इस दुनिया में प्रत्येक आत्मा एक लंबी यात्रा पर है, इसलिए दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति(आत्मा) के स्वभाव, संस्कार और आदतें अलग-अलग होती हैं, जब एक आत्मा हमारे घर में बच्चा बनकर जन्म लेती है तो वो अपने साथ पूर्व जन्मों के स्वभाव, संस्कार भी लेकर आती है। जब वही बच्चा बड़ा होता है और उसकी सोच हमारी सोच से नहीं मिलती है तो हम उसे गलत ठहराने लगते हैं, उसे हतोत्साहित करते हैं, जबकि हकीकत में पूर्व जन्मों के संस्कार के कारण वह बच्चा अपने हिसाब से खुद को सही मानता है, ऐसी स्थिति में मात-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे पर अपनी राय या निर्णय नहीं थोपें, उसकी कमी-कमज़ोरियों को नज़रअंदाज करते हुए आगे बढऩे का हौसला बढ़ाएं। प्रकृति का नियम है जब हम एक ही बात को बार-बार कहते हैं तो वह सत्य होने लगती है, जैसे आप अपने बच्चे से रोज़ कहें कि तू जो बुद्दू है, तुझे कुछ नहीं आता है, तू तो नालायक है तो यह शब्द रोज़ सुनते-सुनते आपका बच्चा भी वैसा ही बन जाएगा। उसके अंतर्मन में ये शब्द समा जाएंगे और उसकी आत्मिक शक्ति पहले से और घटती जाएगी। कुछ लोग इसे जेनरेशन गैप का नाम दे देते हैं।
हर आत्मा के हैं अपने संस्कार…
जब बच्चा छोटा होता है तो हमें उसकी हर बात अच्छी लगती है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है तो हम उसे कहते हैं कि आप गलत हो, आपमें ये कमी है, तो कुछ दिन बाद बच्चा भी माता-पिता से कहने लगता है आप गलत हो और हम इसे जेनरेशन गैप कहने लगते हैं, जबकि हकीकत ये है कि हर आत्मा के अपने-अपने संस्कार हैं। वह पिछले जन्मों से अपने साथ जो संस्कार लेकर आई है वह उसी अनुसार कर्म करती है। सिर्फ इस जन्म में वह हमारे यहां बच्चा बनकर आई है।
प्रत्येक बच्चे की अपनी क्षमता है, उसको समझें, न कि डांटें…
सारी तकलीफों की जड़ अपेक्षा रखना है। कभी भी किसी से अपेक्षा नहीं रखें। जैसे हम अपने बच्चे से अपेक्षा रखते हैं कि हमारा बच्चा आगे बढ़े। मेरे मुताबिक कार्य करे। जैसा हम सोचते और करते हैं वैसा ही वह भी करे, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि प्रत्येक आत्मा का स्वभाव, संस्कार अपना-अपना होता है। वह अपनी क्षमता के अनुसार ही आगे बढ़ती है।
अच्छा खाएं :- हमारे भोजन का मन पर सबसे ज्य़ादा असर पड़ता है। जैसा अन्न, वैसा मन। सात्विक भोजन खाने से मन भी सात्विक हो जाता है। जंक फूड खाने से बचें। क्या आप किसी भी दिन कूड़े के साथ बिताना पसंद करेंगे? तो अपने पेट में कचरा कैसे डाल सकते हैं। बच्चों को भोजन का महत्व बताएं और सिखाएं कि कैसे जंक फूड उनकी हेल्थ का दुश्मन है।
बेहतर रिश्तों के लिए बच्चों को यह करना सिखाएं:-
रिस्पेक्ट करना :- दूसरों को गलत ठहराना रिश्ते बिगडऩे का सबसे बड़ा कारण है। रिश्ते बनाए रखने के लिए सदा एक-दूसरे को सम्मान दें। अपने बच्चों को दूसरों का सम्मान करना सिखाएं।
एक्सेप्ट अदर्स :- लोग जैसे हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना सीखें। बच्चों को बताएं कि कोई अच्छा है या बुरा इसे कहने से पहले यह जान लें कि अगर वह आपका अपना है तो आप उसे जैसा है वैसा ही स्वीकार करें। उसमें मेजर बदलाव न करें।
थिंक पॉजि़टिव :- एक ने दूसरे के लिए गलत सोचा तो दूसरा भी आपके बारे में गलत सोचेगा, क्योंकि जो संकल्प हम दूसरे के लिए करते हैं वह उस तक पहुंच जाते हैं। इसलिए बच्चों को बताएं कि अच्छे विचार रखें।
सॉरी की इंपॉर्टेंस :- क्षमा करना सीखें। माफ करने के बाद उस बात को मन से निकाल दें, नहीं तो वह खुद को ही दु:ख देती रहेगी। इसी सोच को बच्चों में भी भरें। उन्हें सॉरी बोलना और सॉरी की अहमियत बताएं।
विचारों का सम्मान :- राय कितनी भी अच्छी हो, यदि सम्मान के साथ न दें तो उसे कोई स्वीकार नहीं करता। इसलिए बच्चों को बड़े प्रेम से बताएं कि किसी भी सलाह, राय या विचार को बेहतर तरीके से रखें और दूसरों को भी सुनें।
मेडिटेशन करें :- आत्मा की बैटरी चार्ज करने के लिए रोज़ आधा-पौना घंटा मेडिटेशन ज़रूर करें। टीनएज में बच्चों को योग और मेडिटेशन करना ज़रूर सिखाएं और इसके फायदे भी बताएं।
तारीफ करें :- लोगों की तारीफ करना सीख लीजिए सारी समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएंगी। इसलिए बच्चों से कहें कि अपने दोस्तों और अपने करीबी लोगों की अच्छी बातों की तारीफ ज़रूर करें।
किताबें पढऩा :- बच्चों को आध्यात्मिक पुस्तकों और प्रेरक कहानियां, इपिक्स, रामायण, महाभारत और वह किताबें जो उनकी जड़ों से जुड़ी हों उन्हें बेहतर इंसान बनाती हों ज़रूर पढऩे को दें।
अच्छा सोचें :- हमारे विचार और शब्द हमारे भविष्य के निर्माता होते हैं। विचारों के बनने की प्रक्रिया में हमारी शिक्षा और माहौल बहुत महत्व रखता है।



