एक्सेप्ट करें न कि एक्सपेक्ट

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लोगों को खुश करने की इच्छा के अनुरूप हम चलने की कोशिश करते हैं। हमेशा मन में रहता, कोई नाराज़ न हो जाये, कोई नाखुश न हो जाये। ऐसा करने पर हम खुश रह सकते हैं! नहीं ना। आज हम सबके सामने बड़ी चुनौती है कि कोई नाराज़ न हो जाये। पर ऐसा व्यवहार करना संभव है? टटोलने पर उत्तर क्रनाञ्ज ही है ना! उदाहरण के तौर पर किसी को लाल रंग बहुत पसंद है तो किसी को सफेद रंग। तो सफेद रंग हमें बहुत पसंद है तो हम यह चाहते हैं कि दूसरों को भी सफेद रंग पसंद हो। ये कैसे हो सकता है! दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं। उसकी च्वाइस लाल रंग है जबकि हमारी च्वाइस सफेद। पर हम चाहते हैं कि वो भी सफेद रंग ही पसंद करे, ये तो संभव नहीं है ना! क्योंकि दोनों अलग हैं और दोनों की सोच अपनी-अपनी है। उनकी इच्छायें अपनी हैं जबकि हमारी इच्छायें अपनी हैं। तो ऐसे में सबकी इच्छाओं को पूर्ण करना, सबकी एक्सपेक्टेशन्स को पूरी करना, ये तो संभव नहीं है ना! क्योंकि उनकी नेचर अलग है और मेरी नेचर अलग है। इसीलिए इस विचार को लेकर यदि चलेंगे तो न हम अपने को खुश रख पायेंगे और न ही दूसरों को।
डॉक्टर हमें सलाह देता है कि 5 कि.मी. चलना आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। राय तो बहुत अच्छी है किंतु हमारी कैपेसिटी तो पाँच कदम चलने की भी नहीं है, हमारे में ताकत ही नहीं है। तो डॉक्टर की यह राय हमारे लिए सही है! नहीं ना। क्योंकि हमारे में वह संस्कार ही नहीं है। हमारे में वो ताकत ही नहीं है जो हम इतनी अच्छी राय को पूरा कर सकें। स्थूल चीज़ों में जब हम हर चीज़ को पूरा नहीं कर सकते, तो भावनात्मक रूप से हम हरेक की इच्छायें कैसे पूरी कर सकते हैं! क्योंकि हरेक की इच्छायें, कामनायें अलग-अलग हैं। आज तक हम ये मानते आए कि हमारे अनुरूप ही दूसरे भी चलें परंतु हमें अपनी यह सोच, ये मान्यताएं बदलनी पड़ेंगी। हाँ, यहां हमें एक चीज़ करनी होगी, दूसरों की एक्सपेक्टेशन को पूरा करने के बजाए हमारी जो एक्सपेक्टेशन है उसी को हम पूरा कर सकते हैं। क्योंकि हमारा संस्कार अपना है और पहले हमें खुद को खुश रखना ज़रूरी है। ये संस्कार हमें नहीं छोडऩा है। तब तो ये संस्कार दूसरों को हम दे सकेंगे।
दूसरी बात, सबकी नेचर अलग-अलग है। किसी में सहन करना, किसी में ईमानदारी-वफादारी है तो किसी में धैर्यता। तो ऐसे में हम दूसरों से एक्सपेक्ट करें कि वो भी ईमानदार हो, वफादार हो, ये तो संभव नहीं है ना! हाँ, हम उसे एक्सेप्ट करें, वो जो है, जैसा है, उसमें जो विशेषताएं हैं उसको स्वीकार करें और हमारे में जो विशेषताएं हैं वो हम बनाए रखें। वो संस्कार अगर हम उसमें देखना चाहते हैं तो बिना उससे कुछ इच्छा रखे हम अपनी विशेषता, अपने गुण देते रहें, तो उसमें भी वे संस्कार भर जायेंगे। हम सब अलग-अलग हैं ये विचार और हरेक की क्वालिटीज़, हरेक की शक्तियां अलग-अलग हैं, उसे स्वीकार करते हुए हम खुश रह सकते हैं। जैसे गुलदस्ते में अलग-अलग रंग के फूल होते हैं, तो गुलदस्ता अच्छा लगता है। वैराइटी को हमने एक साथ सजाया तो सभी को वो अच्छा लगेगा। इसी तरह हम सभी की विविधताओं को स्वीकार करें, एक्सेप्ट करें। ऐसा नज़रिया हम बनायें, तो खुश रहना और औरों को खुश करना, ये हम कर पायेंगे। क्योंकि आत्मायें अलग-अलग हैं। हरेक यूनिक हैं, हरेक का रोल अलग-अलग है। हम अपने मन को शक्तिशाली बनाने के लिए मेडिटेशन को अपने जीवन का हिस्सा बनायें। रोज़ अपनी विशेषताओं का, योग्यताओं का चिंतन करें, देखें, तो वो हमारे में भरती जायेंगी और हममें ताकत बढ़ती जायेगी। जैसे बैटरी को चार्ज करना है तो पॉवर हाउस से कनेक्ट करते हैं ना, तो यदि हमें भी शक्तिशाली बनना है तो हमें भी पावर हाउस परमात्मा से स्वयं को कनेक्ट करना होगा। कहते हैं ना कि एनर्जी हाईयर टू लोअर की तरह फ्लो होती है। बस करना इतना ही है कि हमें स्वच्छ हृदय से, साफ मन के तार उनसे जोडऩा है। तो शब्दों क्रएक्सपेक्टेशन और एक्सेप्टञ्ज को हम सही-सही अर्थ में जान जायें तो हम सदा खुश रह सकते हैं। और यही हमारी नेचर भी है।

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