जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे। इस बात को गहराई से समझने की ज़रूरत है, सिर्फ बोलने तक ही नहीं। इसका हमारे जीवन पर क्या असर पड़ता है, क्या सोच का परिणाम होता है, इसके सम्बन्ध में हमें सचेत रहना चाहिए। अन्यथा जीवन को यूँ ही असफल कर बैठेंगे। ज़रा इस बारे में सोचते हैं, समझते हैं।
हम अपने शरीर की सफाई रोज़ करते हैं लेकिन मन को गन्दे विचारों से कितना साफ करते हैं? हम इन नकारात्मक विचारों को जमा करते हैं तो धीरे-धीरे ये हमारा व्यवहार बदल देते हैं। जो विचार आप भीतर रखते हैं वही आपकी दुनिया बनाते हैं। अगर आप सुख और शान्ति चाहते हैं, तो पहले अपने मन के अन्दर में शान्ति पैदा करें। शान्ति मन में चाहिए ना! मन में चलने वाले विचारों को देखें कि इससे कौन-सी शक्ति उत्पन्न होती है? पॉजि़टिव या निगेटिव! अगर पॉजि़टिव है तो वह संकल्प आपको सुकून देगा, मन में शान्ति पैदा करेगा।
हममें से अधिकतर लोग अपने आपको असंभव मान लेते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके पास सही साधन, समय या टैलेंट नहीं है। लेकिन असली असंभव वह है जिससे हमने खुद अपने मन में बन्द कर रखा है। जब हम अपने दिमाग को उच्चतम स्तर पर लेकर जाते हैं तब अपनी सीमाएं तोड़ते हैं। फिर कोई लक्ष्य छोटा या बड़ा नहीं रहता। मन में जो मान्यताएं बनाई उसकी सीमाओं के मध्य रहने के आदि हो गए हैं। हमने अपने कम्फर्ट के किले के मध्य खुद को बन्द कर दिया है। तभी हम अपने आप को असंभव मान लेते हैं। उससे बाहर जाने से डर लगता है।
हम अक्सर मान लेते हैं कि हमारे विचार सही हैं और उनमें बदलाव की ज़रूरत नहीं है। लेकिन वास्तव में बुद्धिमानी तब आती है जब हम अपनी मान्यताओं पर पुनर्विचार करें। सोच को लचीला बनाना और नई जानकारियां स्वीकार करना, हमें बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है। जब हम अपने विचारों को चुनौति देते हैं तो हमारे लिए नए अवसर खुलते हैं।
स्वयं का सच्चा लीडर वही बनता जो ऊंचे विचारों को स्थान देता है, नवाचार करने की हिम्मत रखता है। सच्चा नेतृत्व केवल ताकत और अधिकार के बारे में नहीं होता, बल्कि यह साहस और ईमानदारी के बारे में होता है। जब हम डर को छोड़ खुलकर अपने अनुभव को साझा करते तभी हम टीम के साथ और गहरा जुड़ाव बना पाते हैं। किसी चिन्तक ने कहा है- क्रवास्तविक नेतृत्व साहस के साथ जोखिम उठाने और असफलताओं से सीखने में है।ञ्ज लीडर वही होता है जो कठिन सवाल पूछता है, बदलाव के लिए तैयार रहता है और दूसरों को भी वही करने की प्रेरणा देता है। परमात्मा ने सबको बराबर शक्ति दी है लेकिन हम इनके उपहार को सही मायने में न समझ पाते हैं और न ही उसे उपयोग व प्रयोग करने के लिए तैयार होते हैं। प्रभु प्रदत्त बेशकीमती उपहार यूं ही जीवन के साथ समाप्त कर देते हैं। हम अपनी सोच से अपनी दुनिया बना लेते हैं। हम ईश्वर के उपहार की अवहेलना करते हैं। तो हम जैसी सोच को आधार बनाएंगे वैसी ही हमारी दुनिया बनेगी। तो हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि अपनी सोच को श्रेष्ठ बनाए, सुन्दर दुनिया बनाएं।




