आप सभी कभी अपने आपको बैठकर देखो आपको एक चीज़ का बहुत अच्छा अनुभव होगा और वो अनुभव होगा कि हम अकेले हैं और अकेलापन स्वीकार होता नहीं। और अकेलापन जब हमको स्वीकार नहीं होता है तो हम सभी किसी न किसी से सम्बन्ध बनाते हैं और उन सम्बन्धों की वजह से फँसते जाते हैं। जब वो सम्बन्ध हमसे छूटते हैं तो फिर से अकेले हो जाते हैं। तो हम सभी का अकेलापन स्वाभाविक नेचर है, स्वभाव है, लेेकिन वो स्वीकार ही नहीं है।
मनुष्य सम्बन्ध क्यों बनाता है – मनुष्य पूरे जीवन सम्बन्ध बनाता है, फिर से बन्धन बनता है, फिर से बहुत सारे विकार पैदा होते हैं, फिर से उसी से अपने आपको छुड़ाने का प्रयास करता है, यही तो है विजयादशमी। जिसमें व्यक्ति को विजय प्राप्त करनी है लेकिन किसपर? जो कुछ भी बाहर वर्तमान में सत्य नज़र आ रहा है वही तो दरअसल झूठ है, क्योंकि आत्मा इस दुनिया में अकेली आई है, अकेले जाना है ये आपको भी पता है। लेकिन ये सिर्फ सुनाने के लिए या स्लोगन की तरह रह गया है। इसको स्वीकार नहीं करना। बस सुनाना है। इसीलिए हम सभी की जो मूल अवधारणा है वो खो गई है, यही रावण है। रावण के लिए कहा जाता है कि उसने काल को अपने वश में किया हुआ था।
रावण का अर्थ ही है रूदन करने वाला :- रावण का शाब्दिक अर्थ भी रूदन करने वाला है, रूलाने वाला है। तो इस दुनिया में अगर सम्बन्ध हमारे बंधन नहीं होते तो क्या हम रोते? लेकिन आज हर सम्बन्ध एक बंधन है। और जो सम्बन्ध बंधन है या बंधनों में हम हैं तो दिन-रात उनके लिए प्रयास करते हैं। यही तो रावण है। रावण हमारे बंधनों का नाम है, और उन बंधनों से इन विकारों की उत्पत्ति है जिसमें रावण के दस सिर को दस विकारों से जोड़ दिया। क्योंकि बुद्धि में वो सारे विकार होते हैं, शरीर में विकार सिर्फ दिखाए जाते हैं उत्पन्न होते हुए। लेकिन विकार तो आत्मा के अन्दर ही हैं। इसलिए उसे ऊपरी हिस्से में दिखाया गया, दस सिर वाला रावण। वही दस बंधन, वही दस विकार, वही रावण, वहीरूलाने वाला हमको आज ये एहसास दिलाता है कि तुम अकेले आये हो।
क्या सम्बन्ध, सम्बन्ध है या बंधन? :- आत्मा राम है, आत्मा ही राम है। लेकिन आत्मा राम अपने मूल स्वभाव को भूलने के कारण बंधनों में है। और जैसे ही वो बंधनों से बाहर निकलती है, अपने आपको पहचानती है, समझती है तो धीरे-धीरे उसके अन्दर से विकार दूर होते हैं। इसलिए कोई चीज़ को छोडऩा नहीं है, समझना है कि मुझे दु:ख क्यों है, तकलीफ क्यों है, दर्द क्यों है, क्योंकि जब किसी चीज़ को छोड़ते हैं ना तो दूसरी चीज़ हावी हो जाती है। जैसे आज आपने क्रोध छोड़ा तो विनम्रता हावी हो गई। और आप सभी से कहो कि मैं बड़ा विनम्र हूँ तो ये भी तो एक इगो है ना, अहम है। इसलिए परमात्मा ने बहुत अच्छी शिक्षा दी कि इन दस विकारों को समझो, अपने आप छूट जाएंगे। ये दसों विकार बंधन हैं। इनका स्वरूप बदलो, इनको समझो तो तुमको सुख मिलना शुरू हो जाएगा। क्योंकि हम दस विकारों को समझने का प्रयास नहीं करते हैं इसीलिए बंधन बनते चले गये।
क्या आत्मा राम है? :- इसीलिए देखो आज हर कोई गुलाम है- अपनी आदतों का, अपने बंधनों का, चाहे कोई पूजा करने वाला है, चाहे कोई गंदा काम करने वाला है। दोनों को तलब होती है अपने-अपने टाइम पर। तो दोनों आदतों से भरे हुए हैं। परमात्मा आदतों का मालिक बनने के लिए कह रहा है। कहता आप इन सारी बातों का मालिक बनो। आप विकारों को समझो, बंधनों को समझो, अपने आप छूट जाएंगे। उनको जड़ से नष्ट करो, जड़ से खत्म करो। तब जाकर हम सभी विकारों पर विजय प्राप्त करेंगे। इसीलिए रावण को जलाया जाता है। ताकि जब हम इन विकारों को समझ के उनको जला दें तो ये कभी उत्पन्न न हों। तो सच्ची विजयादशमी होगी। इससे विजयादशमी आत्मा राम की सम्पूर्ण जागृति का नाम है। इसे समझो, जानो और सच्ची-सच्ची विजयादशमी मनाओ।




