सर्व प्रथम परमात्मा के घर का अनुभव इसको हम पहला अनुभव भी कहें तो कोई बड़ी बात नहीं है। जैसे हम सभी डायमंड हॉल में जाते हैं और परमात्मा के महावाक्य चल रहे होते हैं, उसमें जो कुछ भी सुनाया जा रहा होता है तो उस समय हम सब उतना ज्य़ादा उस बात को नहीं समझ पाते क्योंकि नये-नये होते हैं। और शुरू की बात है उस समय की जो स्थिति होती है उस समय वो बात समझ नहीं आ रही होती तो हमें लगता है कि क्या है! लेकिन जैसे ही आप धीरे-धीरे इस ज्ञान को समझने लग जाते हैं तो उस ज्ञान को समझने के बाद उसको अन्दर उतारने के लिए उसके मनन-चिंतन की अति आवश्यकता होती है। तो हमारा अनुभव दादी जी के साथ यही है कि जब हम सभी भट्टी में समर्पित भाईयों की जाते थे तो उस समय दादी जी की क्लासेज होती ही थी निश्चित रूप से दो से तीन लगभग, तो उसमें दादी एक-एक चीज़ की, बाबा के साथ प्यार की गहराई का अनुभव कैसे करें उसके लिए मनन-चिंतन सुनाते थे। तो हम सबके अन्दर जो प्रश्न होता है कि हमें बाबा की याद इतनी क्यों नहीं आती? या हम इतना ज्य़ादा बाबा के साथ जुड़ क्यों नहीं पाते? जैसा दादी जुड़े। तो उसमें एक बार प्रश्न-उत्तर का एक सैशन रखा था और दादी से प्रश्न पूछा जा रहा था। तो उसमें किसी ने पूछा कि दादी जब हम योग में बैठते हैं तो कई बार या स्वप्नों में भी हमको गंदे या थोड़ा-सा जो चित्र नहीं आने चाहिए वो भी आते हैं, तो इसका कारण क्या है? तो दादी को ये बात समझ ही नहीं आई, इसका मतलब ये है कि उनका जो फेस था, फेस का जो वायब्रेशन था ऐसा कि गंदे चित्र! ये क्या होते हैं? कहने का मतलब है कि उस दिन ये बात रियलाइज़ हो गई कि जिन्होंने बचपन से ही अपनी इंद्रियों को सम्भाला, अपने आप को परमात्मा के साथ रखा और ऐसे माहौल में पले-बढ़े, ऐसी आध्यात्मिक यात्रा की कि जिसमें इन सारी चीज़ों में उनका कोई वास्ता ही नहीं रहा। केवल ज्ञान, योग और कुछ नहीं। परमात्मा का साथ और कुछ नहीं। ये है परमात्मा से योग लगने और लगाने का तरीका। उस दिन ये बात अच्छे से ज़हन में उतर गई कि हम अच्छे से प्रयास करते हैं, आज की दुनिया में हम सब देखें कि कितना कुछ है देखने के लिए और कितना अनर्गल चीज़ें हैं, जो हमारे सामने आती हैं और उनको देखते हैं। भले वो चित्र इतने गंदे नहीं हैं लेकिन फिर भी उन चित्रों के वायब्रेेशन तो हैं। जिसमें बाबा मिसिंग है, और-और बातें मिसिंग हैं, दुनियावी बातें हैं। तो आप सोचो कि हमारा कनेक्शन कैसे होगा? तो उस दिन के बाद जो मनन-चिंतन का दौर चला, जो चेंज हुआ वो आज तक भी उन्नति करवा रहा है, स्थिति बदल गई, कैसे योग करना है उसके लिए पहले रिमूव करना है। इन सारी बातों से खुद को हटाना। ये चीज़ें न देखना, न सुनना, न उसपर बात करनी। तो एक वायब्रेशन से, एक छोटी-सी बात से इतना कुछ समझने और सीखने को मिल गया जोकि हम पढ़ के भी नहीं समझ पाते थे। दूसरा, उसी के साथ एक अनुभव है कि कोई एक सन्यासी आये थे जिन्होंने बोला कि दादी मैं चाहता हूँ कि आप 120 साल भी रहें। तो उन्होंने कहा जैसा बाबा चाहे, जैसा परमात्मा चाहे। कहने का मतलब है कि किसी सामने वाले के कहने से परमात्मा की बात, और ज्ञान की गहराई न भूलना ये सबसे बड़ी कला है। मतलब चाहे कोई कितना भी साधक है, साधु है, संत है वो अपनी बात अपने भाव से हमको कहता है लेकिन हम उसके प्रभाव में आते हैं, लेकिन दादी कभी भी किसी के प्रभाव में नहीं थी, एक के प्रभाव से प्रभावित थी और वो भी परमात्मा के। तो ऐसी दादी रत्नों की खान कैसे थीं अब वो बात समझ में आई थी। क्योंकि दिन-रात रतन सुन रहा है, रतन ही बोल रहा है, रतन ही अपने अन्दर धारण कर रहा है। ऐसे रत्नों की खान दादी रतनमोहिनी जी ने हम सबको रत्नों से पाला है। तो मेरा ये पर्सनल अनुभव है कि दादी जी ने हमें मनन-चिंतन करना सिखाया। जीवन को कैसे जिया जाये और उसमें कुमार जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए और क्या विधियां हैं, कैसे खुद को बिज़ी रखा जाये। अलग-अलग तरीके बताये और आज भी वो हमारे साथ ज़हन में चलते हैं। तो ऐसी हमारी परमआदरणीया, परमश्रद्धेय दादी जी को अति-अति-अति विशेष रूप से श्रद्धा सुमन।
ज्ञान रतन हैं…ये केवल इनसे सीखा
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