल नहीं सकती, मोबाइल चार्ज किए बिना चल नहीं सकता। शरीर खाने बिना नहीं चल सकता लेकिन मैं आत्मा चलती ही जा रही हूँ, करती ही जा रही हूँ लेकिन अब हमें उसका रिज़ल्ट दिखाई दे रहा है। हम मुरझा जाते हैं, छोटी-छोटी बातों में नाराज़, उदास हो जाते हैं। इसको आत्मा का मुरझाना कहेंगे। इसे हम आत्मा की कमज़ोरी कहेंगे। लेकिन आत्मा कमज़ोर कब कहेंगे? जब हम नरिश नहीं हैं। हमने बहुत-बहुत सालों से या फिर शायद कई जन्मों से आत्मा का नर्चर(पोषण) नहीं किया है। अगर हम पौधे के ऊपर प्युअर पानी की जगह कोई गलत चीज़ डाल दें तो वो मर जायेगा। इसी तरह हम आत्मा पर हेल्दी चीज़ से उसे नर्चर करने की बजाय अगर कोई ऐसी चीज़ें डालना शुरू कर दें जो उसके लिए सही नहीं है तो उसका भी रिज़ल्ट दिखाई देने वाला है। हमें नहीं मालूम था कि आत्मा को नर्चर करना है तो भी जीवन चल रही थी। लेकिन अब हमें मालूम हो चुका है कि आत्मा को नर्चर कैसे किया जाता है तो अब भी अगर नहीं करेंगे तो कब करेंगे!

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