अध्यात्म हमको यही सिखाता है कि हमको सारी चीज़ों को यूज़ करना है और बुद्धिमानी से उसको छोड़ते जाना है। यूज़ करना है, छोड़ते जाना है क्योंकि जितना हम उसको यूज़ करके छोड़ते जायेंगे उतना धीरे-धीरे हम सबके अन्दरउस चीज़ का प्रभाव कम होता चला जाएगा
हम सभी तपस्या, त्याग के बल को थोड़ा आज गहराई से समझने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है कि इस दुनिया में जिस प्रिय वस्तु से आपका बहुत लगाव है, जो आपके लिए बहुत प्रिय है उस वस्तु का, उस व्यक्ति का, उस चीज़ का त्याग ही तपस्या है। तो तपस्या का गहरा अर्थ यही हुआ कि जो चीज़ हमको बहुत परेशान कर रही है उसको छोड़ दो, ऐसा नहीं है। तपस्या का अर्थ यह है कि जिस चीज़ से मेरा बहुत गहरा लगाव है, जो मुझे बहुत प्रिय है उसको छोड़ दो। ऐसे ही पुरुषार्थ भी सीढ़ी है जिसमें हम सभी तपस्या को एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। जिन-जिन बातों से हमको हल्का-फुल्का भी लगाव है, जिनके रहने या ना रहने से दु:ख या सुख अनुभव होता है उसको छोड़ते जाना ही तो तपस्या है। और इसका बल, इसका त्याग एक बल के रूप में हम सबको मिलेगा।
आप देखो हमारी जो दिव्यता है, डिविनिटी है वो मेन्टेन कैसे होती है या कैसे हमेशा बरकरार रहेगी? क्योंकि जब भी हम कोई भी वस्तु, व्यक्ति और वैभव को देखते हैं वो स्थूलता के साथ जुड़े हुए हैं। स्थूलता का अर्थ है जो इन आंखों से दिखाई दे रहा है, उसके साथ जुड़ी हुई है। लेकिन जो चीज़ इसके साथ बिल्कुल भी नहीं जुड़ी हुई है वो है हमारा अध्यात्म। अध्यात्म हमको यही सिखाता है कि हमको सारी चीज़ों को यूज़ करना है और बुद्धिमानी से उसको छोड़ते जाना है। यूज़ करना है, छोड़ते जाना है क्योंकि जितना हम उसको यूज़ करके छोड़ते जायेंगे उतना धीरे-धीरे हम सबके अन्दर उस चीज़ का प्रभाव कम होता चला जाएगा। इसीलिए लोगों ने इसका तरीका अपनाया ज़रूर लेकिन थोड़ा-सा अलग हो गया कि सब कुछ छोड़ के वे जंगल में चले गये। और जंगल में जाकर तपस्या करना शुरू किया और कहा कि मेरा तो किसी भी चीज़ से लगाव नहीं है। लेकिन परमात्मा एकदम अलग अर्थों में हम सबको तपस्या का बल जमा करने का तरीका बताते हैं, त्याग का बल जमा करने का तरीका बताते हुए वो ये कहते कि हमें रहना इसी दुनिया में है, सबके साथ रहना है लेकिन रहते हुए अपने आप को स्थूल व सूक्ष्म दोनों लगावों से मुक्त करना है। स्थूल लगाव तो दिखाई देते हैं, पता चलता है कि जिस चीज़ से आपका बहुत गहरा कनेक्शन है वो एकदम दिख जाता है लेकिन सूक्ष्म जो लगाव है वो हमारी बुद्धि से, हमारे योगबल से, हमारी और-और जो भी माइंड सेट हमने अपने बारे में बनाया है, जो पैटर्न बनाये हैं, उनके साथ भी हमारे बहुत सारे ऐसे गहरे लगाव हैं जिनके कारण हम सभी अन्दर-अन्दर परेशान होते रहते हैं। इसीलिए दिव्यता की डेफिनेशन, दिव्यता की जो परिभाषा है वो बहुत ही अलग हो जाती है। परिभाषा हमको ये सिखाती है कि हम सभी के जीवन में बहुत कुछ अच्छा तब होगा, बहुत कुछ बढिय़ा तब होगा जब हम ये सारी चीज़ों को देखते हुए न देखने का अभ्यास करेंगे। इसीलिए तपस्या हर पल, हर क्षण हमारे जीवन में जागरूकता के साथ जुड़ी हुई है और इस जागरूकता का जो लेवल है वो जितना बढ़ता जाता है उतना हमारी तपस्या फलीभूत होती चली जाती है। ऐसे ही एक जगह बैठ के आप कहीं पर पद्मासन में बैठकर तप कर रहे हैं ये कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन जिसमें आपको कुछ भी न करना पड़े एक-दम सहज तरीके से आप पुरूषार्थ कर रहे हैं और आपको सब कुछ आसान लग रहा है तो उस चीज़ से हम सबके जीवन में कैसे बदलाव आएगा! इसलिए परमात्मा हमको हमेशा इस बात के लिए कहते हैं कि आप तप का बल बढ़ाओ, त्याग का बल बढ़ाओ लेकिन त्याग और तप का बल तब बढ़ेगा न, जब हम सबके अन्दर हमेशा जागृति रहेगी कि ये चीज़ हमको नीचे ले आ रही है, हमको स्थूलता में ले आ रही है, हमारा मन खराब कर रही है, हमारे मन में दुविधा डाल रही है तो इस तरह से हम अपनी दिव्यता को बढ़ाते जायेंगे और दिव्यता जैसे बढ़ेगी वैसे ही पता चलने लग जाएगा कि मेरा इस दुनिया से उपराम वाली स्थिति है, मतलब हूँ मैं यही पर लेकिन बिल्कुल ही अलग हूँ, उपराम हूँ।