परमात्म ऊर्जा

सदा हर्षित रहने के लिए कौन-सी सहज युक्ति है? सदा हर्षित रहने का यादगार रूप में कौन-सा चित्र है, जिसमें विशेष हर्षितमुख को ही दिखाया है? विष्णु का लेटा हुआ चित्र दिखाते हैं। ज्ञान को सिमरण कर हर्षित हो रहा है। विशेष, हर्षित होने का चित्र ही यादगार रूप में दिखाया हुआ है। विष्णु अर्थात् युगल रूप। विष्णु के स्वरूप आप लोग भी हो ना। नर से नारायण व नारी से लक्ष्मी आप ही बनने वाले हो या सिर्फ बाप बनते हैं? नर और नारी दोनों ही जो ज्ञान को सिमरण करते हैं वह ऐसे हर्षित रहते हैं। तो हर्षित रहने का साधन क्या हुआ? ज्ञान का सिमरण करना। जो जितना ज्ञान को सिमरण करते हैं वह उतना ही हर्षित रहते हैं।

ज्ञान का सिमरण ना चलने का कारण क्या है? व्यर्थ सिमरण में चले जाते हो। व्यर्थ सिमरण होता है तो ज्ञान का सिमरण नहीं होता। अगर बुद्धि को सदा ज्ञान के सिमरण में तत्पर रखो तो सदा हर्षित रहेंगे, व्यर्थ सिमरण होगा ही नहीं। ज्ञान का सिमरण करने के लिए सदैव हर्षित रहने के लिए खज़ाना तो बहुत मिला हुआ है। जैसे आजकल कोई बहुत धनवान होते हैं तो कहते हैं इनके पास तो अनगिनत धन है। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना जो मिला है वह गिनती कर सकते हो? इतना अनगिनत होते हुए फिर छोड़ क्यों देते हो? कोई कमी के कारण ही उस चीज़ का न होना सम्भव होता है। लेकिन कमी न होतेे भी चीज़ न हो, यह तो नहीं होना चाहिए ना। ज्ञान के खज़ाने से वह बातें ज्य़ादा अच्छी लगती हैं क्या? जैसे समझते हो कि यह बहुत समय की आदत पड़ी हुई है, इसलिए ना चाहते भी आ जाता है। तो अब ज्ञान का सिमरण करते हुए कितना समय हुआ है? संगम का एक वर्ष भी कितने के बराबर है? संगम का एक वर्ष भी बहुत बड़ा है। इसी हिसाब से देखो तो यह भी बहुत समय की बात हुई ना!

तो जैसे वह बहुत समय के संस्कार होने के कारण ना चाहते भी स्मृति में आ जाते हैं, तो यह भी बहुत समय की स्मृति नैचुरल क्यों नहीं रहती? जो नई बात व ताजी बात होती है वह तो और ही ज्य़ादा स्मृति में रहनी चाहिए, क्योंकि प्रेज़ेन्ट है ना। वह तो फिर भी पास्ट है। तो यह प्रेज़ेन्ट की बात है, फिर पास्ट क्यों याद आता? जब पास्ट याद आता है तो पास्ट के साथ-साथ यह भी याद आता है कि इससे प्राप्ति क्या होगी? जब उससे कोई भी प्राप्ति सुखदाई नहीं होती है तो फिर भी याद क्यों करते हो? रिज़ल्ट सामने होते हुए भी फिर भी याद क्यों करते हो? यह भी समझते हो कि वह व्यर्थ है। व्यर्थ का परिणाम भी व्यर्थ होगा ना। व्यर्थ परिणाम समझते भी फिर प्रैक्टिकल में आते हो तो इसको क्या कहा जाए?

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