अध्यात्म प्रज्ञा राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि जी, एक ऐसी विदूषी सशक्त नारी का नाम है जिन्होंने यह सिद्ध किया कि नारी शक्तिस्वरूपा है। नारी में विद्यमान शक्ति को आध्यात्मिकता द्वारा पुनर्जागृत किया जाए तो वह समाज में महान क्रान्ति की नायिका बन सकती है।
दिव्यता की मूर्ति दादी प्रकाशमणि का जन्म सन् 1 जून 1922 में हैदराबाद सिन्ध(पाकिस्तान) में हुआ। वह बचपन से ही दिव्य आभा से आलोकित थीं। सन् 1937 में विश्व के सृजनहार परमपिता परमात्मा शिव ने हीरे जवाहरात के प्रतिष्ठित व्यापारी दादा लेखराज को परमात्म स्वरूप एवं भावी नयी सतयुगी दुनिया का अलौकिक साक्षात्कार कराया। ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ के दिव्य नाम से जाने जाते उन्हीं दादा ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना की। हैदराबाद के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी की पुत्री रमा 14 वर्ष की तरुण आयु में, इस संस्था के संस्थापक के सम्पर्क में आई। उसे भी अनेक दिव्य साक्षात्कार हुए, जिसमें उन्होंने ज्योति स्वरूप शिव एवं नयी सतयुगी दुनिया देखी। उन्हें वर्तमान विश्व, प्रकृति के प्रकोप, अणु शक्ति, गृह युद्ध आदि द्वारा परिवर्तन होने का भी दृश्य दिखाई दिया। रमा के दूरदर्शी एवं भविष्यवक्ता लौकिक पिता को अपनी सुपुत्री के भावी जीवन के संकेत प्रारंभ से ही मिल गये थे। उन्हीं के अनुरूप यही रमा आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति कर प्रकाशमणि कहलाई।
आदर्श ब्रह्माकुमारी और संस्था की स्थापना स्तंभ – रत्नप्रभा दादी जी ने अपनी बाल्यावस्था से ही स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन की संकल्पना के साथ इस संस्थान की आध्यात्मिक क्रान्ति में अपने आपको प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के सम्मुख पूर्ण रूप से ईश्वरीय कार्य में समर्पित कर दिया। अपनी निर्मल, कुशाग्र बुद्धि और सत्यता की पहचान के कारण ब्रह्माकुमारीज़ संगठन में प्रेरणा और उदाहरणमूर्त बनीं। इनकी अलौकिक शक्ति को पहचानकर प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने प्रकाशमणि, अन्य कुमारियों और माताओं का संगठन बनाकर, अपना सब कुछ ईश्वरीय कार्य में समर्पित किया। तब से दादी प्रकाशमणि, इस संस्था में एक आदर्श ब्रह्माकुमारी तथा संस्था की स्थापना-स्तम्भ के रूप में आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग को प्रस्तुत करने में एक अनुपम प्रेरणास्रोत बनीं। संस्थान में समर्पित होने के बाद कुछ ही समय में स्वयं को एक कुशल, तेजस्विनी, तीव्रगामी पुरूषार्थी के रूप में प्रस्तुत किया और मानवीय मूल्यों से सुसज्जित प्रकाशस्तम्भ बन कर उभरीं।
ब्रह्माबाबा ने ईश्वरीय सेवा हेतु भेजा – दादी की दिव्य बुद्धि, वक्तृत्व कला और योग की पराकाष्ठा को देखते हुए प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने इन्हें भारत के विभिन्न स्थानों पर ईश्वरीय सेवाओं हेतु भेजा। इनके सद्प्रयास से दिल्ली, अमृतसर, कानपुर, मुम्बई, कोलकाता, पटना, बैंगलोर आदि महानगरों में ईश्वरीय सेवाकेन्द्रों की स्थापना हुई। पांच वर्ष तक मुम्बई राजयोग केन्द्र की निदेशिका के रूप में सैकड़ों कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किए। 1964 में इन्हें महाराष्ट्र ज़ोन की संचालिका और उसके बाद 1968 तक महाराष्ट्र, गुजरात व कर्नाटक ज़ोन की प्रभारी के रूप में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ।
स्वयं ब्रह्माबाबा ने ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की बागडोर – सौंपी सन् 1969 में संस्था के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने अपने देहावसान के पूर्व संध्या पर दादी के अदम्य साहस, निष्ठा, ईमानदारी तथा विश्व कल्याण की सेवाओं में समर्पणता को देखते हुए, अपना हाथ दादी जी के हाथ में देते हुए, अपनी सर्वशक्तियां हस्तांतरित कर ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की बागडोर सौंपी। तब से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक वह संस्था की मुख्य प्रशासिका के रूप में कार्य करती रहीं।
विश्व में भारतीय संस्कृति सभ्यता के प्रति प्रेरित किया – अध्यात्म की ज्योति लेकर दादी जी ने देश ही नहीं विदेशों में भी प्राचीन भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राजयोग के सिद्धान्तों को लेकर, उच्च जीवन प्रणाली के लिए सभी को प्रेरित किया। दादी के कुशल संचालन में ईश्वरीय विश्व विद्यालय में व्यक्तित्व निर्माण की आभा इतनी तीव्र हुई, जिसके फलस्वरूप आज देश-विदेशों में आठ हज़ार ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक सेवाकेन्द्र स्थापित हुए और हज़ारों भाई-बहनों ने अपना जीवन ईश्वरीय कार्य के लिए समर्पित किया।
संस्थान को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता दी – दादीजी के नेतृत्व में, समाज में शान्ति, सद्भावना, धार्मिक समरसता, भातृत्व प्रेम जैसे मूल्यों की स्थापना के कार्य को देखते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ ने गैर सरकारी संस्था के तौर पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की परामर्शक सदस्यता प्रदान की तथा युनिसेफ से भी जोड़ा। दादीजी के नेतृत्व में संस्थान द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विराट रूप से चल रहे मानवीय कार्यों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय को सन् 1985 में अन्तर्राष्ट्रीय क्रशान्ति पदकञ्ज और दादीजी को सन् 1987 में सकारात्मक कार्यों के लिए क्रशान्ति दूत सम्मानञ्ज से भी अभिनंदित किया। 5 राष्ट्रीय स्तर के भी शान्तिदूत पुरस्कार प्रदान किए। इसके अलावा, दादी जी को अनेक महामण्डलेश्वरों, सामाजिक संस्थानों, राज्य सरकार ने विभिन्न पुरस्कार एवं सम्मान चिन्ह भेंट करते हुए उनकी सेवाओं की स्तुति की।
मानद उपाधि से नवाजा – आध्यात्मिक शक्ति एवं बहुमुखी सेवाओं को देखते हुए, दादी प्रकाशमणि को 30 दिसम्बर,1992 को मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय द्वारा राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एम. चेन्ना रेड्डी ने क्रडाक्टरेटञ्ज की मानद उपाधि से विभूषित किया। उत्कृष्ट सामाजिक सेवाओं के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने उन्हें ‘अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार-1994’ भेंट किया।
आध्यात्मिक चेतना की अग्रदूत – दूरदृष्टा दादीजी ने राजयोग शिक्षा एवं शोध संस्थान की स्थापना करते हुए विभिन्न वर्गों के सोलह प्रभागों का गठन किया। इनमें शिक्षाविद, युवा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, समाजसेवा, सांस्कृतिक, न्यायिक, प्रशासनिक, मीडिया आदि प्रभाग शामिल हैं। इनके अन्तर्गत अध्यात्म का समन्वय व शोध प्रारंभ हुआ। इसी के आधार पर संस्था अध्यात्म, प्राणी मात्र को समर्थ दिशा बोध देेने में सक्षम बनी। ये प्रभाग अपने-अपने क्षेत्र में विश्व बंधुत्व के बोध को जगाने के लिए सक्रिय प्रयोग करते आ रहे हैं। ज्ञान-योग की तर्क संगत वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुति बुद्धिजीवियों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। दादीजी विभिन्न जाति, वर्ग, रंग-भेद को दूर करने हेतु विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक आध्यात्मिक चेतना की अग्रदूत बनीं।
विश्व धर्म संसद ने अध्यक्षा के रूप में मनोनीत किया – शिकागो में ‘विश्व धर्म संसद’ ने शताब्दी कार्यक्रम में मनोनीत अध्यक्षा के रूप में आमंत्रित कर, आशीर्वाद प्राप्त किया। सन् 2000 में जब दादीजी ईश्वरीय सेवार्थ अमेरिका गईं, उस समय वॉशिंग्टन डी.सी. में स्टेट कैपिटल बिल्डिंग के सामने मेयर ने दादी जी के करकमलों से वृक्षारोपण कर ‘ओमशान्ति ट्री’ नामांकित किया, साथ ही प्रतिवर्ष 10 जून को क्रप्रकाशमणि दिवसञ्ज मनाने की उद्घोषणा की, जो आज भी यथावत् कायम है।
आध्यात्मिक मूल्य जागृति हेतु यूनेस्को ने विशेष सम्मानित किया – यूनेस्को ने दादीजी को अंतर्राष्ट्रीय शान्ति संस्कृति वर्ष के दौरान पीस मेनिफेस्टो 2000 के अंतर्गत भारत व 120 अन्य देशों से साढ़े तीन करोड़ व्यक्तियों के हस्ताक्षर जुटाने पर विशेष अवॉर्ड से सम्मानित किया। शान्ति एवं सद्भाव के संचार के लिए दादीजी के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय धर्मसम्मेलन का आयोजन शान्तिवन में विभिन्न तीर्थ स्थलों से निकाली गई यात्राओं के समापन पर किया गया।
मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत दादीजी के निर्मल, पवित्र और प्रकाशदायी व्यक्तित्व से लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन आया। इनके सानिध्य में लाखों परिवार पवित्र, तनाव एवं व्यसनों से मुक्त, सुखी जीवन जीने की कला सीखकर अनेकों के लिए आदर्शमूर्त बने हैं। ऐसी आभामयी दादी को शत्-शत् नमन।


