
इंदौर,मध्य प्रदेश। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के न्यू पलासिया स्थित ज्ञानशिखर ओमशांति भवन में “पर्यावरण संरक्षण- जीवन संरक्षण” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें ब्रह्माकुमारीज के इंदौर जोन की क्षेत्रीय निदेशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी ने कहा की प्रकृति ने हमें जीवन जीने के लिए सब कुछ नि:शुल्क दिया लेकिन आज मानव के उपभोक्तावादी पाश्चात्य संस्कृति और औद्योगिकीकरण के कारण उसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है जो अभी उसे संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में हमें ना तो शुद्ध ऑक्सीजन मिलेगी, ना अन्य दूसरे संसाधन उपलब्ध हो पाएंगे। वास्तव में यह बाहरी प्रदूषण मानव मन के आंतरिक प्रदूषण का ही परिणाम है। आज खेतों में जो अन्न उपजा रहे हैं उसमें भी कीटों को मारने के संकल्प से जहरीली कीटनाशक दवाइयां डाली जा रही है जिससे अनाज भी विषैला और प्रदूषित हो रहा है। अतः प्रकृति को शुद्ध बनाने के लिए मन को शुद्ध बनाएं, प्रकृति के प्रति उदारता का भाव रखें। ब्रह्माकुमारी संस्थान में हम राजयोग मेडिटेशन द्वारा पवित्र, शांति के प्रकंपन चारों ओर फैलाकर प्रकृति के पांचों तत्वों को सतोप्रधान बनाने का प्रयास करते हैं और हम सब के सामूहिक प्रयास से निश्चित रूप से भारत फिर से प्राकृतिक सौंदर्य से संपन्न, विश्व गुरु, सिरमौर बन जाएगा।

इंदौर के पूर्व अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक पी. सी. दुबे ने बताया कि आज का नागरिक पर्यावरण के प्रति अपने दायित्वों से विमुख होने तथा जीवनशैली में बदलाव के कारण प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के भाव के बजाय उस पर और अधिक बोझ डालते जा रहा है। आज हम पर्यावरण की दृष्टिकोण से बहुत गंभीर संकट की स्थिति में खड़े हैं। विश्वभर में 400 मिलियन टन प्लास्टिक हर वर्ष वेस्ट होता है जो बहकर समुद्रों में जाता है और नीचे जम जाता है। तो हमें यह जानकारी हो कि जंगल से हमें केवल 28% ऑक्सीजन मिलता है बाकी 72% ऑक्सीजन समुद्र में जो पौधे, एलगी, बीट है उनसे पैदा होता है। प्लास्टिक का यह 400 मिलियन टन का कचरा वहां जाकर समुद्री सतह को दूषित कर रहा है जिससे ऑक्सीजन भी कम उत्पन्न होने लगा है। आज का युवा अगर चाहे तो प्रकृति संरक्षण के इस गंभीर विषय को बार-बार सोशल मीडिया पर डालें तो जन प्रतिनिधि व सरकार के ऊपर एक चेतना विकसित होती है। जब पर्यावरण संरक्षण जन-जन के मन का विचार होगा तभी बदलाव संभव है।

उज्जैन की वन संरक्षक श्रीमती किरण बिसेन ने कहा कि आज समय की पुकार है कि हम पर्यावरण को आध्यात्म से जोड़े तभी हम अगली पीढ़ी को कुछ दे पाएंगे। प्रकृति हमें हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सब कुछ देती है लेकिन हमारे लोभ, हबच के लिए नहीं। हमारी सोच का प्रकृति के हर तत्व पर प्रभाव पड़ता है। प्रकृति संरक्षण के लिए हम अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव लाएं- घर से निकले तो लाइट, पानी बचाएं, प्लास्टिक के बजाये कपड़े का थैला इस्तेमाल करें। इसमें जन भागीदारी का बहुत महत्व है। पौधे लगाने के साथ-साथ उसका संरक्षण भी करें। आपने सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण प्रति चलाए जा रहे अनेक योजनाओं की जानकारी भी दी।

इस अवसर पर नगर निगम के जल विभाग के कार्यपालन यंत्री संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि दिनोंदिन पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। धरती का 70% भाग जल है लेकिन उसमें से पीने योग्य, स्वच्छ पानी भूजल के रूप में मात्र 0.3% है जो कि अपने आप में एक अत्यंत चिंता का विषय बन चुका है। इसलिए यह हम सब की जिम्मेवारी है कि हम अपने-अपने स्तर पर वर्षा जल का संचय करना शुरू करें।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई। संगम नगर सेवाकेंद्र की कुमारियों ने लघु नाटिका के माध्यम से सभी को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। ब्रह्माकुमारीज के मेडिकल विंग की जोनल कोऑर्डिनेटर ब्रह्माकुमारी उषा दीदी ने प्रकृति को शांति, शक्ति के वाइब्रेशंस देने के लिए गहन योग की अनुभूति कराई। ओमशांति भवन की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी प्रेमलता दीदी ने सभी को प्रकृति संरक्षण प्रति प्रतिज्ञा कराई। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमारी भुनेश्वरी बहन ने किया। अंत में सभी अतिथियों ने पौधारोपण कर सभी को वर्षा काल में अधिक से अधिक पौधा लगाने की प्रेरणा दी।









