हम जब किसी आउट स्टेशन पर जाते हैं, किसी स्थान पर जाते हैं, किसी से मिलने जाते हैं या किसी पार्क में जाते हैं, किसी बीच पर जाते हैं तो हमको अच्छा लगता है। हमें ऐसा लगता है कि हमें अच्छा लगा लेकिन आपको ये पता होना चाहिए कि आपने वहाँ पर अपनी ऊर्जा दी तो उसने आपको अच्छा फील कराया। अच्छा नहीं लगा। हमने कुछ दिया तो वहाँ से मिला। ऐसे ही जहाँ कहीं हम जाते हैं तो अपनी आँखों से कुछ देखते हैं, अपनी आखों से अपनी ऊर्जा देते हैं तो चाहे वो पार्क हो, चाहे बाहर का आसमान हो, चाहे बीच हो, चाहे हिल स्टेशन हो हर जगह आपको अच्छा लगता नहीं है। आप वहाँ पे करते हैं, आखों से उसको ऊर्जा देते हैं, कुछ पे किया तो वहाँ से आपको अच्छा फील हो गया। इसका मतलब क्या हुआ कि हम सभी इस प्रकृति से कुछ भी फील अच्छा नहीं करते हैं, हमको वहाँ पर कुछ पे करना पड़ता है। इसीलिए हर दिन इतना कुछ आउटिंग करने के बाद भी, बाहर जाने के बाद भी, घूमने के बाद भी हम अपने आप में संतुष्ट फील नहीं करते। क्योंकि संतुष्टता तो तब हो ना जब हम वहाँ जाकर उससे खुश हो जाएं, भरपूर हो जाएं, वो हमारे अन्दर बैठ जाए, लेकिन नहीं हो पा रहा है। इसका अर्थ क्या हुआ कि हमारी ऊर्जा बस जाये जा रही है, कलेक्ट नहीं हो रही है। इसीलिए परमात्मा एक ऐसा सहारा है जो हमारे लिए जमा करने का काम करता है। तो आत्मा शरीर के साथ जुड़ी हुई है और शरीर प्रकृति से बना हुआ है। प्रकृति जोकि बाहर की चीज़ों से कनेक्टेड हो गई है, तो हम जाते तो हैं लेकिन वहाँ जाने के बाद भी अच्छा-बुरा फील करते हैं क्योंकि आत्मा को तो अच्छा-बुरा लगता ही नहीं। शरीर के साथ जुड़े होने के कारण वो थोड़ी देर के लिए फील करती है। तो हमारा जो पहला ज्ञान है यहाँ का कि आत्मा, शरीर से अलग एक शक्ति है, तो आत्मा-शरीर दोनों के कनेक्शन को हमको समझ के आगे बढऩा है। अब इसमें शक्ति कहाँ से आयेगी? केवल एक परमात्मा ही है जो हमको हर पल देने का काम करता है। बाकी सब लोग हमसे ले रहे हैं। इस प्रकृति से जुड़ी हुई हर एक चीज़ हमको लॉस कर रही है, खत्म कर रही है क्योंकि उससे हम कनेक्ट होके दे रहे हैं। मतलब उस एनर्जी को हम फील करते हैं तो हमको लगता है कि हमें अच्छा लगा, नहीं हमने पे किया। तो परमात्मा इसीलिए कहते हैं कि हम ज्ञान-योग इतने समय से करते हैं लेकिन हमारी ऊर्जा नष्ट क्यों हो रही क्योंकि हम सारा समय जो प्रकृति से जुड़ी हुई चीज़ें हैं उनके साथ एनर्जी हमारी चली जा रही है। चाहे वो देह में जाये, चाहे देह के सम्बन्धों में जाये, चाहे देह के पदार्थों में जाये लेकिन जा रही है। इसीलिए हमारी ऊर्जा जमा नहीं हो रही है। तो देने वाला सिर्फ एक ही है इस वल्र्ड में। बाकी सब हमसे लेने वाले हैं। तो अगर अपनी ऊर्जा को बचाना है तो आपको इन सारी चीज़ों से ऊपर उठना पड़ेगा। इन सारी चीज़ों से ऊपर उठने के बाद आपकी स्थिति अलग होगी। उदाहरण, जैसे हम सभी बीच-बीच में नर्वस हो जाते हैं, बीच-बीच में थोड़ा अच्छा फील नहीं करते हैं तो उसका रिज़न यही है कि जैसे परमात्मा के घर में जायें या परमात्मा से कनेक्ट हो योग लगाएं तो लगाने के बाद भी जैसे लगता है ना कि मैंने कुछ हासिल नहीं किया, जैसे कुछ अलग नहीं हो रहा, कुछ अच्छा नहीं हो रहा है, जिसका रिज़न यही है कि जो मैं कर रहा हूँ ना ज्ञान-योग वो बाहर की प्रकृति में चला जा रहा है। चाहे वो देह, देह के सम्बन्धी या देह के पदार्थ हों। तो अपने आपको अलर्ट करके इस बात के लिए थोड़ा-सा ध्यान देने की आवश्यकता है कि मैं क्यों अपनी ऊर्जा को इसमें नष्ट कर रहा हूँ। बचाऊं क्यों नहीं! इसीलिए शिव निराकार परमात्मा रोज़ हमको सिखाते हैं कि अपने इन्द्रियों पर कन्ट्रोल करो, प्रकृतिजीत बनो, देह, देह के सम्बन्धों को भूलो। अब वो बात समझ में आती है कि हमारी ऊर्जा जा कहाँ रही है! बाकी सब लेने वाले हैं, शिव परमात्मा ही देने वाला है। तो इस भाव को पकड़ कर अगर हम चलें तो शायद कुछ दिन में हमको भी उन्नति फील हो, हमें भी अच्छा लगे।
देने वाला केवल एक है…
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