दुनिया में कहावत है कि सबसे भारी हमारा अहंकार है जिसको हम अभी तक ढो रहे हैं। और उसी के कारण हम अभी भी अधीन हैं, पराधीन हैं, स्वाधीन नहीं हैं। तो स्वाधीनता को समझने के लिए सबसे पहले अपने अहंकार के अनुभवों को छोडऩा होगा और हमें उस मुकाम को समझना होगा जहाँ हमें सुख मिले, पॉवर मिले, शक्ति मिले।
हम सभी को आज़ाद देश मिला, जिसको मिले हुए काफी समय हो गया। और उस आज़ाद देश में हम रहते हैं। बहुत सारी चीज़ों से हम बाहर के जो रूल्स और रेगुलेशन थे, नियम-कानून थे उनसे हम मुक्त हुए। हमारे अपने नियम-कानून में हम बंधे और उसी आधार से आगे हम बढ़ते रहे।
कहते हैं हमारे ऊपर कोई राज्य नहीं चला रहा, हम पूरी तरह से स्वाधीन हैं। लेकिन जब बाहर के लोगों से हमने अपने आपको छुटकारा दिला ही दिया है तो फिर भी क्या बचा है जो हमें परेशान कर रहा है। हम सभी को अगर कहीं से कुछ ठीक नहीं मिल रहा है तो हम उसका विरोध करते हैं लेकिन जब हमको अपने से कुछ ठीक न मिले तो उस समय हम क्या करेंगे? उस समय हम किसके पास जायेंगे? कौन हमारे लिए लड़ेगा? तो ये अब सोचने का विषय हुआ कि बाहर के लोगों की बात खत्म लेकिन अब अन्दर का शत्रु, अन्दर का दुश्मन जो हमको पूरी तरह से अपनी बेडिय़ों में जकड़े हुए है। खुद के दुश्मन इसको कहा जाता है कि हम अपने ही संस्कारों के, जो तंग करने वाले संस्कार जिसमें कामना है, लोभ है, अहंकार है… उसमें पूरी तरह से जकड़े हुए हैं हम सभी। और उनसे छूटना मुश्किल है, ऐसा लगता है। कारण एक है कि जब कभी हम बैठके अपने बारे में सोचते हैं, तो सोचते हैं कि ऐसी कौन-सी चीज़ रह गई जो हमको बांध रही है मुक्त नहीं होने दे रही। शारीरिक तंत्र और मानसिक तंत्र दोनों उलझा हुआ है। तो जो हमारा मन है वो इन सब बातों से बिल्कुल ही न्यारा नहीं है। इसलिए हम स्वाधीन होकर भी पराधीनता महसूस करते हैं।
अपनी फैमिली से, अपने घर से, परिवार से, सबके साथ रहते हुए भी जैसे लगता है कुछ है जो मुझे जकड़े हुए है, वो हैं हमारे विकार। जिनके वश होकर हम कोई कर्म करते हैं और बाद में उसका दु:ख होता है। तो परमात्मा ने हम सबको मानसिक रूप से स्वाधीन होने का एक तरीका बताया और वो तरीका बताया कि अगर हम अपने आप को वो याद दिलाएं, जिससे अन्दर की जो गुलामी है वो छूट सकती है। उसे कहते हैं स्व को सम्मान देना। या स्व को मान देना, स्व को हमेशा अलर्ट रखना, जिसको हम आत्मा कहते हैं। स्व कहते हैं उसमें स्वाधीनता है, यहाँ पर स्वमान है, स्व का सम्मान है। तो जब मैं स्व को सम्मान देना शुरू करता हूँ, स्व को मतलब आत्मा के सारे गुण- ज्ञान, पवित्रता, शांति के आधार से अपने को अलर्ट रखता हूँ तो पराधीन करने वाले शत्रु हमसे बहुत दूर रहते हैं। और हम अपने घर में अन्दर के दुश्मनों से लड़ पाते हैं।
तो जब हम ऐसा करना शुरू करेंगे तो हम सबके अन्दर का जो गुलामी का संस्कार है, जो बंधनों में हम जकड़े हुए हैं वो हम उससे धीरे-धीरे परे और पार हो जायेंगे। तो शारीरिक रूप से भी स्वतंत्र और मानसिक रूप से भी स्वतंत्र। अब असली स्वाधीनता यहाँ पर आपको फील होगी। लगेगा कि स्व के अधीन अब सबकुछ है। आत्मा ने सबको अधीन कर लिया, सारे विकारों पर विजय प्राप्त कर ली। जब ऐसा करेंगे तो शायद सच्ची स्वतंत्रता की ओर बढ़ पाएंगे। नहीं तो अभी भी हम परतंत्र ही हैं। इसीलिए कहा जाता है कि बाहर के लोगों को जीतना तो बहुत आसान है, लेकिन अन्दर के शत्रु को जीतने के लिए बहुत मुश्किल, बहुत मुश्किल लगता है।
तो क्या हम इस स्वतंत्रता दिवस पर अपने को अन्दर से स्वतंत्र करना नहीं चाहेंगे! चाहेंगे तो, अपनी स्वाधीनता को परमात्मा के आधार से जगाओ। स्व के अधीन सारे विकारों को करो। फिर देखो सब आपके सामने नतमस्तक होकर आपसे विदाई लेंगे और चले जायेंगे।



