पवित्रता के इस पावन पर्व का इतिहास और उसको समझने वाले भाव दोनों बदल गए। इस बदले भाव से हम सिर्फ इसको एक त्योहार का नाम देते हैं। लेकिन कभी उसके अर्थ और भावार्थ के अनुरूप अपने को नहीं ढालते। तो इस बार क्या हम इसको दूसरी तरह से समझना चाहेंगे?
कभी आप किसी कैदी को मिले हैं जाकर? अगर आप कभी जाकर मिलेंगे तो पायेंगे, जैसे लग रहा है कि इसने कोई गुनाह किया ही नहीं है। सबसे शालीन, आराम से खड़ा होकर आपसे बात करता नज़र आएगा। कारण? क्योंकि वो कैद में है। फ्री नहीं है। इसका मतलब ये हुआ कि जैसे ही हम किसी बंधन में होते हैं तो उस समय हमसे गलतियां बहुत कम होती हैं। लेकिन जैसे ही हम स्वतंत्र होते हैं तो हम गलतियों पर गलतियां करते हैं, और फिर फँसते चले जाते हैं। जैसे ही फिर कैद में आते हैं हमको सबकुछ एहसास होता है कि हमने गलती की।
वैसे ही परमात्मा भी हम सभी को बंधन से सम्बन्ध में लाना चाहते हैं। और सम्बन्ध में लाने का मात्र एक आधार है- वो है बंधन में बंधना। आप देखो, जब आप परमात्म बंधन में बंधते हैं- जहाँ पर मर्यादायें हैं, धारणायें हैं, तो आप हरेक बात से बच जाएंगे। सबने ये बंधन को, रक्षाबंधन को एक पारम्परिक रूप से मनाना शुरू किया। और मनाते हुए हमेशा ये सोचा कि ये चीज़ तो भाई-बहन का त्योहार है। नहीं, ये एक बंधन है जो गहरे सम्बन्ध की ओर हमको ले जाता है। सम्बन्ध वो जो हमको हमेशा, हर पल, हर क्षण, रक्षा की तरफ ले जाता है। हमारी रक्षा करता भी है और कराता भी है। आपको बता दूँ, जब हम सभी अपने जीवन को पूरे एक फ्लैशबैक में ले जाकर देखें तो पायेंगे कि जब भी हम माता-पिता के घर में थे, जब हमारे ऊपर कड़े पहरे थे, जब हमारे ऊपर पूरी मर्यादायें थीं तो उस समय हमसे गलतियां बहुत कम होती थीं। भले उस समय हम कोसते रहते थे कि हमको फ्रीडम नहीं मिलती। लेकिन जैसे ही माता-पिता से दूर हुए तो बहुत सारी ऐसी गलतियां हुईं जो हमने कभी सोचा भी नहीं था। तो वैसे ही ये जो बाहरी दुनिया है जिसमें हर पल, हर क्षण, हम सभी कुछ न कुछ ऐसा गलत कर रहे हैं, चाहे देख रहे हैं, चाहे सुन रहे हैं, चाहे पढ़ रहे हैं, क्यों देख, सुन, पढ़ रहे हैं क्योंकि उस समय हम स्वतंत्र हैं इसलिए सारा देख, सुन रहे हैं। लेकिन अगर यही चीज़ परमात्मा के साथ जुड़ जाए, परमात्मा के डायरेक्शन, माना माता-पिता, पिता हमारा परमात्मा है और उसका जो निर्देश है, उसका जो आदेश है कि नहीं ये सारी चीज़ें तुम्हारे लिए घातक हैं, अच्छी नहीं हैं, इससे तुम नीचे गिरोगे, हमेशा नीचे बहते जाओगे तो हम शायद उसको ना देखें।
लेकिन वो निराकार परमात्मा हम सभी को इस बात को बताने के लिए बहुत सारे उदाहरण सामने रखता है, जिसमें बहुत सारे बंधनों में से उन्होंने एक ये बंधन का उदाहरण दे दिया, वो है रक्षासूत्र या रक्षाबंधन। जिसको उन्होंने पवित्रता के साथ जोड़ा, भाई-बहन के साथ जोड़ा। ये आपको भी पता है कि भाई-बहन का रिश्ता पवित्र माना जाता है। जो बहुत सारी चीज़ें पवित्रता के साथ जुड़ी हैं तो वैसे ही व्यक्ति की रक्षा हो जाती है। अब देखो, ऋषि-मुनियों को भी जब पवित्र दिखाते हैं तो दिखाते हैं कि बहुत सारी विषैली चीज़ें भी उनके ऊपर अटैक नहीं करती। चाहे वो सर्प हो, या फिर कोई ऐसे जंगली जानवर हैं, वो भी नहीं आते। कारण? पवित्रता का बल। तो इसका मतलब है, ये बंधन हमको एक बहुत सुन्दर एक तरह से कैद दे रहा है, एक तरह से हमारी रक्षा के लिए श्रीमत की कैद दे रहा है। जिससे मैं सलामत रहूँगा। जिससे मैं हमेशा खुश रहूँगा। कारण सिर्फ एक है कि ये बात हमें समझ में आ जाए।
महज ये बात हमको समझ में आ जाए। तो आपको ये जो पर्व है इस पर्व का सम्पूर्ण अर्थ समझ में आ जाएगा कि ये पर्व हमें उस बन्धन में बांधता है जो हमारे लिए हमेशा उपस्थित है। जैसे आपने लौकिक माता-पिता का नहीं सुना तो हम परेशान हुए। लेकिन अगर पारलौकिक माता-पिता का नहीं सुनेंगे तो पूरे जीवनभर परेशान होंगे, कई जन्मों तक परेशान होंगे। इसीलिए इस सूत्र को बांधने के बाद हम सभी हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएंगे। और ये सुरक्षा कवच एक दिन के लिए नहीं, कई जन्मों के लिए है, जो आज है वो हमेशा कायम रहेगा। तो इस रक्षाबंधन पर इस बंधन में ज़रूर बंधे लेकिन अर्थ सहित।



