मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजमानवता से भी उपराम है ये कृष्ण का व्यक्तित्व

मानवता से भी उपराम है ये कृष्ण का व्यक्तित्व

इस दुनिया में हम सबको एक व्यक्तित्व के दायरे में बांधते हैं- जैसे गुरुनानक देव जी का एक व्यक्तित्व है, उस व्यक्तित्व के आगे आप कुछ सोच नहीं सकते। ऐसे ही महात्मा बुद्ध, महावीर जैन, ईसा मसीह, सबका एक व्यक्तित्व है। श्रीराम चन्द्र का एक व्यक्तित्व है। इन सबका व्यक्तित्व जब हम देखते हैं तो उसी हिसाब से हम टिप्पणी करते हैं। लेकिन अगर आप एक सम्पूर्ण चरित्र को, पूर्ण अवतार के रूप में अगर किसी को देखते हैं तो कृष्ण को देखते हैं। कृष्ण का व्यक्तित्व सम्पूर्ण व्यक्तित्व है। लेकिन उस व्यक्तित्व को परिभाषित करना आसान नहीं है।

जैसे आप सभी ने रसखान को पढ़ा होगा, सूरदास को पढ़ा होगा, ऐसे बहुत सारे अलग-अलग कवियों को पढ़ा है, सबने कृष्ण की महिमा अपने हिसाब से की है। जैसा उन्होंने देखा है। माना एक व्यक्तित्व में अनेक रूप इतने सारे हैं जिसको इतने सारे नामों के साथ बुलाया जाता है। फिर भी वो पूर्ण सा अनुभव नहीं होता। लगता है कि नहीं कुछ और जुडऩा चाहिए, कुछ और इसमें एड होना चाहिए। तो जब हम ऐसा सोचते हैं, तो सोचते हैं कि कैसा व्यक्तित्व रहा होगा! इसलिए कृष्ण के व्यक्तित्व को अगर ज़ीरो व्यक्तित्व कहा जाए मतलब उसका ना कोई बिगनिंग है, ना कोई एंड है, ना कोई शुरूआत है, ना कोई अंत है। क्योंकि शुरूआत और अंत जिसका होगा ना उसको लोग एक सीमा में बांध देंगे। लेकिन कृष्ण के व्यक्तित्व को सीमा के परे की स्थिति में देखा जाता है। कारण उसको हम एक परिधि में नहीं बांध सकते। इसीलिए परमात्मा को सम्पूर्ण जो समर्पित होता है, जैसे हमारे परमात्मा के सबसे नम्बर वन जो बच्चे कहे जाते हैं, जिनको प्रजापिता ब्रह्मा कहते हैं उन्होंने अपने आपको सम्पूर्ण रूप से एक परसेन्ट भी यहाँ के व्यक्तित्व के हिसाब से नहीं रखा। सम्पूर्ण व्यक्तित्व परमात्मा का अपने अन्दर समाया। माना पूरी तरह से समर्पित किए। और जब हम अपने आपको पूरी तरह से परमात्मा में खो देेते हैं तब जाके हमारा ज़ीरो व्यक्तित्व बनता है। उस ज़ीरो व्यक्तित्व को ही लोग आज एक्सप्लेन नहीं कर पा रहे, परिभाषित नहीं कर पा रहे। क्यों? क्योंकि उसने पूरी तरह से खुद को समर्पित किया। जिन्होंने थोड़ा-थोड़ा भी अंश रखा उनको लोगों ने एक सीमा में बांध दिया।

जैसे श्रीराम चन्द्र जी को कोई भी देखता है तो उनको ये कहेगा कि ये जीवन है, मर्यादित है, बहुत सारे टाइटल मिलेंगे। लेकिन एक जगह जाकर रूक जायेगा कि अरे इन्होंने डांस नहीं किया कभी, नृत्य नहीं किया कभी। सो हम उनको नृत्य के रूप में देख ही नहीं सकते। उस व्यक्तित्व को उस तरह से परिभाषित ही नहीं कर सकते। इसीलिए मानवता से परे की स्थिति श्रीकृष्ण की है। जिसमें सब है और उसको समझने के लिए हमें उस लेवल तक जाना होगा। देखो हमको बहुत छोटी-छोटी बातों का कितना अहंकार का आ जाता है। अहंकार का मतलब ये नहीं कि आप किसी बात को मान नहीं रहे हैं। या कोई बहुत बड़ा अभिमान है, नहीं। अहंकार का मतलब वो बात करने के लिए हम तैयार नहीं हैं। जैसे कोई कह दे आपको, आपको गाना, गाना नहीं आता, आपको डांस करना नहीं आता, तो कहा जाए तो आप कहेंगे कि नहीं, नहीं ये सब तो मुझे ठीक नहीं लगता। लेकिन कृष्ण को सब ठीक लगता था। और कुछ भी ठीक नहीं लगता था। ऐसा दिखाया जाता है धारावाहिकों में सब जगह।

तो उस समय सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सम्पूर्ण तरीके से समझने के लिए हमको सम्पूर्णता की स्थिति को लाना होगा। इसलिए कृष्ण मानवता से परे की स्थिति का नाम है। इसलिए उसको समझना और उसको जानने के लिए हमको पूरी तरह से अपने आपको हर तरह से समर्पित करना होगा, तब हम उस व्यक्तित्व को समझ पाएंगे।

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