जिस प्रकार हम वाहन चलाते वक्त सावधानी रखते हैं कि हम किसी से ना टकरायें या दूसरा कोई हमसे न टकरा जाए। इसी प्रकार कुसंग के बारे में हमें इससे भी अधिक सावधानी रखने की ज़रूरत है। क्योंकि कुसंग हमारे अमूल्य जीवन को व्यर्थ की तरफ ले जाता है। जबकि सत्य का आधार रखते हुए शुभचिंतन से हमारा जीवन श्रेष्ठ बनता है।
प्राचीन काल की बात है, एक अशिक्षित ब्राह्मण कू्रर डाकू बन गया। उसने अपने परिवार के पोषण के लिए यात्रियों की हत्या और लूट का मार्ग अपनाया। एक बार एक संत का डाकू से सामना हो गया। डाकू ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। इस पर संत ने कहा कि तुम अपने जिन सदस्यों के पोषण के लिए यह पाप कर्म करते हो, क्या तुम्हारे पाप में वे परिजन भी भागीदार होना चाहेंगे?
डाकू आश्चर्यचकित था। उससे पहली बार किसी ने ऐसा सवाल किया था। उसने सहमति तो जता दी लेकिन पुष्टि करने के लिए थोड़ा समय मांगा। संत को एक पेड़ से बांधकर डाकू घर पहुंचा और अपने पिता से वही सवाल पूछा, जो संत ने पूछा था। पिता ने उत्तर दिया, हमने तुम्हें छोटे से बड़ा किया, अब हमारा पोषण करना तुम्हारा कत्र्तव्य है। तुम कैसे धन लाते हो, हमेें इससे कोई सरोकार नहीं है। तुम्हारे पाप में हमारे भागीदार होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
पिता के वचन सुनकर डाकू के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। डाकू ने फिर एक-एक कर माता, पत्नी और पुत्र से भी यही प्रश्न किया। सभी ने स्पष्ट मना कर दिया। तब डाकू दौड़ता हुआ संत के पास पहुंचा और उन्हें बंधनमुक्त कर माफी मांगी। संत की प्रेरणा से डाकू ने अपना पाप कर्म छोड़ दिया और भगवान का जाप करने लगा।
संतजन कहते हैं – जीवन में सतसंग के अवसर आते रहते हैं। हम यदि उनकी तरफ पीठ कर खड़े हैं तो सतसंग का लाभ नहीं मिल पाता। यदि सतसंग में उतरे तो जीवनभर का पाप भी कुछ पलों में तिरोहित होकर, जीवन की दिशा बदल देता है। जीवन में यदि कुछ पल भी सतसंग के मिलते हैं तो जि़ंदगी संवर जाती है। ये कुछ पल पूरे जीवन के पापों को भी दूर कर देते हैं। इसलिए सतसंग करें या ना करें परंतु कुसंग कभी न करें।
वर्तमान का समय व्यावहारिक दौर है अर्थात् हमें जीवन में अनेक लोगों से मिलना-जुलना पड़ता है, तब हम यह भी जान जाते हैं कि कौन लोग अच्छे नहीं है, परंतु फिर भी इसी व्यवहार की वजह से, उनसे संबंध भी रखने पड़ते हैं। समझदारी इसमें है कि उनसे व्यवहार तो रखें परंतु कुसंग अधिक लंबे समय तक पकड़ कर न रखें। जिस प्रकार हम वाहन चलाते वक्त सावधानी रखते हैं कि हम किसी से ना टकरायें या दूसरा कोई हमसे न टकरा जाए। इसी प्रकार कुसंग के बारे में हमें इससे भी अधिक सावधानी रखने की ज़रूरत है।
कुसंग पहले अंदर प्रवेश करता है – कुसंग का अर्थ यह नहीं कि केवल आचरणहीन के साथ नहीं रहना, अपितु नकारात्मक विचार वालों से भी दूरी बनाकर रखना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों से भी दूर रहें जो अपनी जि़ंदगी में आलस्य और अलबेलेपन की जि़ंदगी बिता रहे हों, जैसे लोहा पानी पर नहीं तैर सकता, वैसे ही मूर्ख की संगत से कोई लाभ नहीं मिल सकता। संग सदा ऐेसे लोगों का करें जो जीवन में सदा उमंग-उत्साह और दूसरों को ऊंचा उठाने का कार्य करते हों अर्थात् अपने जीवन में उत्साहित हो और उनकी हर बात में हिम्मत झलकती हो। अत: आप लोगों से तभी जुड़ पाएंगे, जब आप अपने मन को कुसंग से बचा कर रखेंगे क्योंकि कुसंग से बाहरी लोगों की ज़रूरत नहीं, यह तो अंदर ही घोर कुसंग का संसार समेट कर रखता है। इसलिए पहले स्वयं को भीतर से बचाएं फिर बाहर की तैयारी करें।
सतसंग होता है ज्ञान मार्ग में – आज अनेक लोग यह नहीं जानते कि सत् का संग किसको कहा जाता है। सतसंग का नाम तो अविनाशी चला आता है, जैसे भक्ति मार्ग में कहते हैं- हम फलाने-फलाने सतसंग में जाते हैं। सतसंग कोई निमंत्रण नहीं है कि जब बुलाएंगे तभी हम जायेंगे। सतसंग तो मन की प्यास है, जायेगा वही जिसको प्यास लगी होगी अर्थात् सत्य की जानकारी रखने वालों का संग, जीवन को ऊंचाइयों की ओर ले जाने वालों का संग। सतसंग खुद को बदलने की सबसे ऊंची प्रक्रिया का नाम है। वास्तव में भक्ति मार्ग में कोई सतसंग में जाते ही नहीं क्योंकि सतसंग होता ही है- ज्ञान मार्ग में, संगमयुग पर आत्माएं सत्य पिता परमात्मा शिव के संग बैठती हैं और कोई जगह आत्माएं परमपिता परमात्मा के संग नहीं बैठती क्योंकि आत्माओं के पिता को पहचानते ही नहीं।
अज्ञान अंधेरा छँटता है, सतसंग से – आज जबकि संसार में अनेक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं तो लोग यह समझने लगे हैं कि आत्मा और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अर्थात् समस्याओं का समाधान धैर्य और अध्यात्म के पास ही सबसे सही है, जिसे कह सकते हैं- सतसंग अर्थात् सत् का संग करना ही समाधान है। सत्य अर्थात् परमात्मा का संग करके अनेक जन्मों के पापों से छुटकारा पाया जा सकता है और आगे पाप करने से भी छूटा जा सकता है। कहा जाता है कि मनुष्य जीवन में सतसंग भी बड़े भाग्य से मिलता है। जब सतसंग मिलता है तो अज्ञानता का अंधेरा छँटता जाता है और अनेक समस्याओं का निदान निकलता है। यही सतसंग अर्थात् परमात्मा के संग से सुख, शांति, आनंद तक पहुंचाने का रास्ता भी है।
अच्छी संगति बुद्धि को प्रखर बनाती है – अच्छी संगति और अच्छे विचार व्यक्ति में हिम्मत और सकारात्मक भाव लाती है। समाज के निर्णय में, मनुष्य के निर्माण में अच्छी संगति का योगदान होता है। अच्छी संगति बुद्धि को प्रखर बनाती है और वाणी में मिठास लाती है। अच्छी संगति व्यक्ति को निर्भय बनाती है और प्रेरणा देती है।



