मुख पृष्ठब्र. कु. गंगाधरआपकी सोच में ही छिपा है आपकी बीमारी का इलाज

आपकी सोच में ही छिपा है आपकी बीमारी का इलाज

कई कहते हैं कि मेडिटेशन से हमारी बीमारी ठीक होगी? अगर नहीं, तो उसे करने की क्या ज़रूरत है? लेकिन हम कहते हैं कि मेडिटेशन से बीमारी ठीक नहीं होती। बल्कि मेडिटेशन से आप ठीक होते हैं, और आपके ठीक होने से आपकी बीमारी ठीक होती है।
किसी को भी कहें कि थोड़ी देर मेडिटेशन करो तो कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है मैं बहुत बिज़ी हूँ, मुझे ये करना है। ये भी मुझे ही करना है। और सोचते रहते कि मैं बहुत बिज़ी हूँ। टाइम नहीं है, यह कब कहा जाता है? जब हम डॉक्टर के पास जाते हैं। कोई बीमार व्यक्ति वहां एडमिट है और हम डॉक्टर से बात करते हैं बस! इनका टाइम नहीं है! और हम तो रोज़ बोलते रहते है मेरे पास टाइम नहीं है, मेरे पास टाइम नहीं है। हम काम भी करते रहते हैं और कहते भी रहते हैं मेरे पास टाइम नहीं है। हमारी सोच कहने के लिए मजबूर करती है मेरे पास टाइम नहीं है, मैं बहुत बिज़ी हूँ। ये सोच हमें बिज़ी बनाके रखती है। और यही सोच हमारे मन और शरीर के स्वास्थ्य को नुकसान करती है।
इस ‘बिज़ी’ शब्द को इज़ी में बदलना है। मैं बिज़ी हूँ नहीं, इज़ी हूँ मेरे पास बहुत टाइम है। इसे पढक़र ज़रा ठहरें…सोचें… और मन में दोहरायें मैं इज़ी हूँ… मैं इज़ी हूँ…। मेरे पास बहुत टाइम है, और बोलें भी। यह एक सिर्फ शब्द है ऐसे बोलें या वैसे बोलें इज़ी हूँ। शब्द एक वायब्रेशन है। समय इतना ही है। काम भी इतना ही है। लेकिन सोच इज़ी होगी ना तो एनर्जी बहुत अच्छी हो जाएगी और काम भी सहज होगा। मैं बहुत इज़ी हूँ, मेरे पास बहुत टाइम है, मेरे खुद के लिए बहुत टाइम है, समाज के लिए भी बहुत टाइम है। कोई कहेगा कि आपके पास कोई काम नहीं चलता जो आपके पास बहुत टाइम है। परन्तु आज हमने समाज में स्टेटस बना लिया है कि जो बिज़ी नहीं वो असफल है, अनसक्सेस है। और हम भी सारा दिन बोलते रहते हैं कि मैं बहुत बिज़ी हूँ।
आप बहुत काम करते भी इज़ी रह सकते हैं। कई लोग बोलते हैं, काम भी पूरा हो गया, रिटायर्ड भी हो गए फि र भी बिज़ी हैं। वास्तव में हम पूरा दिन बिज़ी नहीं रहते लेकिन हमारे सोचने का तरीका ऐसा है, हमने धारणा बना ली है कि मैं बहुत बिज़ी हूँ। इस सोच को बदलना है मैं बिज़ी हूँ।
हमें कभी भी ‘कम’ शब्द को नहीं बोलना है, खास कर के मेरे पास धन ‘कम’ है, मेरे पास टाइम ‘कम’ है। कम हो तब भी ऐसा नहीं बोलेंगे कि मेरे पास कम है। मेरे पास धन भरपूर है, टाइम बहुत है। ये सिर्फ शब्द नहीं है। हर शब्द में एनर्जी है, वायब्रेशन है। जैसा सोचेंगे, जैसा बोलेंगे, वैसा ही होगा।
आपने देखा होगा कि मन्दिर में, गुरूद्वारों में प्रसाद देने वाले कभी नहीं बोलते कि प्रसाद कम है और प्रसाद को ढककर रखते हैं, किसी को देखने नहीं देते हैं। और सदा उनके मन में रहता है कि भरपूर है…भरपूर है…। ये सोच, ये वायब्रेशन्स से सदा ही उनका भण्डारा भरपूर रहता है। ऐसे ही घर मेेंं मातायें जब आटा बनाती हैं तो वो ढककर रखती हैं और जो भी खाने वाले कहते कि मुझे और एक रोटी चाहिए तो वे कहते हैं कि भरपूर है।
जैसे आप बोलते जायेंगे वैसे ही बढ़ता जायेगा, भरपूरता बनी रहेगी। भरपूर का पहले स्वयं की सोच में है तो स्थूल में तो आ ही जायेगी। तो आसान है ना! है ना आसान! सिर्फ ये भाषा को बदलनी है। आपकी सोच बदलेगी, आपके घर में वो वायुमण्डल बदलेगा और बच्चों में भी वो एनर्जी बढ़ेगी। तो मेडिटेशन करना आसान है ना! आजकल बहुत भ्रान्ति है कि मुझ से नहीं होता, बहुत कठिन है, मुश्किल है। हम कईयों की बातें पकडक़र रखते हैं। पकडऩा आसान है या छोडऩा? पकडऩा ना! मुश्किल काम तो हमने कर दिया। लेकिन आसान काम है छोडऩा वो हमें करना है। राजयोग मेडिटेशन हमें स्वयं में इतनी शक्ति भर देता है कि बड़े से बड़ा काम भी सहज हो जाता। तो राजयोग माना- मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ। शक्तिशाली आत्मा अर्थात् परिस्थितियों का असर स्वयं पर ना हो। दूसरा मेरी हर सोच श्रेष्ठ है। मेरा हर बोल सही है। मुझे सबकी विशेषता ही दिखाई देगी। सबको दुआयें देना मेरा स्वभाव है। हरेक बहुत अच्छे हैं, हर एक अच्छा है। इसका मतलब है निश्चिंतता। चिंताएं ही बीमारी का कारण है।

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