मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीजितना सोचेंगे…उतना परिस्थिति हमारे ऊपर हावी होगी…

जितना सोचेंगे…उतना परिस्थिति हमारे ऊपर हावी होगी…

हमारी आत्मा भी एक बैटरी की तरह है। खुशी तब महसूस होती है, जब ये बैटरी अच्छी तरह से चाज्र्ड होती है। शान्ति, सुख और प्यार भी महसूस होते हैं। जब ये बैटरी चाज्र्ड होगी, तो हम देने वाले बन जाएंगे। डिस्चाज्र्ड होगी तो लेने वाले बनेंगे। हर परिस्थिति में ध्यान में रखना है कि मन की शक्ति कम न हो।
आज आप देखो कि हर किसी को खुशी चाहिए। इतना कुछ कमा लिया, सबकुछ आ गया, परिवार इतना अच्छा है, शरीर स्वस्थ है। फिर भी हाथ उठा रहे हैं कि खुशी चाहिए। हम खुशी को निरंतर अनुभव क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्योंकि सारा दिन जो बातें आती हैं, जो मेरे अनुसार नहीं हैं, उनमें मेरा सोचने का तरीका आत्मा की बैटरी को कम करता है। अगर आपके पास सबकुछ हो, लेकिन आत्मा की शक्ति कम है तो आपको खुशी अनुभव नहीं हो सकती। क्योंकि खुशी बाहर की चीज़ों से नहीं आती है।
मैं कहीं जा रही थी तो हमारे सामने वाली सीट पर एक भाई बैठे थे, जो लगातार अपने फोन को स्क्रॉल कर रहे थे। तो हमने पूछा आप क्या कर रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि हमारे ऑफिस में आग लग गई है और सारा सामान जल गया है। मैंने उनका चेहरा देखा और पूछा कि आप ठीक हैं? तो उन्होंने कहा हां, ऑफिस जला है, लेकिन सबकुछ ठीक है। कितनी अच्छी बात है ना। उनका ऑफिस पूरा जल गया था, लेकिन मन पर जलन का असर नहीं था। तो मन की स्थिति ने क्या किया कि परिस्थिति के ऊपर मन की स्थिति हावी हुई। और अगर ध्यान नहीं रखा तो मन की स्थिति पर परिस्थिति हावी होती है। जब मन की स्थिति परिस्थिति पर हावी होती है तो हम जीत जाते हैं। कहा भी जाता है- मन जीते जग जीते। हम उल्टा चलते हैं। हम कहते हैं सबकुछ जब मेरे अनुसार होगा तो हम खुश होंगे। मतलब पहले जग पर जीत पाएंगे फिर मन पर जीत पाएंगे।
अपना एक हाथ आगे करो और देखो कि हाथ में दर्द हो रहा है। यह एक परिस्थिति है। सुबह आप उठे ये बिल्कुल सुन्न, हाथ में बहुत दर्द हो रहा है। इसको अनुभव करो। ये परस्थिति है। जब ये हाथ पूरा दर्द हो रहा है तो क्या मन भी दर्द होगा? आप अनुभव करके देखो तो पता चलेगा। हाथ दर्द होगा तो क्या मन में भी दर्द होगा? नहीं। मन में कब दर्द होगा, जब हम ये सोचने लगेंगे कि हमारे हाथ में यहां दर्द हो रहा है। जब तक आप सोचेंगे नहीं तब तक मन में दर्द नहीं हो सकता। लेकिन जब आपने सोचना शुरू किया कि क्यों दर्द हो रहा है, क्या हुआ, मुझे कैसे हो गया, अब आगे क्या होगा, तब सर में दर्द शुरू हो जाएगा। जब हाथ में दर्द हो रहा था तब मन में दर्द नहीं होगा। जब सोचने लगेंगे तब होगा। फिर चिंता होने लगेगी, घबराएंगे, डरेंगे तो जो हाथ का दर्द है वो और बढ़ जाएगा।
ये परिस्थिति है और यह मन की स्थिति है। परिस्थिति ठीक नहीं है। मन की स्थिति पर परिस्थिति का असर नहीं पड़ता। मन की स्थिति पर कब असर पड़ता है? जब हम परिस्थिति के बारे में सोचना शुरू करते हैं। लेकिन जब मन की स्थिति पर असर पड़ता है तो मन की स्थिति का असर परिस्थिति पर पडऩा शुरू हो जाता है। तो कौन शक्तिशाली हुआ- परिस्थिति या मन की स्थिति?

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