सवेरे-सवेरे अमृतवेले बाबा जगाता है, जगाना उनका काम है, और हमको क्या करना है? अच्छी तरह से उनके सामने बैठ जाना है। सवेरे सो नहीं सकते, बाबा ने ऐसी आदत डाली है। जैसे माँ-बाप बचपन से बच्चों में जो आदत डालते हैं वो जीवन भर काम आती है। हम सब बाबा के बच्चे हैं, भले उम्र में बड़े हैं पर बाबा के बच्चे हैं। अपने को छोटा-बड़ा समझना भूल है। छोटा समझेंगे तो अलबेले हो जायेंगे। बड़ा समझेंगे तो अभिमानी हो जायेंगे। तो बाबा का बच्चा समझने से दो फायदे तुरन्त हो जाते हैं- एक अलबेला समाप्त और दूसरा अभिमान समाप्त।
जैसे बाबा शुरू में कहते थे, ऊंची पहाड़ी पर जाने के लिए डबल इंजन लगती है। तो ऊंची स्थिति पर जाने के लिए तुम्हें भी डबल इंजन मिली हुई है। निराकारी भी रहो, निर्विकारी भी रहो। आज बाबा ने कहा याद में नहीं रहेंगे तो विकर्माजीत कैसे बनेंगे? अभी है विकर्माजीत बनने का समय। हमारी विकर्मों पर जीत माना कोई विकल्प न आये। पुराने विकर्म तो विनाश हो जायें पर अभी इतनी जीत हो। जिन रोया तिन खोया, पद कम, सारी कमाई खत्म। पहले आँखों से प्रेम के आँसू बहते थे, बाबा ने कहा यह भी कमज़ोरी है, शो है। मम्मा को देखा कभी प्रेम का भी आँसू नहीं बहाया, प्रेम स्वरूप रही है। इतना गम्भीरता पूर्वक ज्ञान को धारण करने से याद में निरन्तर रही है। ज्ञान गम्भीर बनाता है, गम्भीर में दिखावा नहीं होता है, वह अन्दर ही अन्दर सन्तुष्ट रहेगा, प्रसन्नचित्त रहेगा। उसका अनुभव कहता है बाबा ने इतना दिया है, खुश रहना, राज़ी रहना। राज़ी रहने वाला खुश है, खुश रहने वाला राज़ी रहता है। अपनी अवस्था को ऐसा जमाना, यह है समझदार का काम, तब दिखाई पड़ेगा यह सच्चा राजयोगी है। अवस्था जमाने से पहले याद, विकर्माजीत बनने के लिए याद। कोई विकर्म अब न हो, अभिमान वश या लोभ वश या मान-शान वश अपमान की फीलिंग आ गई, तो बाबा दूर चला गया, मैं यहाँ रह गयी। नहीं तो दूर देश वाला बाबा यहाँ बैठा है- समझा रहा है, दिखा रहा है। ऐसी स्थिति बनाने के लिए बहुत भाग्य दे रहा है। संग का, संगठन का, सेवा का भाग्य मिला है। संगठन में एक-दो को याद दिलाना बहुत अच्छा लगता है। कुछ न भी बोलें, पर जहाँ भी हैं जो भी सेवा कर रहे हैं, याद दिला रहे हैं।
विश्व को क्या पढ़ाना है, वो पढ़ा रहा है, विश्व की राजाई लेने के लिए पढ़ा रहा है। हम पढऩे के लिए बैठे हैं, कितनी सुन्दर सीन लगती है! बड़ा रुचि से, दिल से पढ़ रहे हैं। जो दिल से पढ़ता है उनकी दिलाराम से दिल लगी रहती है। ऐसे पढ़ाने वाले से दिल लगाना भूल होती है। लेकिन यहाँ पढ़ाने वाले से दिल लग गई है, यह भूल नहीं है। दिलवाला मन्दिर यादगार है, क्योंकि तपस्या दिलवाला के साथ हो सकती है। पहले दिल आराम में आई, फिर दिलवाला के साथ तपस्या में बैठने की शक्ति आ गई। जब दिल खुश नहीं है तो मैं कहाँ और वो कहाँ?
मेरी दिल कभी कठोर होगी, कभी कोमल होगी। जब दिल दिलाराम के पास बैठ गई है, तो दिल आराम में है। प्यार भरी दुआएं बाबा से पाई हैं। इतना प्यार है कि मेरे बच्चे को सिर में खुजली भी न हो। ज़रा कांटा भी न लगे, फूलों की तरह पालता है। जिसमें कोई गुण नहीं उसमें बाबा ने सब गुण भर दिये हैं। कैसा हमारा बाबा कल्याणकारी है।




