एक बहुत सूक्ष्म बात भगवान ने अपने महावाक्यों में कही कि जब किसी ने कहा हम समर्पित लोग तो धन सेवा में नहीं लगाते हैं क्योंकि कोई काम-धन्धा, नौकरी नहीं करते हैं, जीवन लगा दिया है। वास्तव में तो धन से बहुत बड़ी चीज़ मनुष्य का जीवन होता है।
इस कलियुगी घोर नर्क को सतयुगी स्वर्ग में बदलने के लिए स्वयं रूद्र ने, महाकाल ने, शिवबाबा ने रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ रचा। उसमें अनेक भाई-बहनों ने अपना जीवन स्वाहा कर दिया। स्वाहा करने का वो अर्थ नहीं जो लिया जाता है कि अपने को ही स्वाहा कर दिया। मतलब अपनी बुराइयों को स्वाहा कर दिया, अपने मनोविकारों को स्वाहा कर दिया। तो इस यज्ञ के द्वारा योग की ज्वाला जल रही है। इस यज्ञ में, जो सारे संसार में फैल गया है, गहन योग-तपस्या चल रही है। प्युरिटी की पॉवर को बढ़ाया जा रहा है और इससे ही ये युग बदलेगा। पुराना युग समाप्त होगा। भगवान के शब्दों में जो पाप से भरी हुई दुनिया है ये खत्म होगी। पुण्य आत्माओं की दुनिया, देवी-देवताओं की दुनिया जिसको स्वर्णिम काल कहते हैं। जहाँ चारों ओर सुख-चैन की बंशी बजेगी, खुशी और आनन्द ही आनन्द होगा, अथाह धन सम्पदा होगी, प्रकृति बहुत सुखदायिनी होगी, पॉल्यूशन सब समाप्त होकर प्रकृति का प्युरिफिकेशन हो जाएगा। ये महान कार्य इस रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ के द्वारा हो रहा है और सम्पूर्ण हो जाएगा।
अनेक ब्रह्मावत्स इसमें सेवा कर रहे हैं। गीता के तीसरे अध्याय में ही है कि ब्रह्मा ने यज्ञ रचकर ब्राह्मणों को कहा हे वत्सों! तुम इस यज्ञ से देवताओं को प्रसन्न करो, संतुष्ट करो तो देवता तुम्हें मन-इच्छित फल प्रदान करेंगे। तो भगवान ने जो यज्ञ रचा माउण्ट आबू पर, जो महान तीर्थ बनने जा रहा है उसमे देव कुल की अनेक आत्मायें आती हैं। अपने जीवन को पुन: देव तुल्य बनाने के लिए। जो सेवा में तत्पर हैं उन्हें आने वालों को संतुष्ट करना होता है। तो जब वो संतुष्ट होंगे, जब वो खुश होंगे तो सेवा करने वालों को मन-इच्छित फल प्राप्त हो जायेगा। उनका बहुत कल्याण हो जायेगा। ऐसे कितने हज़ारों लोग इस महान रूद्र यज्ञ में अपने जीवन को सेवा अर्थ स्वाहा कर चुके हैं, पवित्रता की धारणा की प्रतिज्ञा करते हुए। इस महान यज्ञ में कोई भी अपवित्र व्यक्ति नहीं रह सकता, ये नियम है। इसलिए इस महान यज्ञ से महान कार्य होगा, जो असम्भव लगता है। पाप की दुनिया की समाप्ति और पुण्य दैवी दुनिया का आगमन होगा। तो हम सभी इस सेवा में तत्पर हैं। यहां तन की, मन की, धन की सेवा की जाती है। यहां प्युरिटी के वायब्रेशन्स फैलाये जाते हैं। यहां से योग के वायब्रेशन सारे संसार में फैलते हैं। यह यज्ञ महान लाइट हाउस बनता जा रहा है।
एक बहुत सूक्ष्म बात भगवान ने अपने महावाक्यों में कही कि जब किसी ने कहा हम समर्पित लोग तो धन सेवा में नहीं लगाते हैं क्योंकि कोई काम-धन्धा, नौकरी नहीं करते हैं, जीवन लगा दिया है। वास्तव में तो धन से बहुत बड़ी चीज़ मनुष्य का जीवन होता है। जीवन की तो कीमत ही नहीं है, अमूल्य है। तो बाबा ने उत्तर दिया- यज्ञ सेवा में अगर तुम इकोनॉमी करते हो यानी बचत करते हो तो जो तुमने बचाया वो धन के रूप में तुम्हारा यज्ञ में जमा हो जाता है। मान लो व्यर्थ की लाइट जल रही है, पंखे चल रहे हैं, कोई नहीं है तो ये बोझ चढ़ेगा और हमने उनको बंद किया, बिजली बचाई तो ये हमारा पुण्य जमा होगा।
मान लीजिए पानी की कमी पड़ रही है तो हमने कम पानी से काम चलाया। बचे हुए पानी से आने वाले को सुख मिला ये हमारी बचत हो गई है। यह बहुत बड़ा पुण्य जमा होगा। कहीं कोई चीज़ वेस्ट हो रही है भोजन में, सब्जियों में हमने उस वेस्टेज को ठीक किया, वो हमारा धन जमा हो जायेगा। तो हम तन से भी खूब सेवा करें, मन से भी खूब सेवा करें, धन भी जितना जो लगा सकते हैं वो इस महान कार्य में लगायें।


