मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीयहाँ हम… किसकी परवाह के लिए आए हैं…!

यहाँ हम… किसकी परवाह के लिए आए हैं…!

कई बार कईयों को यह संकल्प आते कि हम यहाँ आये, हमें कोई ने पूछा ही नहीं, हमारी खातिरी नहीं की। बहन जी तो फलाने को ही देखती है, मेरे को तो पूछती ही नहीं, मेरी उन्हें कोई परवाह ही नहीं। लेकिन मैं पूछती हूँ- क्या तुम मेरी परवाह के लिए आये हो? परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, बाकी और कोई क्या परवाह करेगा! तो अपने आप से पूछो मैं किसके परवाह में पे्ररित होती हूँ। मैं बाप की परवाह रखके आई, बाबा मैं आपकी सदा शीतल छाया में रहूँ। बाकी किसी के परवाह में, स्वभाव में आना, क्या यही मेरी अवस्था है? यह तो अजब सा लगता जब कहते फलाने को मेरी कोई परवाह ही नहीं। जैसे छोटे बच्चे कहें, वैसे सब बातें हैं, फिर पूछते हैं विनाश कब होगा? आखिर भी कर्मातीत कब बनेंगे? बाबा पूछते हैं क्या तुम देह-अभिमान से अतीत हो गए हो? जब अतीत नहीं हुए तो कर्मातीत कैसे बनेंगे? हमें बाबा ने अपने प्रवाह में लिया है, उसके प्रवाह में रहो तो सेकण्ड में मरजीवा बन जायेंगे।
समझो आज मेरे में एक फीलिंग की बीमारी है, छोटी-मोटी बात मुझे लग जाती, उदासी छा जाती, डिस्टर्ब कर देती, तो क्या मैं दान हुई? दान हो गई तो फिर कैैसे कहती मुझे फीलिंग आई, तुम कौन? तुम तो बाबा की हो ना फिर किसको फीलिंग आई? मुझे फीलिंग आई माना मैंने दान की हुई वस्तु को वापस लिया। दान हुई वस्तु को वापस लेना महान पाप है। जब मैं दान हो गई तो मुझे किसी बात की फीलिंग क्यों? मैं दान हँू माना बाबा की अमानत हँू तो जब बाबा को फीलिंग नहीं आती तो मुझे क्यों आई? मैं दान हँू तो मैंने दान वापस क्यों लिया? यह है सूक्ष्म पाप।
मैं बाबा की अमानत हूँ, मेरे संकल्प भी अमानत हैं, मेरा चरित्र, मेरी सेवा भी अमानत है, तो बाबा की अमानत में ख्यानत क्यों करती? डिस्टर्ब होना माना अमानत में ख्यानत। जब बाबा की बन गई तो बाबा ने जो लकीर लगा कर दी है, उस पर हमें चलना है, बाबा ने हमें कहा तुम्हें अमृतवेले उठ मुझे याद करना है, तुम्हें मेरे ही कार्य में जीवन देनी है, तुम्हें बाबा के यज्ञ से खाना है, बाबा का कार्य करना है। तो फिर यह संकल्प भी क्यों आता है कि मुझे फलानी सर्विस का शौक है, यह मुझे चांस नहीं देते। यह भी कौन सी अवस्था है? कुछ न हुआ तो मैं डिस्टर्ब हो गई, यह भी अमानत में ख्यानत है। संकल्प में भी विचलित होना माना अमानत में ख्यानत।
बाबा ने कहा एक है बृहस्पति की दशा और दूसरी है राहू की। तो बुद्धि जब टक्कर खाती तो समझो राहू का ग्रहण लगा, कमाई में घाटा आना माना कला कम हुई। बृहस्पति की दशा माना बाबा की याद में मेरी स्थिति ऊंची-ऊंची बढ़ती जा रही है। कई फिर बाबा के शब्दों को पकडक़र अपने ऊपर जैसे पॉलिस करते हैं- कहते हैं बाबा ने तो कहा है ना माया के विघ्न अन्त तक आयेंगे। लेकिन यह नहीं सोचते, बाबा ने यह तो कहा तूफान आयेंगे, साथ में यह भी कहा है कि बच्चे तुम्हें क्रॉस करना है, कभी भी रुकना नहीं है। रुकने को तो नहीं कहा ना! हमें तो माया से परे जाकर मायाजीत बनना है। अगर मैं माया के वश हूँ, तो क्या वश वाला दान हो चुका? हरेक अपने को चेक करो मैंने अपने को इस यज्ञ में कहाँ तक दान कर लिया है? दान माना दान, दान को वापस लेना महापाप। हमारी लगन बाबा है, हमारा बाबा सब कुछ है।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments