मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीहर सुबह एक थॉट क्रियेट करें

हर सुबह एक थॉट क्रियेट करें

जीवन में कई सारे चेंज लाने के लिए सिर्फ एक को बदलना पड़ता है और वो हैं हम। हमें लगता है गुस्से से काम होते हैं, जबकि जीवन में सबकुछ अच्छा हो जाता है गुस्सा छोड़ देने से। मेरी जि़म्मेदारी है अपना ध्यान रखना। फिर औरों का ध्यान रखना। जब डॉक्टर हम बहुत अच्छे हैं तो दवाई इलाज करती है। जब हीलर हम बहुत अच्छे हैं तो हमारे वायब्रेशन्स दवाइयों से भी पहले इलाज करते हैं। हर सुबह एक थॉट क्रिएट करें। यह बहुत ज़रूरी है आज के समय में। दिन की शुरूआत मैं शांत-स्वरूप आत्मा हूँ, मैं परमात्मा का फरिश्ता हूँ, के संकल्प से करें। हर रोज़ हर घंटे के बाद अपने को इसकी याद दिलाएं कि मैं परमात्मा का उपकरण हूँ। वो मुझे उपयोग करते हैं।

जैसे ही हम परमात्मा को याद करते हैं तो उनके वायब्रेशन्स हमारा हिस्सा बन जाते हैं। जिसको हम याद करते हैं, हमारे मन की स्थिति, हमारी एनर्जी फील्ड उसके साथ कनेक्ट हो जाती है। और अगर आप परमात्मा को याद करेंगे तो कनेक्शन किससे जुड़ जाएगा? शान्ति का सागर, सर्वशक्तिमान, प्यार का सागर, उसको एक पल के लिए भी अगर याद करेंगे तो कनेक्शन जुड़ जाएगा।

किसी भी चीज़ को ठीक करना है तो पहले रोग का पता लगाना ज़रूरी है। क्या छोटी-छोटी बातें आती हैं रिश्तों में? अहंकार, अपेक्षाएं, हर्ट होना, संवादहीनता, ईष्र्या, स्वभाव नहीं मिलना, भरोसे का कम हो जाना आदि। इससे रिश्तों में समस्याएं आती हैं। लेकिन जब ये सारे शब्द हम निकाल रहे होते हैं तो ये अपने बारे में बोल रहे होते हैं या किसी और को याद करके सुना रहे होते हैं? किसी के बारे में नहीं सोचना। क्योंकि किसी और के बारे में सोचने का मतलब है ऊर्जा की बरबादी और समय की बरबादी। अगर जांच-पड़ताल भी करनी हो तो सबसे पहले अपनी करें। कारण ढूंढें कि मेरा रिश्ता सहज-सरल क्यों नहीं है? खुद से पूछें कि मैं उसे ठीक करने के लिए अपने में क्या बदलाव ला सकता हूँ या ला सकती हूँ?

हममें से कितनों को लगता है कि हमारा नेचर कभी-कभी किसी और से मैच नहीं करता है? जब स्वभाव ही नहीं मिलेगा तो गलतफहमियां हो जाएंगी। हम किसी को देखते हैं और कहते हैं कि उनका संस्कार हमारे से बिल्कुल अलग होता है। हम उनको कहते हैं हम आपको समझ नहीं सकते। वो भी कहते हैं कि मैं भी आपको समझ नहीं सकता। हम ये समझते हैं कि रिश्ता तब अच्छा होगा जब दोनों का नेचर एक जैसा होगा।

लेकिन सोचो, एक दिन दोनों उठे सुबह, एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा बोलते हैं, एक जैसा करते हैं, कुछ अलग ही नहीं है दोनों के बीच मेें, तो कैसा हो जाएगा जीवन! बोरिंग नहीं हो जाएगा? एक जैसा हुआ तो उबाऊ और अलग हुआ तो दिक्कत- अब इन दोनों में से कौन-सा चुनें? हम ये अपेक्षा करते हैं कि दूसरा ठीक हमारे जैसा सोचे, बोले और करे। न कम करे न ज्य़ादा करे। लेकिन जब आपको अपना परिचय मिल जाता है कि मैं तो आत्मा हूँ, तो इससे हर समस्या का समाधान मिल जाता है। तब एक और चीज़ समझ आएगी कि आत्मा इस शरीर में है, इससे पहले एक और शरीर में थी, उससे पहले किसी और शरीर में होगी, तो इतना विषाद क्यों?

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