मुख पृष्ठअनुभवउनकी दृष्टि और वरदानी हाथ ने जिन्दगी दी ....

उनकी दृष्टि और वरदानी हाथ ने जिन्दगी दी ….

दादी प्रकाशमणि जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और शाक्तिशाली था। उनके जीवन में सत्यता थीं इसलिए उनके आगे कोई भी व्यक्ति या संस्था कें अंदर रहने वाले साधक हो, झूठ नहीं बोल सकता था। उनकी हिम्मत ही नहीं चलती थी कि मैं झूठ बोल दूं। दादी के सामने आते ही उनके रूहानी दृष्टि से प्रभावित होकर अपने आप को छोटा बच्चा महसुस करते थें। उनके मुख-कमल से उमंग-उत्साह के बोल निकलते थे जिससे, साधकों में उमंग-उत्साह की विशेष लहर फैल जाती थीं। उसका जिते जागता उदाहरण आबू में ज्ञान सरोवर, शांतिवन तथा विश्व के अनेक सेवास्थानों का निर्माण किया गया। दादी जी के कदम पड़ते ही वहाँ का वातावरण शुद्ध, अलौकिक होकर शक्तिशाली हो जाता था।

दादी जी सादगी से सम्पन्न थी, सन् 1993 की बात है कि दादी जी नागपुर से आबू की ओर जा रही थीं। तब बीच में भुसावल स्टेशन पर आधा एक घंटा समय था इसलिए, स्टेशन पर ही एक साधारण प्लास्टिक की कुर्सी पर दादी जी विराजमान हो गई। साथ में हम भुसावल के कुछ भाई बहने और बुराहनपुर सब जोन इंचार्ज राजयोगिनी सुधा दीदी जी भी थीं। मैं और कुछ भाई-बहने दादी जी के आसपास बैठ गये। उस वक्त मैंने  दादी जी आगमन पर एक स्वागत गीत गाया था। उस वक्त का अनुभव अनुपम था गीत समाप्त होते ही दादी जी ने मुझे प्रसाद और दृष्टि दी और मधुबन आना यह महावाक्य भी वरदान बन गये। गत 31 साल से मधुबन में निरंतर मानव कल्याण की सेवा में सेवारत हूँ।

सन् 1995 की दीपावली के पहले सुबह क्लास के बाद ओम शान्ति भवन कें मंच पर दादी प्रकाशमणि जी  दृष्टि मिली और साथ में हाथ में हाथ थमा तब तन-मन में वो अलौकिक शक्तियाँ आ गई जो आज दिन तक नहीं भूलती है न ही भूल सकती है। वह क्षण अतिन्द्रिय सुख, शरीर के भान से कहीं दूर अशरीरी तथा सर्व शक्तियों से सम्पन्न था। उस दिन से पक्का विश्वास बैठ गया कि मेरे हाथ में सर्वशक्तिवान का हाथ और साथ है। जब कभी पर परमात्म मिलन के वक्त मंच पर दृष्टि लेने का मौका मिला तब भी यही अनुभव दोहराया और हर साल दादी जी रक्षा सूत्र बांधती थीं तो हाथ में हाथ थमाती तो उस वक्त भी ऐसा ही शक्तिशाली अनुभव दोहराता था। तन-मन में रांगटे खड़े हो जाते थे। यह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव है और यह मेरे जीवन की कुंजी है। दादी जी अलौकिक दृष्टि मानवमात्र के जीवन को सुखी व आध्यात्मिक बनाने वाली थीं। दादीजी के विनम्रता का प्रभाव इतना गहरा था कि साधु,संत, सूफियों के दृष्टि में भी  सर्व श्रेष्ठ थीं। मैंने अपने आँखों से देखा है दादी जी को बड़े-बड़े साधु, संत भी सम्मान देते थे।
दादी प्रकाशमणि जी निमित्त, निर्माण और निर्मल थीं। जब भी दादी जी को देखने या मिलने का मौका मिला तो दादी जी इतनी बड़ी संस्था की हेड होते हुए भी अभिमान उनको छूँ नहीं सका। वे केवल स्वयं को निमित्त समझती थी। और करन करावनहार परमात्मा शिव है कहती थी। दादी जी इतनी निर्माणचित्त थीं कि जब भी मंच पर आती थी तो सभी को हाथ जोडक़र अभिवादन करती थीं। दादी जी की वाणी बहुत मीठी तथा निर्मल थीं। जब भी दादी जी कुछ बात करती थी तो स्व-कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण की बात अवश्य करती थीं। मैंने अपने नैनों से देखा है दादी जी से कोई भी छोटा या बड़ा, वैज्ञानिक, राजनितिज्ञ,कलाकार मिलता था तो वह अपने को बच्चा महसूस करता था और अपने को धन्य-धन्य महसूस कर भाग्य का गुणगान करता था। दादी जी को स्वच्छता पसंद थीं, जब भी ईश्वरीय मिलन का सीजन शुरू होता था तो पहले से ही दादी जी आबू के सभी कैम्पस में चक्कर लगाकर स्वच्छता का ध्यान देती थीं।
दादी जी सचमुच प्रकाश की मणि थीं। दादी जी इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालते हुए भी हल्की, लाइट थी। दादी जी की पुण्यस्मृति पर मेरा कोटी-कोटी अभिवादन, प्रणाम है। जो विश्व के लिए आज भी उनके दिए हुए मार्गदर्शन मार्ग को सरल व सहज कर देती है।

बी.के. दिलीप भाई, ओम शांति मीडिया, शांतिवन ।

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