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परमात्म मिलन में दो बाधायें

जब हमको परमात्मा का ये पॉवरफुल ज्ञान मिलता है और उससे जुडऩे के लिए, योग लगाने के लिए कहा जाता है तब हम अपने मन-बुद्धि और संस्कारों की तरफ देखना शुरू करते हैं। कहने का भाव यह है कि मन-बुद्धि और संस्कार की गहराई बहुत जबरदस्त है। लेकिन जब परमात्मा से जुडऩे के लिए कोई कॉमेन्ट्री दी जाती है तो वो तो दूसरे की है, किसी और ने अपने भाव व्यक्त किए हैं जिसको आप सुनते हैं। लेकिन उसके आधार से कहा जाता है कि बातचीत करो।

तो ऐसी कौन-सी बाधा है जो हमको परमात्मा से जुडऩे में बहुत ज्य़ादा आड़े आती है? तो सबसे पहली बाधा है- पुराने संसार की। जिसमें संसार, वस्तु, वैभव, पदार्थ सब आते हैं। जिनसे हमारा बहुत गहरा जुड़ाव है। दूसरा है पुराने संस्कार। जिसमें हमारे जेनेटिक माता-पिता से मिला हुआ संस्कार, वातावरण से मिला हुआ संस्कार, पूर्व जन्मों का संस्कार आदि-आदि और जो संस्कार हमने बनाएं हैं वो आड़े आते हैं। अब आप सोचो कि ये दो तरह की बातें हैं, जो इतनी गहरी बाधा है कि देखो जब हम परमात्मा से जुड़ेंगे ना तो कोई न कोई भाव लेकर जुड़ते हैं। चाहे किसी वस्तु के लिए, चाहे किसी पदार्थ के लिए, चाहे किसी व्यक्ति के लिए मतलब भक्ति में तो यही होता था, मतलब कि जब हम भक्ति में जाते हैं, भगवान के घर में जाते हैं, बैठते हैं, तो यही सारी बातों को लेकर हम भगवान से बात करते हैं। लेकिन रियल सुख परमात्मा से शक्ति वाला, उससे स्नेह वाला, उससे प्रेम वाला वो भाव तब जनरेट होता है जब हम इस पुराने संसार के आकर्षण से परे होंगे। आज हमको देह और देह के सम्बन्धियों का बहुत गहरा आकर्षण है। जिसकी वजह से जब हम बातचीत करने बैठते हैं तो वो चीज़ हमारे आड़े आती है, खिचंती है अपनी तरफ।

इसीलिए योग का जो पहला आधार बताया जाता है कि खूब आत्म बल बढ़ाना माना खूब आत्मिक स्थिति बढ़ाना माना याद दिलाना कि ‘मैं देह से अलग हूँ’। मैं एक पॉवरफुल सॉल हूँ। इसका लम्बेकाल का अभ्यास ऑटोमेटिकली हमको परमात्मा के साथ जोड़ देगा। ऐसे ही हमारे जो पुराने संस्कार हैं जिसमें बाबा कहते हैं कि शरीर के ऊपर जो नाम पड़े, उसके अलावा हमने इन सबसे जो कुछ भी सीखा है, जो कुछ भी पढ़ा है, लिखा है, टैग लगे हैं बहुत सारे, जो हमने अचीव किया है, अटेन(प्राप्त) किया है वो सारी चीज़ें हमको तंग करती हैं। और दूसरे को एन्जॉय एकदम नहीं करने देती है। वो संस्कार बाबा के ऑरिज़नल संस्कार से बिल्कुल डिफ्रेंट हैं।

बाबा कहते हैं हमारा जो ऑरिज़नल संस्कार है, बाबा ने जो हम सबको बोला है कि आत्मा का संस्कार बहुत शुद्ध और पवित्र है। उस शुद्ध और पवित्र संस्कार से ही तुम मेरे से बातचीत कर सकते हो, मेरे पास मेरे से जुड़ सकते हो। तो सबसे पहले अभ्यास के लिए, परमात्म मिलन के लिए मुझे इन दो ऐसी बाधाओं को पकड़ के दूर करना है, पहला पुराने संसार का, और दूसरा पुराने संस्कार का इसमें व्यक्ति, वैभव, वस्तु, पदार्थ सब शामिल हैं। जितना हम इनको भूलेंगे उतना हम परमात्मा के पास ऑटोमेटिकली नज़दीक होते चले जायेंगे। और इन दोनों को करने के लिए बहुत मेहनत की आवश्यकता है। साथ-साथ अटेन्शन की आवश्यकता है। और आज करते-करते आज नहीं तो कल धीरे-धीरे आपको अच्छा लगने लग जायेगा।

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