माउण्ट आबू। ब्रह्माकुमारीज् कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग द्वारा सनातन कृषि संस्कृति द्वारा ग्राम स्वराज्य विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए भारत सरकार के लोकसभा सांसद पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि हमारे पूर्वज जो गांवों में रहते थे, वे प्रकृति प्रेम और परस्पर निःस्वार्थ सहयोग की गौरवशाली परम्पराओं का सहज ही पालन करते थे | वे सर्व के कल्याण की भावना को प्राथमिकता देते थे और अपने बच्चों को भी उन्हीं मूल्यों के साथ जीने की प्रेरणा देते थे । हमारे गाँव पूरी तरह आत्मनिर्भर थे लेकिन कालांतर में रासायनिक खेती के कारण उनकी आत्मनिर्भरता में कमी आई | पुनः कोविड के दौरान हमें वही सनातन आत्मनिर्भरता की संस्कृति दिखाई दी जब भारत ने दो वैक्सीन का निर्माण कर न केवल भारतवासियों को निःशुल्क उपलब्ध कराकर लोगों के प्राण बचाये बल्कि विश्व के सौ से भी अधिक देशों के लोगों तक पहुंचाकर अपनी उसी गौरवशाली सनातन संस्कृति व संस्कार का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया। भारत में प्राचीन काल से किसान को सम्मान पूर्वक जगत का तात् व अन्नदाता की उपाधि दी गई है। किसान कृषि को व्यवसाय के रूप में नहीं बल्कि अपने फर्ज के रूप में अपनाया हुआ था। जिसको जो भी कार्य मिला है वह उसको कुदरत की तरफ से दी गई जिम्मेवारी है ऐसा मानकर पूरे समर्पण भाव से वह कार्य करता था। किसान ने अनेक कष्ट उठाते भी समाज के लिए अन्न उपजाने का कार्य अथक होकर सदा जारी रखा है चाहे अकाल आये चाहे बाढ़ आये लेकिन हर परिस्थितियों का सामना करते हुए भी उसने अपना यह कार्य छोड़ा नहीं तभी कृषि को सनातन कृषि कहा जाता है। वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती की तरफ लौटना आवश्यक हो गया है किन्तु इसके लिए पहले पशुपालन की तरफ ध्यान देना होगा। बिना गाय पालन के ऐसी खेती संभव नहीं है। पहले हमें गेहूं बाहर के देशों से मंगाना पड़ता था लेकिन आज कृषि नीति व किसानों के प्रयासों से हम आज अन्य देशों को अनाज देकर मदद करते हैं। मैंने आपके तपोवन में जो प्राकृतिक खेती का प्रैक्टिकल मॉडल बनाया है वह देखा और उनसे आग्रह किया कि मेरे क्षेत्र में भी एक स्थान ऐसा ही मोडल स्थापित करें, ताकि अन्य सभी को प्रेरणा मिल सके। उन्होंने सुझाव दिया कि तपोवन जैसे छोटे किसानो के लिए मॉडल भारत सरकार के आई.एस.आर. से मिलकर कृषि विज्ञान केन्द्रों पर बनाये जाएँ तो इसका बहुत अच्छा असर होगा। शाश्वत खेती को आपने आध्यात्मिकता के साथ जोड़ा है, जिसे कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से और अधिक व्यापक बनाये जाने की आवश्यकता है ।

चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉ. आनंद कुमार सिंह ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज द्वारा सनातन कृषि संस्कृति जैसे विषय का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण है न केवल वर्तमान के लिए बल्कि भविष्य के अनेक दशकों के लिए। यह विषय न केवल देश हित में है बल्कि पूरी मानवता का भला करने वाला है। भारत प्राचीन काल से प्राकृतिक खेती करता आया है। पहले गाय के गोबर का उपयोग खाद के रूप में किया जाता था। आज भले ही पहले की तुलना में हर चीज का उत्पादन बढ़ा है लेकिन जमीन की मिट्टी की क्वालिटी खराब हो गई है। मिट्टी, पानी सबको प्रदूषित कर दिया है। रसायनिक खेती से मनुष्य भी परेशान है और प्रकृति भी रौद्र रुप धारण कर चुकी है। तापमान बढ़ता जा रहा है, प्रदुषण बढ़ता जा रहा है । भारत को अगर विकसित राष्ट्र बनना है तो बिना कृषि के विकास के सम्भव ही नहीं है। आज किसान का विश्वास देशी तकनीक पर बढ़ा है लेकिन इसका प्रयोग अगर हम अपनी संस्कृति व विरासत के साथ जोड़ देते हैं तो विकास को कोई रोक नहीं सकता।

कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग की अध्यक्षा ब. कु. सरला बहन ने कहा कि हम धरती को माता कहते हैं तो माता से प्यार किया जाता है उसमें रासायनिक खाद के रूप में जहर नहीं पिलाया जाता। किसान यह महसूस कर ले कि यह केमिकल धरती की मिट्टी के लिए खतरनाक हैं। आध्यात्मिकता भी एक विज्ञान है। अगर भौतिक व आध्यात्मिक विज्ञान का समन्वय करें तभी सर्वांगीण विकास सम्भव है। देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक किसान है जिसे किसी विश्व विद्यालय से डिग्री लेने की जरूरत नहीं है, उसे कृषि का कौशल प्राचीन धरोहर के रूप मिला हुआ है। प्रभाग ने लक्ष्य रखा है कि किसान को सशक्त बनायें तो गांव आत्मनिर्भर बनेंगे और फिर देश आत्मनिर्भर और सशक्त बनेगा
मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए ब्र.कु. बद्री विशाल, पूर्व असिस्टेंट डायरेक्टर, कृषि निदेशालय, लखनऊ ने कहा कि ग्राम स्वराज्य का अर्थ है गाँवों का स्वशासन। महात्मा गांधी कहते थे ग्राम स्वराज्य से हिन्द स्वराज और रामराज्य की स्थापना हो। ग्राम स्वराज्य के मुख्य घटक हैं आत्मनिर्भरता, सामूहिक भागीदारी, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, नैतिक मूल्य और अहिंसा व सर्वांगीण विकास। यह सभी घटक सनातन कृषि संस्कृति के अन्दर समाहित है जिसे हम योगिक खेती कहते है| उन्होंने विभिन्न शास्त्रों और परम्परों के उदाहरण देते हुए प्रकृति प्रेम और परमात्म की याद को सनातन कृषि संस्कृति का मूलाधार बताया | उन्होंने कहा कि सनातन कृषि द्वारा ही सामूहिक भागीदारी तथा परस्पर सहयोग के साथ आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की जा सकती इसके अलावा ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने का कोई विकल्प नहीं है। इस सम्मेलन का उद्देश्य ही है कि एक दीप से अनेक दीपों को जगाया जाय।
ज्ञान सरोवर की निर्देशिका ब्र.कु. प्रभा दीदी ने कहा कि परमात्मा शिव ने हम सभी को एक मंत्र दिया है कि स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन। स्व परिवर्तन के लिए स्व की सत्य पहचान चाहिए। हम सभी इस देह को चलाने वाली चैतन्य आत्मा हैं। राजयोग का अर्थ ही है मैं आत्मा उस ज्योति स्वरूप परमात्मा शिव से सर्व सम्बन्धों की याद में रहूँ। प्राकृतिक रीति से फसल तैयार करने के साथ योग के श्रेष्ट ब्रेशन्स भी बीज में भरे और फसलों को दें।
कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग के उपाध्यक्ष व. कु. राजू भाई ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका ब्र.कु. सुनंदा ने राजयोग का अभ्यास कराया। प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका ब. कु. तृप्ति ने कुशल मंच संचालन किया। प्रभाग के मुख्यालय संयोजक ब. कु. सुमंत ने सभी का आभार व्यक्त किया।










