प्रतिज्ञा करें भगवान से कि किसी भी कीमत पर इस पथ से हम विचलित नहीं होंगे। माया तो चारों ओर है। गन्दी चीज़ें दिखाई भी बहुत देती हैं, इलेक्ट्रॉनिक्स के साधन भी पतन का बहुत बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। लेकिन हिन्दी में एक कहावत है- जिस पेड़ के आम नहीं खाने उसके पत्ते गिनने से क्या लाभ!
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि योग की ओर मन खींचने लगे तो समझो हमने बहुत कुछ पा लिया है। फिर तो हम बाबा के पास जाकर बैठेंगे और बाबा से उसके सम्पूर्ण वायबे्रशन्स हमको मिलते रहेंगे। वायबे्रशन्स के रूप में उसके सर्व खज़ाने आत्मा में समाते हैं। चाहे सुख हो, शान्ति हो, पवित्रता हो, खुशी हो, उसका प्रेम हो, शक्तियां हो, उसकी दुआएं हो सब वायब्रेशन्स के रूप में ही आत्मा में समाती रहती हैं। बहुत अच्छा होगा यदि आप ये अभ्यास कर लें। अब आगे पढ़ेंगे… पुराने भी हैं जो ढीले हो गए हैं। उनको भी ये अभ्यास कर लेना चाहिए। और पुराने में भी और तेज चलना चाहते हैं, समय की नाजुकता को जो समझते हैं उन्हें भी 4 बार 10-10 मिनट अवश्य बैठना चाहिए। कई भाई-बहनें ये कर रहे हैं, हमारे समर्पित भाई-बहनें भी करते हैं। जब भी टाइम मिलता है कहीं भी, बाबा के बहुत सारे रूम, मेडिटेशन रूम बने हुए हैं, कहीं भी बैठकर अच्छा योग करते हैं। योग करने में हमें 10 मिनट के लिए ये लक्ष्य ले लेना चाहिए। जैसे इस बार हम 10 मिनट पांच स्वरूपों का अभ्यास करेंगे, इस बार हम दस मिनट आत्मा के स्वरूप पर स्थित होंगे, आत्मा का चिन्तन करेंगे। इस बार 10 मिनट में हम परमधाम में बाबा के साथ जाकर बैठेंगे, फिर सूक्ष्म वतन में बापदादा के सामने जाकर दृष्टि लेंगे, बातें करेंगे। ऐसे एक लक्ष्य लेकर योग करने से हम उस ड्रिल में व्यस्त होंगे और बुद्धि भटकेगी नहीं। ये सभी के लिए बहुत-बहुत आवश्यक है। आगे जाना है, आप अभी-अभी आये हैं। अच्छी तरह जानते हैं प्रभु मिलन के लिए पवित्रता पहली शर्त है। जो पवित्र नहीं वो भगवान को प्रिय भी नहीं और वो योगी भी नहीं बन सकते हैं। क्योंकि इसके पीछे राज़ ये है कि योग में बुद्धि को स्थिर करने के लिए परमात्म स्वरूप पर, बुद्धि का बहुत डिवाइन और शक्शिाली होना आवश्यक है। और यदि कोई विषय विकारों में है तो उसकी शक्तियां नष्ट होती रहती हैं और उसकी बुद्धि स्ट्रॉन्ग नहीं हो पाती। ब्रह्मचर्य का जो आधार इसको बनाया गया है उसका कारण यही है कि पवित्रता की शक्ति ब्रेन को डिविनाइज करे, दिव्य करे, शक्तिशाली करे ताकि वो स्थिर हो सके। कमज़ोर बुद्धि स्थिर नहीं हो सकती। तो पहली धारणा पवित्रता। प्रतिज्ञा करें भगवान से कि किसी भी कीमत पर इस पथ से हम विचलित नहीं होंगे। माया तो चारों ओर है। गन्दी चीज़ें दिखाई भी बहुत देती हैं, इलेक्ट्रॉनिक्स के साधन भी पतन का बहुत बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। लेकिन हिन्दी में एक कहावत है- जिस पेड़ के आम नहीं खाने उसके पत्ते गिनने से क्या लाभ! तो जिस मार्ग पर हमें चलना नहीं है उसकी चीज़ें क्यों हम देेखें! हम इम्प्युर फिल्में, गन्दी चीज़ें जो आती हैं व्हाट्सएप्प पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर उन्हें हम क्यों देखें? लक्ष्य बना लें, अपने को टीच करें(अपने को पढ़ायें) ये हमारा मार्ग नहीं है। ठीक है दुनिया में गन्दगी ही गन्दगी है, इसी को जीवन मान लिया है सबने। लेकिन हमारा ये मार्ग नहीं है। ऐसी स्वयं से बातें करते हुए प्युरिटी को स्ट्रॉन्ग करें। हमें उधर देखना ही नहीं है, उसके लिए सोचना ही नहीं है, जिस मार्ग पर हमें जाना नहीं है, भगवान को वचन दे दो- हम सम्पूर्ण पवित्र बनकर तुम्हारे महान कार्य को सफल करेंगे। और भगवान को एक बार वचन दे दिया तो उसे वापिस नहीं लेंगे। कुछ भी करना पड़े, साथियों को समझा दो कि भगवान को वचन दे दिया हमने, हम सब कुछ छोडऩे को तैयार हैं पर पवित्रता का पथ नहीं छोड़ेंगे। ये ईश्वरीय पथ है, ये प्रभु मिलन का मार्ग है। भगवान को खोजने का मार्ग नहीं, इसमें निरन्तर प्रभु मिलन का सुख हम प्राप्त कर सकते हैं, अतिन्द्रिय सुखों में रमण कर सकते हैं। ऐसा यदि आप करेंगे तो आप बहुत आगे चले जायेंगे।



