दिल और मन आपस में इकट्ठे हैं। मन को ऐसी खुराक मिल गई है जो कभी भूखा होकर चिल्लाता नहीं है। अगर रॉन्ग सोच लिया तो फूड प्वॉइज़न हो गया। तो बाबा कहते बच्चे कर्म में आओ, सम्बन्ध में आओ परन्तु योगयुक्त रहो। तो एवरहेल्दी, वेल्दी, हैप्पी रहेंगे। सबकी दुआयें मिलती रहेंगी। बाबा ऐसे बच्चे को बहुत प्यार से पालता है।
ज्ञान को सिर्फ मंथन नहीं करो, यूज़ करो। एक है ज्ञान सुनना, सुनाना, मंथन करना वो बड़ी बात नहीं है। यूज़ करना है। जीवन का आधार है ज्ञान, जिससे हम निराधार हो गये हैं। हम प्रकृति के अधीन नहीं हैं। ज्ञान से अंधकार भी चला गया है, कीचड़ा भी चला गया है। जब तक अन्दर का सारा कीचड़ा भस्म नहीं हुआ है तो कोई न कोई कीचड़ा उड़कर आ जायेगा। इसमें किसका दोष है? भगवान का या माया का? बाबा कहता है मैं तो माया को हुक्म करता हूँ कि इसको अच्छी तरह से पछाडऩा, देखना कहाँ तक पक्के हैं! सारा पुरूषार्थ है अपने ऊपर। बाबा सिखाता है, समझाता है, ऐसा वातावरण भी देता है। क्या खाओ, कैसे बैठो, सब सिखाता है सिर्फ शिक्षा अनुसार चलना हमारा काम है। हर समय अपने फेस को देखो, किसका बच्चा हूँ।
याद इतनी परिपक्व होती जाये, जो कोई भी पुरानी बात याद न आये। याद आई विघ्न आया। विघ्न आया तो जायेगा नहीं, टाइम लगायेगा। एक होता है ग्रहचारी, एक होता है विघ्न। चलते-चलते ग्रहचारी बैठ जाती है, कभी हल्की, कभी कड़ी ग्रहचारी बैठती है। चाहेंगे नहीं परन्तु उनसे रॉन्ग ही होता रहेगा। वैसे भी जब ग्रहचारी बैठती है तो ब्राह्मण के पास जाते हैं। कोई अभिमानी होगा तो उसे महसूस ही नहीं होगा कि यह ग्रहचारी है, वो दूसरों का दोष निकालेगा। जिस घड़ी से दूसरों का दोष निकाला, उसी घड़ी से ग्रहचारी बैठ जाती है। फिर जब उतरे।
भक्ति है विस्तार, ज्ञान है बीज। कोई बात के विस्तार में न जाना, बीजरूप बाबा को याद करना। बीज है सत्य और शान्त। बीज बहुत पॉवरफुल है। मैं बीज की सन्तान हूँ, तो विस्तार दिखाई नहीं पड़ता है। उसके आधार पर वृद्धि हो रही है। तो बाबा कहते हैं किसी बात के विस्तार में नहीं जाओ। अपने चिन्तन को शुद्ध बनाके रखो, तो यह सम्भाल है- ग्रहचारी न बैठे। दूसरा निर्विघ्न स्थिति रहे, भले विघ्न सामने आये, हम केयरलेस न रहें। नहीं तो विघ्न चक्कर में ले आयेंगे। योगबल से विघ्न अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायें, उसके लिए चाहिए तपस्या। दिलाराम से दिल लगी हुई हो। जो बाबा कराये वही करना है। तपस्या ऐसी हो जो औरों के भी कीटाणु चले जायें। किसी का दोष नहीं है। बाबा कहता है बुद्धि इतनी विशाल हो, हदों से पार हो जो हमारे लिए दिन-रात न हो। जैसे सूर्य 24 घण्टा ही अपनी सेवा करता रहता है। बाबा ने कहा है हर बात में मास्टर बनो। बचपन, फिर जवानी ऐसी हो जैसे महावीर। महावीर बनके सारी बातें पार कर ली। ऐसा मैं महावीर हूँ? बच्चे बाप को आगे रखें, बाप बच्चे को आगे रखें- यह प्रभु लीला चल रही है।




