प्रश्न:- बाबा कहते हैं कि तुम बच्चों को रॉयल बेगर बनकर कुछ भी मांगना नहीं है फिर बाबा से रूहहिान में कहते- बाबा मेरे अन्दर जो क्रोध है उसे मीठेपन में बदली कर दो, हमारे अहंकार को नम्रता में बदली कर दो, तो क्या यह भी मांगना नहीं हुआ?
उत्तर:- बाबा कहते हैं बच्चे मांगो नहीं, यह बिल्कुल अच्छी बात है, सच्ची बात है। लेकिन जब तक ऐसी स्थिति बनी नहीं है तो और किससे शक्ति मांगने के बजाए बाबा से मांगो। बाबा के आगे बैठो, बाबा आप इगोलेस हैं, मैं भी बन जांऊ? बाबा कहेगा बन जाओगे, तथास्तु। यह मांगना नहीं है। कमज़ोर होकर कोने में बैठ जाना, अभिमान-वश किसी के सामने भी नहीं जाना। लंगड़ाते हुए चलना। उसके बजाए बाबा के पास जायेंगे तो सीधे तो चलने लग पड़ेंगे। तो इधर-उधर जाने के बजाए बाबा के सामने बैठ जाओ। कई बार ऐसा अनुभव है जब कोई उदास होते हैं, अन्दर फालतू सोचते हैं तो हम कहते हैं प्लीज़ बाबा के पास बैठ जाओ। यह भी अन्दर से आये कि मैं बाबा को अच्छी तरह से पहचानूँ, बाबा जो है, जैसा है, वैसा जान मैं भी नम्बरवन में आऊं, तभी तो उत्साह बढ़ेगा। नहीं तो कभी जोश, कभी होश में, तो बाबा को सामने रखने से पुरूषार्थ तीव्र हो जायेगा। भिखारी होकर न मांगो। बाबा के सामने आओ, बाबा भरपूर कर देता है। ये भी एक अच्छी युक्ति है पास विद ऑनर होनेकी।
प्रश्न:- डबल विदेशियों को मधुबन निवासी बनने के लिए क्या-क्या क्वालिफिकेशन चाहिए?
उत्तर:- डबल विदेशी अपने को डबल विदेशी क्यों समझते हैं? जब ये नहीं समझेंगे कि मैं डबल विदेशी हूँ तो समर्पण हो जायेंगे। जब ये समझ में आयेगा, मैं बच्चा हूँ, ब्राह्मण हूँ, कोई अपना स्वभाव नहीं, संस्कार नहीं, जि़द्द की नेचर नहीं, कभी ऊपर कभी नीचे का खेल नहीं करते हैं तो कहाँ भी रहते मधुबन निवासी होकर रह सकते हैं। मधुबन निवासी होकर अर्थात् बेहद का वैरागी और मीठा रहना है। अन्दर से बेहद का वैराग्य हो, तपस्या का शौक हो, सच्चा हो, हड्डी सेवाधारी हो, कोई बात के चिन्तन वर्णन से, इधर-उधर के प्रभाव से फ्र ी हो, यह है मधुबन निवासी बनना।
प्रश्न:- जो आत्मायें अभी-अभी ज्ञान में आये हैं वो ऊंच पद पा सकते है? वो 108, 16108 की माला में आ सकते है?
उत्तर:- हम तो हमेशा कहती हूँ 8 में भी आ सकते हैं। 16000 में आना होता है तो मददगार रहो। 108 में आना हो तो विदेही होकर रहो। 8 में आना है तो पूज्यनीय लायक क्वालिटी बन जाओ। बाबा ने कहा है कि अभी तक माला तैयार नहीें हुई है। बाबा को सदा असम्भव का सम्भव कराना अच्छा लगता है। लोग समझेंगे यह सम्भव कैसे हो सकता है। 50 वर्ष वाले बैठे हैं, 50 दिन वाले कैसे आ सकते है। परन्तु सब कुछ हो सकता है। सिर्फ सच्चा बनो, अच्छा बनो, पक्का बनो, क्वालिटी वाला दाना बनो, बाबा से सच्चा स्नेह हो, अटूट निश्चय बुद्धि हो तो कोई बड़ी बात नहीं।
प्रश्न:- अभी तक तीन लाख आत्मायें ब्रह्मण बनी हैं, तो क्या ये सब सतयुग में आयेंगे?
उत्तर:- जरूर आयेंगे, जायेंगे कहाँ? सतयुग में 9 लाख चाहिये। अभी तो 6 लाख और चाहियेेेेेे। तो आप सब तो आयेंगे ही। बाकी ऊंच पद सतयुग में कैसे पायें ये बात करो। सतयुग में तो आ ही जायेंगे।
प्रश्न:- 1.बाबा के बारें में सोचना, 2. बाबा की याद में फीलिंग, 3. अपने सामने बाबा का रूप लाना, 4. बाबा के साथ बातें करना- इन चारों में क्या अन्तर है? इसका कैसे कर सकते है?
उत्तर:- पहले जब ज्ञान मिलता है तो बाबा के बारे में अच्छी तरह से सोचते हैं, सोचकर पहचानते है, जब पहचानते है तो सम्बन्ध की फीलिंग आती है। बाबा के बारे में सोचो, बाबा कहता है एक-एक गुण को सोचो। ऐसे मुख से महिमा नहीं कहो- बाबा प्रेम का सागर है, क्षमा का सागर हैं, आनन्द का सागर है,….लेकिन इसका अनुभव करो। जब अनुभव करेंगे। तो फीलिंग आयेगी। वो फीलिंग हमारी दूसरी सब फीलिगं को प्योर बनाती जायेगी। फिर कोई भी कार्य सामने आयेगा तो उसमें क्या करना चाहिये। बाबा सामने आयेगा। मधुबन में बाबा से मिलते हैं तो घर बैठे भी कितना बारी बाबा याद आता होगा, दिखाई देता होगा। मैं बाबा के सामने बैठा हूँ, बाबा मुझे दृष्टि दे रहे हैं। बाबा से ली हुई भासना खींचती है, वो दृश्य सामने आता है।