वैसे तो भारत के आध्यात्मिक जगत में नारियों का स्थान लगभग शून्य है और पुरूष प्रधान आध्यात्मिक जगत में तो नारी को ‘माया’ का पर्याय कहा गया है। समाज में नारियों को सामान्य सामाजिक अधिकारों से वंचित रखते हुए घर-आँगन की चारदीवारी में पर्दे के अंदर सीमित रखते हुए अबला बना दिया गया है। पिताश्री ब्रह्मा के मार्गदर्शन में मातेश्वरी जगदम्बा ने जब अध्यात्म के पथक को चुना था तो उस समय यह बहुत ही साहसिक निर्णय था। मातेश्वरी जगदम्बा जी ने नारी जागरण की आध्यात्मिक क्रान्तिदूत बनकर नारियों के लिए जीवनमुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। सदियों से नारियों के मानसिक बन्धनों की बेडिय़ों को तोड़कर एक प्रकार से पुरूष प्रधान समाज की व्यवस्था को सीधे चुनौति दे दी। हंगामा तो होना ही था। रूढि़वादी लोगों ने मातेश्वरी जी के मनोबल को तोडऩे के लिए ‘ओम मंडली’ संस्था के विरूद्ध धरना प्रर्दशन, हिंसात्मक विरोध से लेकर न्यायालय तक भारी विरोध किया। इन विरोधों के बीच मातेश्वरी जी परमात्म-शक्ति के निश्चय बल से अचल-अटल रहीं। मातेश्वरी जी ने दृढ़ निश्चय और विवेकपूर्ण ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र से विरोधियों पर विजय प्राप्त किया। सोना के तपने के बाद उसकी शुद्धता प्रमाणित होती है। रूढि़वादी समाज के विरोध से मातेश्वरी जी की आध्यात्मिक चेतना और अधिक प्रखर होती गई और अपने तप, त्याग और तपस्या के बल से समस्त नारी जगत के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई।
मातेश्वरी जी के जीवन से प्रेरणा लेते हुए हज़ारों नारियां सृष्टि परिवर्तन के पथ पर चल पड़ी और श्वेत वस्त्रधारियों का यह कारवां निरन्तर वृद्धि को पाते हुए अपनी मंजि़ल की ओर गतिमान है। वर्तमान समय में, लाखों ब्रह्माकुमारी बहनें मूल्यनिष्ठ समाज की पुनस्र्थापना के लिए निरन्तर सक्रियतापूर्वक समाज को एक नई दिशा दे रही हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में नारियों को जो सम्मान प्राप्त हो रहा है, वह मातेश्वरी जगदम्बा जी के अज्ञानता के विरूद्ध आध्यात्मिक चेतना के उत्कर्ष का फल है।
ज्ञान की पारसमणि… मातेश्वरी जगदम्बा जी के सम्पर्क में आने वाले मनुष्यात्माओं की चेतना ज्ञान के स्पर्श से सहज ही प्रदीप्त हो जाती थी। मातेश्वरी जी ने ईश्वरीय ‘आदेशों एवं निर्देशों’ को आत्मसात् करके अध्यात्म के शिखर को स्पर्श कर इस अद्भुत क्षमता को प्राप्त किया था। वे परमात्मा द्वारा मनुष्यात्माओं के कल्याण के लिए चलाई जाने वाली ‘ज्ञान मुरली’ को तुरंत स्पष्ट कर देती थी।
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था की स्थापना के प्रारंभिक दिनों में समाज के रूढि़वादी लोगों द्वारा ईश्वरीय ज्ञान का भारी विरोध किया गया। यह ईश्वरीय ज्ञान एक नए आदि सनातन धर्र्म की पुनस्र्थापना के लिए था। आदि सनातन दैवी धर्म की पुनस्र्थापना का मूल आधार पवित्रता है, जो इस कलियुगी दुनिया की परंपरा से बिल्कुल ही अलग है। परमात्मा द्वारा पिताश्री ब्रह्मा के माध्यम से दिया जा रहा ईश्वरीय ज्ञान एक आध्यात्मिक क्रांति थी।
नई सतयुगी दुनिया के लिए तमोप्रधान बुद्धिवादी समाज द्वारा इस नए ज्ञान को स्वीकार करना अत्यंत असहज था। परंपरावादियों के द्वारा संस्था के ऊपर कोर्ट में मुकदमा भी किया गया। मातेश्वरी जगदम्बा जी ने कोर्ट में अपने ज्ञानयुक्त तर्कों को आध्यात्मिक शक्ति से रखकर जज को चमत्कृत कर दिया, जिससे संस्था के पक्ष में फैसला आया। मातेश्वरी जी अध्यात्म के पथ पर पहले स्वयं चल अन्य सभी के लिए उदाहरणमूर्त बनकर मार्गदर्शन करती थी। वे पहले अपने जीवन के आध्यात्मिक अनुभवों से शिक्षा देकर लोगों का विश्वास अर्जित करती थी, जिससे लोग इस नये ज्ञान का विरोध भूलकर इसे स्वीकार कर लेते थे।
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था की वैश्विक स्तर पर जो पहचान बनी है, उसकी नींव मातेश्वरी जगदम्बा ने अपने त्याग, तपस्या और सेवा से तैयार की थी। नारी शक्ति द्वारा संचालित और ब्रह्मचर्य की साधना पर टिकी हुई वर्तमान तमोप्रधान विश्व में शान्ति की राह दिखाने वाली ब्रह्माकुमारीज़ संस्था सम्पूर्ण मानवता के लिए एक ईश्वरीय उपहार है। यहाँ के साप्ताहिक कोर्स में ईश्वरीय ज्ञान के गुह्य रहस्यों का सहज ढंग से इस प्रकार प्रस्तुतीकरण है कि मन में उठने वाले प्रश्नों का समाधान स्वत: हो जाता है।




